Saturday, 9 May 2015

Pakshiyon Kaa Sammelan/ पक्षियों का कवि सम्मलेन written by Doctor Naagar

                       पक्षियों का कवि सम्मलेन (डॉक्टर नागर) 

निम्नलिखित नाटक भी मैंने माध्यमिक मिश्रित समूह अथवा कक्षा पाँच , छ : और सात के छात्र-छात्राओं के साथ किया । बच्चों ने अपने आप अपने माथे पर पहनने के लिए पट्टियाँ बनाईं जिस पर जो पात्र वे निभा रहे थे उसका नाम अंग्रेजी और हिंदी में लिखा था । इसके साथ-सात उन्होंने अपने पक्षी पात्र के अनुकूल ही पोशाक पहनी । बच्चों ने इस नाटक को करते समय बहुत ही आनंद लिया । 

(मंच पर विभिन्न पक्षी-कवि विराजमान है। सामने खुले मैदान में श्रोता पक्षियों का समुद्र लहरा रहा है । अध्यक्ष-पद पर श्री राजहंस महाराज विराजमान है एवं कवि-सम्मेलन का संचालन बगुला भगत कर रहे है।)

संचालक- अध्यक्ष महोदय, बहनों और भाइयों । इस अखिल भारतीय पक्षी-कविता सम्मलेन के संचालन का भार मुझ जैसे अकिंचन के पंखों पर सौंपकर आपने अपनी गुणग्राहकता का जो परिचय दिया है, उसके लिए मैं आप सबका आभारी हूँ । आप जानते हैं कि आज के कवि सम्मलेन की अध्यक्षता मानसरोवर में विहार करने वाले राजहंस जी कर रहे हैं ।  वे विधाता के वाहन तो हैं ही, सुकवि भी हैं और नीर -क्षीर -विवेक भी रखते हैं । उनको अध्यक्ष के रूप में पाकर हम अपने आपको धन्य अनुभव कर रहे हैं । 

राजहंस - संयोजक जी, अब कवियों का परिचय दीजिए , ताकि कवि -सम्मेलन में भारत के विभिन्न प्रांतों से स्वनाम-धन्य पक्षी -कवि पधारे हैं । उत्तर प्रदेश की अमराइयों से उड़कर कोयल कुमारी आई हैं । राजस्थान के राजमहलों से सुवर्ण पिंजर को छोड़कर श्रीमती मैना महारानी पधारी हैं । गुजरात से पोपट भाई, पंजाब से बत्तख बेगम , मध्यप्रदेश से जनाब मुर्गा साहब और महाराष्ट्र से ने कवि पपीहा जी तशरीफ लाए हैं । और भी कई कविगण पधारे हैं । मैं इन सबका स्वागत करता हूँ और सभापति की आज्ञा से कवि -सम्मलेन के प्रारम्भ होने की घोषणा करता हूँ । (सभी पक्षी अपने पंख फड़फड़ाते हैं ।) अब आपके सामने सबसे पहले मध्यप्रदेश के कूड़ापुर, जिला कचरागढ़ के मशहूर शायर जनाव मुर्गा साहब तशरीफ लाते हैं ।)

(सभी पक्षी ज़ोर से पंख फडफडाते है। मुर्गा साहब माइक पर आते हैं ।) 

मुर्गा साहब-सभापति, शायरी के शौक़ीन भाइयों और बहनों! ग़ज़ल अर्ज है । (तरन्नुम में पढ़ते हैं ।)

यह न थी हमारी किस्मत, कि  जब्त-ए -बांग होता,
वरना न रात ढलती, वरना न सहर होता । 

इक बाँग हमने दे दी इतनी खता हमारी ,
न ये दिन यहाँ निकलता, न ये आफ़ताब होता । 

(पंखों की फड़फड़ाहट । "वाह-वाह " का तुमुल शोर । "कमाल कर दिया ", क्या बात कही है" आदि का मिलाजुला शोर उठता है ।) 
संचालक - बहनों और भाइयों! कृपया शान्ति रखिए । अब आपके सामने राजस्थान राजघराने की सुवर्ण पिंजरा वासिनी मैना महारानी पधार रही हैं । आइए रानी साहिबा ! 
मैना महारानी - प्यारी बहनों और प्यारे भाइयों, आप लोगों का प्रेम ही मुझे इतनी दूर खींच लाया है, वरना हम लोगों का घर से निकालना ज़रा मुश्किल काम है । हाँ तो सुनिए (गाती हैं)-

मैं तो पिंजरे की मैना । 

पीत चंचु मटमैले पंजे श्याम बरन डैना । 

पी का नाम रटूँ मैं दिन भर कटत न अलि रैना । 

"मैना, की प्रिय पीर मिटाओ, परत न अब चैना "

("वाह-वाह " और पंखों की फड़फड़ाहट । श्रोताओं में से एक आवाज, "वाह, क्या स्वर पाया है? कोयल को भी मात कर दिया ।")
संचालक- भाइयों और बहनों ! अब आपके सामें दक्षिण भारत से केरल के सुकवि कागराजजी पधार रहे हैं । ये "कव्वा" उपनाम से कविता करते हैं । इन्हें अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है । आइए कागराज जी!
कागराज - सभापति जी , संचालक जी, बहनों और भाइयों! हम अपनी कविता आपको सुनाते जी! पर आप लोग शान्ति रखिए, अह -अइयों चुप करो जी ! इतना हल्ला क्यों -क्यों मचाते। सुनिए जी!

कव्वा हूँ , कव्वा हूँ , कव्वा हूँ मैं ,

डरता है आदम क्या हव्वा हूँ मैं । 
तन काला मन काला, लेकिन दिलवाला हूँ ,
स्वर का कुछ पूछो मत, निमिया का पाला हूँ । 
बैठूं जिस छप्पर पर , करूं काँव-काँव,
अतिथि को आया  ही समझो उस ठांव । 
उड़ता हूँ जैसे कनकच्चा हूँ मैं ,
कव्वा हूँ , कव्वा हूँ, कव्वा हूँ मैं ,
(श्रोताओं  में खूब "वाह -वाह " होती है ।)
राजहंस - वाह-वाह ! कागराज जी कमाल कर दिया आपने । बहुत अच्छी कविता पढ़ी आपने । (संचालक से ) आगे का नाम बोलिए । 
संचालक- बंधुओं ! अब मैं आपके सामने पटियाला शहर की गली पीपलीवालान में रहनेवाली बतख बेगम से कविता सुनाने का अनुरोध करता हूँ । आइए बेगम साहिबा, तशरीफ लाइए । 
बतख बेगम - मैं आपको ,नवगीत सुना रही हूँ । सुनिए-

कुकड़ कुकड़ कुइयाँ कुइयाँ,

कुकड़ -कुकड़ कुइयाँ
आओऱी , घूरे में घूमें मिल गुइयाँ ।
कुकड़ कुकड़ कुइयाँ ।
सीने में दर्द किए आँखों में प्यार ,

चुपचाप चलें नदिया के पार । 

कुढ़ -कुढ़ कर मर जाएँ गाँव के गुसइयाँ । 
कुकड़ कुकड़ कुइयाँ । 
(पंखों की जोरदार फड़फड़ाहट । एक स्वर , "वाह बेगम साहिबा , खूब कहा आपने । ऐसे ही होते हैं ये बुर्जुआ लोग ।")
संयोजक - खामोश, खामोश! शान्ति रखिए । अब कवि- सम्मलेन जवान हो रहा है । अब उत्तर प्रदेश की अमराइयों में कूकने वाली कोयल कुमारी जी अपनी कविता सुनाएंगी । 

कोयल कुमारी- कोयल मधुबन की मैं, कोयल मधुबन की,

                       कहती हूँ , तुमको ही 

                 कहती हूँ मन की । कोयल……… 
                 आओ , मन भरमाओ ,
                 आ जाओ आ जाओ ,
                 सुध लो इस तन की । कोयल .......... 
                 डाल-डाल डोलूँ मैं, 
                 पंचम में बोलूँ मैं ,
                 सजनी हूँ साजन की । कोयल ............. 
संचालक- कोयल कुमारी जी के बाद अब आपके सामने पधार रहे हैं नए कवि श्री पोपट भाई । ये "तोता" और "मिट्ठू " नाम से भी कविता करते हैं । मेरा इनसे अनुरोध है कि  अत्यंत लोकप्रिय नई  कविता सुनाएँ । 
पोपट भाई - दोस्तों , हम नए कविता कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक कहने की कला जानते हैं । तो कविता - "अगर कहीं तू पोपट होता"-
अगर कहीं तू पोपट होता 
तो क्या होता, तो क्या होता ? 
पो पो पो पो , पट पट पट पट,
पोपट होता, पोपट होता । 

(सभी पक्षी बड़े ज़ोर से पंख फड़फड़ाते हैं । दूर-दूर से "वाह-वाह " की आवाज़ें आती हैं ।) 

संचालक - श्रोता मित्रों, नई कविता का दौर शुरू हो गया है । अब आपके सामने दूसरे प्रयोगशील कवि मिस्टर पपीहा आएंगे और अपनी टेर सुनाएंगे । 

पपीहा- जी हाँ हुजूर , मैं टेर लगाता हूँ ,

           मैं किसम-किसम की टेर लगाता हूँ ,

        मैं भाँत -भाँत की टेर लगाता हूँ । 
        यह टेर प्यार की है । 
        प्रिया को पास बुलाती है । 
        ये टेर मार की है 
        भूत को दूर भगाती है । 
         यह टेर घटा संग घिर -घिर आती है ,
         यह टेर स्वाति का जल बरसाती है । 
         यह टेर लिखी थी मैंने पूणे में ,
         यह टेर बिकी थी सौ के दूने में । 
         यह टेर लगाता हूँ आटे -साटे में ,
         टेरों का व्यापार या घाटे में । 
         कद्रदान अब कहाँ रहे टेरों के 
         इसीलिए टेरों के ढेर लगाता हूँ । 
         जी हाँ हुजूर मैं टेर लगाता हूँ । 

(श्रोता पक्षी खूब पंख फड़फड़ाकर अपना हर्ष प्रकट करते हैं ।)

संचालक - भाइयों , इससे पहले कि कवि-सम्मलेन समाप्त हो , मैं आज के अध्यक्ष महोदय से प्रार्थना करता हूँ कि वे कविता-पाठ करें । 
सभापति - नहीं-नहीं , ठहरिए । श्रोतागण, आप जानते हैं कि संयोजक महोदय बगुला भगत जी "चौंच" उपनाम से हास्य रास की कविता करते हैं । वे आशुकवि भी हैं । मैं उनसे अनुरोध करता हूँ कि वे कुछ टुकड़े सुनाएं । 
बगुला भगत - प्यारे भाइयों और भाभियों! (सभी पक्षी ज़ोर से हंसते हैं ।) आपने मुझे सुनाने का अवसर दिया इसके लिए धन्यवाद ! कुछ आशु कविताएं सुनिए ।  कागराज जी गौर  फरमाइए । पहली कविता "काँव " पर है- 

कौन है , किसने पुकारा "काँव "  में ,

आ गया लो, मैं तुम्हारे गाँव में । 

("वाह-वाह"  और "क्या कहने " का शोर ) 
और अब बत्तख बेगम की कुकड़ कुइयाँ पर भी दो पंक्तियाँ सुनिए -

और जिसने था कुकड़ कुइयाँ किया,

लो उसे मैंने ये अपना दिल दिया । 

और आखिर मे अर्ज है-

पूछते हैं लोग, "जी, क्या कर रहे हैं आप ? "
मारकर झख धो रहे हैं "चौंच" अपने पाप ।  

अब मैं इस कवि-सम्मलेन अध्यक्ष महाकवित श्री  हंसराज जी से प्रार्थना करुंगा कि वे इस सम्मलेन के सम्बन्ध में दो शब्द कहकर अपनी कविता से श्रोताओं  कृतार्थ करें । 
राजहंस -  देवियों और सज्जनों ! इस अखिल भारतीय पक्षी-कवि सम्मलेन के कवियों की कविताएं सुनकर मुझे एक दृष्टि , एक नया  आलोक है । मैं यह कह सकता हूँ कि  सभी  कवि होनहार एवं प्रतिभा सम्पन्न हैं । याद रखिए, इस सृष्टि का कल्याण एक-न-एक दिन हम पक्षियों के द्वारा ही होगा । हमसे प्रेरणा लेकर ही मनुष्य ने वायुयान बनाए और वह चन्द्रलोक तक पहुंच गया । मानव-जाति सचमुच हमारी बड़ी ऋणी है । मुझे पता नहीं , आपने उनका साहित्य पढ़ा या नहीं , किन्तु जो साहित्य मेरे देखने में  है , उसमें हमारा बड़ा गुणगान  है । हमारा सौंदर्य चुराकर ही देवियाँ सुन्दर बनी हैं । इस बात के समर्थन में एक छंद सुनाकर में अपना वक्तव्य समाप्त करुंगा । इस छंद में अहीर की गोरटी छोरटी को चोरटी कहा गया है, क्योंकि उसने पिक से बैन , खंजन से नैन , हंस की चाल और तोते की नाक चुराकर श्रीकृष्ण के चित्त को चुरा लिया है । तो सुनिए (गाती हैं ) - 

पिक के चुराए बैना,

खंजन के चुराए नैना , 

हंस की चुराई चाल ,

नासा चोरी कीर की । 

 कहे कवि "हंस " चित्त 

कान्ह को चुराए लीन्हों ,

चोरटी है गोरटी या,

छोरटी अहीर की । 

(पंखों की खूब फड़फड़ाहट होती है । सब "वाह-वाह ", "धन्य है " आदि शब्दों की तुमुल ध्वनि करते हैं ।)
संचालक- भाइयों और बहनों ! सभापति ने अपने भाषण और काव्य -पाठ में बड़ी ही महत्त्वपूर्ण बातें बताई हैं । मानव-जाति सचमुच हमारी ऋणी है । उसका कल्याण निश्चित ही हमारे द्वारा होगा । मैं सम्मलेन में पधारे कवि-पक्षियों और श्रोता-पक्षियों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ तथा अध्यक्ष महोदय का आभार मानकर उन्हीं की आज्ञा से सम्मलेन की समाप्ति की घोषणा करता हूँ । 

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