एक से बढ़कर एक
यह नाटिका भी मैंने मुंबई में "उत्पल सांघवी के छात्र -छात्राओं" के साथ किया था । ज्यादा कुछ याद नहीं , बस इतना ही कि शायद किसी पाठ्यपुस्तक में यह पाठ पढ़ा था और फिर पात्रों के कहने का लहजा अथवा बात करने का ढंग बदला और शायद नाटिका की शुऱुआत और अन्त। जो भी इसे करने में सबने आनंद लिया और देखने वालों ने भी। आशा है कि पाठको को यह नाटिका लुभाएगी ।
(अकबर, राजगोपाल, शरद घूम रहे है। वे परेशान हैं कि रविवार कैसे बिताया जाए। आपस में बातें कर रहे है। तभी एंथनी की आवाज़ सुनाई देती है ।)एंथनी- माई नेम इज एंथनी गान्सोरेंस, मैं दुनिया में अकेला हूँ , दिल भी है खाली है, घर भी है खाली ।
राजगोपाल- एंथनी, तुम कहाँ से टपक पड़े ?
एंथनी - अमा यार, क्या हम आम हैं जो टपक पड़ेंगे । आज रविवार है, सोचा कुछ मौज-मस्ती की जाए । तफरीह करने निकला तो तुम लोग मिल गे।
अकबर- क्या ही अच्छा होता? यदि खुदा हफ्ते में दो रविवार बनाता, कम से कम स्कूल की किताबों से छुट्टी मिलती ।
(सब मिलकर हँसते हैं ।)
एंथनी- अमरे मुत्तुस्वामी का क्या हाल है जी ?
(चिढ़ाते हुए बोलता है ।)
शरद-वही चाल बेढंगी जो थी, वह अब भी है । वह तो बस खिलाड़ी है। खेल में ही उसका मन लगता है ।
अकबर- वल्लाह , ठीक फरमाया मियाँ । खेल तो बने ही हैं खेलने के लिए। वो क्या कहते हैं कि --------खेलोगे कूदोगे तो बनोगे नवाब (सब एक साथ) पढ़ोगे लिखोगे खराब ।
(मुत्तुस्वामी का प्रवेश)
शरद -(मुत्तुस्वामी से ) आँ जी, तुम भी गूमने को आया जी ।
मुत्तुस्वामी - अम सोचा-अम दोस्त लोगों के साथ मज़ा करेगा जी ।
(सब को बारी-बारी से देखता है , फिर पूछता है।) अरे, ये क्या जी ? अमरा मुन्ना बाई किधर जी ? उसके बिना महफिल बेकार जी।
(तभी पीछे से गाना सुनाई देता है-रात को बारह बजे दिन निकलता है-आमची मुंबई )
राजगोपाल- लो जी, तुमने शैतान को याद किया, शैतान हाज़िर ।
(मुन्ना भाई का प्रवेश )
मुन्ना भाई -ऐ ------क्या बोला अपुन को, शैतान? अपुन शैतान है क्या ?
मुत्तुस्वामी - तुम शैतान नहीं जी, तुम तो अम सबके दादा, अमरे भाई जी ।
मुन्नाभाई - यह बोला न एकदम बरोबर बोला । साला , अपुन तुम सबका नहीं आमची मुंबई का दादा है ।
(सब हँसते हैं)
अकबर- मुन्ना भाई, तुम्हारे बिना महफिल सूनी पड़ी थी । आज कुछ हो जाए ।
मुन्ना भाई- क्या जो जाए? कुश्ती, लड़ाई से अमको डर लगता है जी । कुछ गपशप हो जाए ।
एंथनी - अमा मियाँ, शर्त रखो कि जो सबसे बढ़िया गप्प सुनाएगा , तुम सब लोग उसे एकदम फर्स्ट क्लास फाइव स्टार होटल में दावत देगा ।
मुन्नाभाई - चकाचक आइडिया है ।
सब एक साथ- हो जाए, हो जाए ।
मुन्नाभाई- पर कौन-कौन गप्प सुनाएगा?
एंथनी- अमा , हम सुनाएंगे यार ।
मुत्तुस्वामी- अम भी सुनाएंगे ।
एंथनी - पहले तुम ।
मुन्नाभाई - पहले तुम ।
एंथनी- पहले तुम ।
अकबर- अमा यार, पहले तुम पहले तुम में कहीं गाड़ी आगे न निकल जाए । मैं तुम तीनों के नाम पर्ची में लिखता हूँ । जिसका नाम पहले निकलेगा, वही सुनाएगा ।
एंथनी- पर्ची मैं उठाउंगा ।
सब बोलते हैं - ठीक है ।
एंथनी- क्या मैं उठाऊँ ?
मुत्तुस्वामी- उटाओ न जी? क्यों मुन्ना भाई? अम टीक बोला न जी ?
मुन्नाभाई - तुम बिलकुल बरोबर बोला ।
(एंथनी पर्ची उठाता है, सब पूछते हैं, किसका नाम है ?)
एंथनी- अमा यार, ये तो पहले हम ही फँस गए । कोई बात नहीं यार, अमा हम भी ऐसी गप्प सुनाएंगे कि खुदा की कसम मज़ा आ जाएगा ।
सब एक साथ- तो सुनाओ न ।
एंथनी- तो सुनो, एक बार हमारे दादा जान शेर का शिकार करने को निकले ।
मुत्तुस्वामी- शेर का शिकार करने को जी !
एंथनी - बीच में टोकना नहीं, वरना नहीं सुनाऊँगा ।
मुन्नाभाई- यार लोगों, चुपचाप बैठकर सुनो, लफड़ा नहीं, श्याणापण नही।
एंथनी - अमा यार, हम फर्मा रहे थे कि हमारे दादा जान ने शेर का शिकार करने की ठानी । चल पड़े जंगल की ओर , पर खुदा कसम, दादा जान भी क्या चीज़ थे ? कभी मचान बाँधकर शिकार नहीं करते थे । घूमते-फिरते जो जानवर नज़र आता उसे गोली से उड़ा देते। उस दिन जबी वे शिकार करने गए तो सामने से आया शेर। शेर महाशय ने दादा जान को देख ऐसी दहाड़ मारी कि सारा जंगल गूँज उठा । पर दद्दा जान तो थे ढीठ जान । वे भला क्या डरते ? इससे पहले कि शेर उन पर हमला करे, ददा जान ने बन्दूक चला दी । अरे मियाँ , बन्दूक का चलना था कि शेर पलटकर ऐसा सरपट भागा कि पूछो मत । अजी, मज़े की बात तो यह है कि शेर आगे-आगे, गोली पीछे -पीछे । शेर जब भी पीछे मुड़कर देखता तो गोली को पीछे पाता ?
अकबर- अच्छा , तो गोली उसका पीछा कर रही थी ।
मुन्नाभाई - टोकने का नहीं-चुपचाप बैठकर सुनने का । आगे बोलो ।
एंथनी- हुआ यह शेर थक गया ।थककर एक पेड़ के पीछे छिप गया । पर गोली शेर से सवा सेर थी । वह भी दूसरे पेड़ के पीछे छिप गई । जब बहुत देर हो गई तो शेर ने सोचा कि गोली वापिस चली गई होगी । उसने चुपके से आगे-पीछे, ऊपर-नीचे , इधर-उधर देखा, जैसे ही वह पेड़ के पीछे से निकला और टहलता हुआ सीना ताने घर की तरफ बधा। अमा यार, मज़ा आ गया, इतने में गोली भी आड़ से निकली और शेर के हाथ को जाकर लगी ।
शरद- फिर?
एंथनी- फिर क्या? मेरा सिर - शेर परलोक सिधार गया ।
(सब हँसते हैं )
मुन्ना भाई- यह भी कोई गप्प है । असली गप्प तो अपुन सुनाते हैं । अपुन यार लोगों के साथ शिकार करने को गया । पेड़ पर मचान बांधकर अपुन लोग सु ट्टा लगा रहा था । तभी पेड़ के ऊपर से यार लोगों पर कूदा । अपुन ने न आव देखा न ताव, झट से उसे दबोचा । अपुन क्या देखता है- ये तो शेर के नन्हे-नन्हे छोकरा लोग हैं । अपुन को उन छोकरों पर तरस आ गया- सर्दी के कारण वे ठिठुर रहे थे । अपुन ने उन्हें अपने कम्बल में ले लिया । अपुन उन्हें लेकर पेड़ से नीचे उतरने को था कि तभी झाड़ियों से शेर के गरजने की आवाज़ सुनाई दी । अपुन पहले तो डर गया, फिर अपुन ने सोचा, अपुन दादा है । इसमे डरने का क्या ? अपुन शेर को ललकार कर कहा - इ जंगल के राजा शेर, तुमने अपुन से कुछ मस्ती की और पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की तो साला अपुन तुम्हारे छोकरा लोगों को पेड़ से पटककर मार देगा । शेर अपुन की बात सुनकर डर गया । बोला- मैं तुम को कुछ नहीं कहूँगा , तुम हमारे छोकरा लोगों को छोड़ दो । मैं चला जाउंगा । शेर को डरते देख अपुन और अकड़ गया और बोला- अपुन से श्याणापण नहि। अपुन शिवसेना के हैं । अपुन को रास्ता दिखाने का नहीं , समझ में आया क्या? शेर ने अपुन के आगे हाथ जोड़ दिए और कहा - तुम अक्खी मुंबई के दादा हो, मैं चालबाजी करूँ , तो तुम मुझे गोली से उड़ा देना, तुम मुझ पर बंदूक ताने रखो ।
एंथनी- फिर?
मुन्ना भाई- फिर क्या? अपुन का सिर , शेर अपुन से डर गया । छोकरा लोगों को लेकर चला गया ।
(सब लोग तालियाँ बजाते हैं )
मुत्तुस्वामी - (हँसकर ) आइयो जी, ये भी कोई गप्प है जी ! तुम अभी बच्चा लोग है जी ! तुम को नहीं पता कि असली गप्प क्या होती है जी ? अम सुनाता तुम लोगों को असली गप्प ।
(आँखों में शरारत और मुस्कराहट )
आँ जी, अम उत्तर भारत , बदरीनाथ, केदारनाथ को गया , गूमने को गया जी । अम तो मंदिर देखने को गया था जी । अम के पास बन्दूक नहीं थी जी । अम रास्ते से जा रहा था कि टंड पड़ने लगी जी । अम सोचा, तोड़ा रुकेगा । अाराम करने के बाद आगे चलेगा जी। पर ये क्या बर्फ जोर से पड़ता था जी । अम टंड से काँप रहा था , शाम होने को आया था जी । अम डर गया, अमने पास में दो चमकती हुए आँखें देखीं, अम डरकर गड्ढे में नीचे गिरते-गिरते बचा। अम बोला-दर्शन ओ गए जी, अम अब नहीं बचेगा जी । अम तिरुपति को, बाला जी को याद किया । बस, तबी अम को एक आइडिया आया जी । अम शेर को बोला- आइयो, इतना बड़ा हो गया, तुम कपड़ा भी नहीं पैना, अम के सामने नंगा आकर कड़ा हो गया, तुम को शर्म नहीं जी ?
मुन्नाभाई- फिर?
मुत्तुस्वामी- फिर क्या जी? अमरा सिर , अमरी बात सुनते ही शेर को शर्म आइ। शेर शर्म से बाग़ गया जी । (सब तालियाँ पीटकर हँसते हैं ) ------------------------------------------------------------------------------------------------------------
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