Saturday, 2 May 2015

Vahanom ki manushy se shikaayatem (वाहनों की मनुष्य से शिकायतें)

                                          वाहनों की मनुष्य से शिकायतें 

(इस नाटिका की कथा हिंदी तृतीय भाषा के छात्र-छात्राओं ने स्वयं लिखी और उस पर अभिनय करके प्रार्थना सभा में पूरे स्कूल के समक्ष पेश किया।  इस तरह की क्रियाएं छात्र-छात्राओं में विषय के प्रति रुचि जगाने के लिए हम अध्यापक और अध्यापिकाएं यदा-कदा करते हैं ताकि भाषा के प्रति छात्र -छात्राओं का रुझान रहे।)

ट्रक - आजकल दुनिया का हर आदमी यह कहता है कि हम वाहनों से बहुत प्रदूषण  बढ़ गया है । 

बस - ठीक कहते हो भाई , जहाँ जाओ आदमी हमारी यही बुराई करता नज़र आता है । 

ऑटो - पर , आदमी ही हमें बनाता है और फिर वही हमें दोष देता है । कितनी अज़ीब बात है । 

कार- समझ में नहीं आता कि  यह मनुष्य  प्रदूषण के बारे में बात करता है पर यह भूल जाता है की उसने ही हमें बनाया है तो हमारी देखभाल भी उसे ही करने है । अब आजकल के नेताओं को ही देख लो, वे चुनाव के वक्त क्या -क्या कहते हैं पर चुनाव जीत जाने पर कुछ भी नहीं करते हैं । 

साइकिल - तुम सब गलत हो । मेरी और देखो । मैं तो कोई प्रदूषण नहीं फैलाती । मुझे चलाने के लिए मेरे टायरों में हवा भरनी पड़ती है । 

अॉटो - तुम हवा भरने से चलती हो और प्रदूषण नहीं फैलाती हो पर तुम पर तो केवल दो आदमी ही बैठ सकते हैं । मैं तो तीन लोगों को ले कर जा सकता हूं , तुमसे तेज चलता हूँ और दूर भी जा सकता हूँ । इतनी ज्यादा गालियाँ सुनता हूँ कि कभी-कभी दिल खराब हो जाता है । 

कार - मैं तो तुम दोनों से तेज़ चल सकती हूँ और बहुत दूर जा सकती हूँ । चार-पांच आदमी आसानी से बैठा सकती हूँ ।  पूरा परिवार मेरे अंदर बैठकर मज़े लेता है । फिर भी गालियाँ  …। 

बस - तुम लोग तो केवल दो-चार लोगों को लेकर जाते हो मैं तो कम से कम पचास लोगों को लेकर जा सकती हूँ और एक राज्य से दूसरे राज्य तक जाती हूँ । हर जगह जा सकती हूँ । मुझे भी इस सेवा के बाद मनुष्य ताने देता है , गालियाँ देता है और कभी-कभी तो खटारा कहता है । 

ट्रक- तुम लोग तो मनुष्यों को ले जाते हो । मैं तो उनका सामान तक लेकर जाता हूँ । वह भी इतना भारी कि तुम लोग शायद सोच भी नहीं सकते । और तो और यदि मैं न हूँ तो मनुष्यों को रोज़ के लिए खाने को न मिले, सारा अनाज-गेहूं , चावल,  दालें,  चीनी आदि और सब्ज़ियाँ सब मुझ में ही तो लादकर आती हैं । फिर भी सब लोग मुझ पर उगुंली उठाते हैं । मुझे तो कहते हैं कि मैं बहुत आवाज़ करता हूँ । 

साइकिल - पर तुम्हें यह तो मानना ही पडेगा कि तुम सब प्रदुषण फैलाते हो क्योंकि तुम्हारे डीजल और पैट्रोल से इतना धुँआ निकलता है कि कई बार तो रास्ते पर कुछ दिखाई नहीं देता । एक बार इस धुएं में ही मेरे सवार को दिखा नहीं और वह गिर पड़ा । मुझे भी चोट लगी फिर उसने मुझे ठीक कराया । 

ऑटो - यही तो हम कहना चाहते हैं कि जब हम खराब होते हैं, तभी हमें क्यों ठीक कराया जाता है ? मनुष्य समय पर हमारी देख -रेख क्यों नहीं करता । 

कार - बिलकुल ठीक कह रहे हो । मनुष्य यह भूल जाता है की हम मशीनें हैं जिसे उसने ही बनाया है । हम भी उसकी तरह बीमार पड़ सकते हैं । पर हम बीमार न पड़े इसके लिए उसे समय-समय पर हमारी देखभाल करनी चाहिए । 

बस- हाँ , कई मनुष्य तो ऐसा करते हैं । वह समय-समय पर हमें गैराज में देते हैं ताकि हम ठीक से चलें और प्रदूषण न फैलाएं । पर कुछ मनुष्य अपने लालची स्वभाव व कंजूसी की आदत के कारण ऐसा नहीं करते । 

ट्रक - पर सभी मनुष्य यदि यह समझ जाएं तो कितना अच्छा हो ! इससे उनका ही भला होगा । उन्हीं के बच्चे सुखी रहेंगे । और, वह हमारा भी पूरी तरह से फ़ायदा उठा सकेंगे । 

साइकिल - शुक्र है  कि शिकायत करने के अलावा भी तुम सब कुछ सोच सकते हो । काश, मैं बोल  सकती तो मनुष्य को यह सब बता देती ताकि मनुष्य  का भी भला होता और तुम्हें भी कोई दोष न देता । 

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