शेरे दकन टीपू
(टीपू सुल्तान पर बच्चों का एक नाटक)
लेखक- हबीब तनवीर
मंजर- योरोप, अफ्रीका, एशिया, श्रृंगापटनम
सेट- किसी स्कूल का बरामदा
स्थान- श्रृंगापटनम का किला
समय- अट्ठाहरवीं शताब्दी की शाम
मुद्द्त/समय- १५ मिनट
पात्र-
१. टीपू २.अंग्रेज ३. निज़ाम ४. नेपोलियन
५. शाहज़मा (अफगानिस्तान) ६. शहंशाह ईरान ७. खलीफा-ए-तुर्की
८. फ्रांसीसी ९. मीरसादिक १०. पूर्नैया ११. सैय्यद गफ़्फार
१२. एक पीर १३. गोर १४. पहला सिपाही १५. दूसरा सिपाही
१६. मराठा
शेरे दकन टीपू (बच्चों का नाटक: हबीब तनवीर)
(किसी स्कूल के बरामदे में कुछ लड़के नाटक खेलने की तैयारी कर रहे हैं । ड्रामे के सब लोग अपना अपना लिबास पहने हुए मौजूद हैं। सिवाय टीपू
सुल्तान के। इन्तज़ार हो रहा है और नाटक शुरू करने से पहले आपस की बातें ।)
{स्टेज की दाईं बाईं ओर पीछे की दीवारों को छूता हुआ एक चबूतरा है और उस पर चढ़ने के लिए एक चौड़ी सी सीढ़ी । यह चबूतरा लगभग आधे
स्टेज पर फैला हुआ है और मंच को तीन हिस्सों में बाँट देता है। चबूतरा,
सीढ़ी और फ़र्स । पीछे की दीवार के बीच में एक दरवाजा है, दाईं तरफ दो
रास्ते हैं, एक चबूतरे पर से और एक नीचे । बाईं तरफ एक नीचे रास्ता है ।}
गफ़्फार- सब आ गए?
अंग्रेज़- सब आ गए सिवाय टीपू के ।
पूर्नैया- लो टीपू का ड्रामा खेलना है, टीपू ही स्टेज पर मौज़ूद नहीं ।
सादिक-ड्रामा टीपू पर नहीं, हैदर अली पर खेलना चाहिए था ।
निज़ाम- अगर ड्रामा मैसूर के बारे में खेलना है तो हैदर अली और टीपू सुल्तान दोनों पर होना चाहिए । और, अगर ड्रामा हिन्दोस्तान के बारे में है, तो गौतम बुद्ध, अशोक, अकबर, रंजीत सिंह, शिवाजी, भगत सिंह और बहुत-से बड़े-बड़े सूरमा हैं, जो हिन्दोस्तान ने पैदा किए।
नेपोलियन- (बाहर देखते हुए) आ गया टीपू !
गफ़्फार- बस अब सब लोग आ गए, ड्रामा शुरू करना चाहिए । (टीपू से बात करता है जो बाहर खड़ा है)
उधर से नहीं पीछे से होकर आओ, तुम्हें उस दरवाजे से दाखिल होना है ।
(बीच के दरवाज़े की तरफ इशारा करता है।) और सुनो अभी न आना दरवाज़े के पास इंतज़ार करो, जब वक्त आएगा तब दाखिल होना, ज़रा अपनी टोपी ठीक कर लो एक तरफ से झुक रही है । हाँ, बस अब ड्रामा शुरू करो ।
(बीच के दरवाज़े की तरफ इशारा करता है।) और सुनो अभी न आना दरवाज़े के पास इंतज़ार करो, जब वक्त आएगा तब दाखिल होना, ज़रा अपनी टोपी ठीक कर लो एक तरफ से झुक रही है । हाँ, बस अब ड्रामा शुरू करो ।
अफ़गानिस्तान- पहले यह बताओ, यह जगह कौन-सी है?
ईरान- अपने स्कूल का महासागर और उसकी स्टेज है।
पूर्नैया- मैसूर है।
फ्रांसीसी- श्री रंगापट्टम है।
अंग्रेज़-हिन्दोस्तान है।
तुर्की- मगर मैं तुर्की हूँ, हिन्दोस्तान में कैसे आ गया?
ईरान- मैं ईरान हूँ, जो स्टेज है, वह दुनिया है।
गफ़्फार- स्टेज पर एशिया और अफ्रीका का मंज़र है।
अंग्रेज़- अफ्रीका क्यों?
नेपोलियन- इसलिए कि मैं मिस्त्र तक पहुँच गया हूँ । सारी दुनिया नेपोलियन के नाम से थर्रा रही है।
पूर्नैया- और एशिया क्यों?
ईरान और अफ़गानिस्तान- (एक साथ) इसलिए कि हम.........
तुर्की- एक-एक करके बोलो।
अफ़गानिस्तान- अरे भई, मैं भी तो हूँ।
ईरान- तुम कौन हो?
तुर्की-यह अफ़गानिस्तान है।
गफ़्फार- अच्छा, बताओ, स्टेज का भूगोल क्या होगा?
अंग्रेज़- इतिहास का नाटक खेल रहे हैं या भूगोल का।
फ्रांसीसी- हमारे भूगोल टीचर कहते हैं - बिना भूगोल के इतिहास नहीं समझा जा सकता ।
पूर्नैय- (हाल की तरफ पीठ करके) यह हिन्दोस्तान है और बाईं तरफ अफ़गानिस्तान , ईरान, तुर्की आदि।
गफ़्फ़ार- और किधर से तमाशा देख रहे हैं?
सादिक-लोग लंका में बैठे तमाशा देख रहे हैं।
गफ़्फ़ार- तो गोया जब टीपू कश्मीर या अफ़गानिस्तान की तरफ देखेगा तो लोगों की तरफ उसकी पीठ होगी । (करके दिखाता है)
सादिक-हाँ!
गफ़्फ़ार- जानते हो टीपू की पीठ आज तक किसी ने नहीं देखी।
पूर्नैया-स्टेज पर तो दिखानी होगी।
फ्रांसीसी- स्टेज पर पीठ कभी नहीं दिखाते ।
निज़ाम- वह पुराना तरीका है।
अंग्रेज़- (गफ़्फ़ार से) फिर तुम बताओ हिन्दोस्तान किधर है?
गफ़्फ़ार- (चबूतरे पर चढ़कर)यह है हिन्दोस्तान और इस तरफ (स्टेज के
दाईं तरफ इशारा करके) अफ़गानिस्तान, ईरान, तुर्की, मिस्त्र आदि। अब टीपू मैसूर से कश्मीर की तरफ देखेगा तो उसका सीना नज़र आएगा ।
दाईं तरफ इशारा करके) अफ़गानिस्तान, ईरान, तुर्की, मिस्त्र आदि। अब टीपू मैसूर से कश्मीर की तरफ देखेगा तो उसका सीना नज़र आएगा ।
नेपोलियन- तो लोग कश्मीर में बैठे खेल देख रहे हैं।
अंग्रेज़- नहीं, साइबेरिया में ।
पूर्नैया-बल्कि कुतुब शिमाली में यानि कि नोर्थ पोल।
ईरान- और हम लोग कहाँ होंगे?
गफ़्फ़ार- यह अच्छी तरह समझ लो कि पहले स्टेज गोया आधी दुनिया का नक्शा पेश कर रहा है और उसके बाद यही दृश्य श्री रंगापट्टम का किला बन जाएगा ।
अंग्रेज़- किले का एक हिस्सा।
गफ़्फ़ार- टीपू सुल्तान यहाँ हैं। (चबूतरे पर दरवाज़े के बाईं तरफ)
अंग्रेज़- और मैं?
गफ़्फ़ार- तुम अभी जाओ, तुम को बाद में आना है। मगर विंग के पास ही रहना, दूर न जाना, आने में देर नहीं होनी चाहिए। (अंग्रेज बायें रास्ते से चला जाता है) अफ़गानिस्तान वहाँ चबूतरे पर होगा, वहाँ नहीं स्टेज के दायें हिस्से में। नहीं भई, टीपू के बांये हाथ पर । सीढ़ी पर ईरान, उसके नीचे तुर्की और इधर सामने नेपोलियन यानि मिस्त्र । हाँ (यह सब स्टेज के दाईं तरफ हैं, जब टीपू आएगा तब उनके बीच खड़ा हो जाएगा।)
सादिक- ज़माना कौन-सा है?
पूर्नैया- अट्ठारहवीं शताब्दी की शाम।
नेपोलियन- नहीं, उन्नीसवीं शताब्दी की सुबह।
गफ़्फ़ार- १७९९ यानि कि सत्रह सौ निन्यानबे।
मराठा- यानि मैसूर की चौथी लड़ाई का ज़माना । मेरे ख्याल से मैसूर की
तीसरी लड़ाई भी दिखानी चाहिए।
तीसरी लड़ाई भी दिखानी चाहिए।
निज़ाम- तीसरी लड़ाई तो ज़रूर दिखानी चाहिए उसी में तो हम लोगों ने
टीपू सुल्तान को हराया था ।
टीपू सुल्तान को हराया था ।
मराठा- चौथी में भी हमने हराया ।
गफ़्फ़ार- यह न भूलो कि अंग्रेज़ मैसूर की तीसरी लड़ाई में , निज़ाम और
मराठों के साथ मिल गए थे । और. टीपू अकेला था। ये लोग हठधर्मी कर
रहे थे । और, वह सच्चाई पर था । इसमें गौरव की कोई बात नहीं, तुम
लोग पार्ट कर रहे हो , सचमुच के निज़ाम और मराठे नहीं हो ।
मराठों के साथ मिल गए थे । और. टीपू अकेला था। ये लोग हठधर्मी कर
रहे थे । और, वह सच्चाई पर था । इसमें गौरव की कोई बात नहीं, तुम
लोग पार्ट कर रहे हो , सचमुच के निज़ाम और मराठे नहीं हो ।
मराठा- मगर पाठ सच्चाई के साथ करना चाहिए ।
नेपोलियन- मैसूर की पहली और दूसरी लड़ाइयाँ दिखानी चाहिए जिसमें टीपू ने इन तीनों के दाँत खट्टे कर दिए थे ।
पूर्नैया-फिर हैदर अली को भी दिखाना पड़ेगा ।
सादिक- हैदर अली ही ने तो सल्तनत खुदादाद कायम की थी।
अफ़गानिस्तान- मगर सल्तनत खुदादाद नाम टीपू का दिया हुआ है ।
पूर्नैया- तो उससे क्या होता है? हैदर अली खुद अनपढ़ था , मगर था बहुत अक्लमंद । वह टीपू को तालीम न दिलवाता तो टीपू क्या कर सकता था ।
सादिक- फिर उसी ने एक दिन टीपू को किताबों में खोया हुआ देखकर कहा," जाने बिदर सल्तनत के लिए कलम से ज़्यादा तलवार की ज़रूरत है।"
गफ़्फ़ार- यही तो वजह है कि टीपू जितना बड़ा सिपाही था, उतना ही ज़बरदस्त मुदब्बिर भी था यानि कि स्टेटसमैन। वह जानता था कि वह अकेला कुछ नहीं कर सकता । उसकी ताकत, उसकी क़ौम की ताकत थी। उसने
हिन्दुस्तानी क़ौमों को पहली बार बताया था कि अगर उन्हें ज़िन्दा रहना है तो एक क़ौम होकर रह सकते हैं।
हिन्दुस्तानी क़ौमों को पहली बार बताया था कि अगर उन्हें ज़िन्दा रहना है तो एक क़ौम होकर रह सकते हैं।
नेपोलियन- अगर हिन्दोस्तान की क़ौमें उसके ज़माने में एक होकर दुश्मन का मुक़ाबला करतीं तो आज हिन्दोस्तान का इतिहास ही कुछ और होता ।
उसने पहली बार जमईरियत का तसुब्बर पेश किया यानि कि लोकतंत्र /जनतंत्र का अथवा डेमोक्रेसी।
उसने पहली बार जमईरियत का तसुब्बर पेश किया यानि कि लोकतंत्र /जनतंत्र का अथवा डेमोक्रेसी।
तुर्की- जमईरियत का क्या मतलब?
नेपोलियन- जिसे लोग समझ न सकें , वह अपने ज़माने से बहुत पहले
पैदा हुआ था ।
पैदा हुआ था ।
गफ़्फ़ार- उसे जब भी मौक़ा मिला उसने अपना सारा वक्त और सारी कोशिशें किसानों और छोटे व्यापारियों की हालत बेहतर बनाने में लगा दीं। अपनी
सल्तनत से हिन्दू-मुस्लिम फ़र्क को मिटा दिया ।
सल्तनत से हिन्दू-मुस्लिम फ़र्क को मिटा दिया ।
सादिक़- हैदर अली एक सल्तनत का बानी था ।
गफ़्फ़ार- और टीपू एक नये ख़्याल का बानी। उसने हिन्दोस्तानियों के लिए पहली बार बैनुलकवामियत का तसव्वुर पेश किया अथवा इंटरनेशनलियज्म यानि कि अंतरराष्ट्रीयता। और बताया कि वह जंग के मैदान में पीठ नहीं
मोड़ता मगर दर असल अमन का ज़बरदस्त परस्तार है यानि कि शांति का पुज़ारी। और अमन का राज़ बैनुल अकवामियत में पोशीदा है।
मोड़ता मगर दर असल अमन का ज़बरदस्त परस्तार है यानि कि शांति का पुज़ारी। और अमन का राज़ बैनुल अकवामियत में पोशीदा है।
पूर्नैया-हैदर अली ग़ाज़ी था ।
गफ़्फ़ार- मगर टीपू की सहादत ने उसे ज़िन्दा जावेद बना दिया यानि कि
अमर कर दिया ।
अमर कर दिया ।
सादिक़- हैदर अली को मैदाने जंग में हमेशा फ़तेह हुए। ड्रामा मैसूर की
पहली लड़ाई से शुरू होना चाहिए।
पहली लड़ाई से शुरू होना चाहिए।
गफ़्फ़ार- अच्छा बहस बंद करो । हमको टीपू पर ड्रामा खेलना है और ड्रामा मैसूर की तीसरी लड़ाई के बाद शुरू होगा । मैसूर की तीसरी लड़ाई हार कर अपनी आधी सल्तनत (राज्य) निज़ाम, मराठों और अंग्रेज़ों को दे चुका है, अब हमें उसकी आख़िरी शिक़स्त अथवा हार दिखानी है।
सादिक़- ऐसा नाटक किस काम का जिसमें शिक़स्त दिखाई जाए ।
पूर्नैया- हैदर अली एक सिपाही से बादशाह बना था और उसने अपनी ज़िंदगी में कभी शिकस्त नहीं खाई ।
सादिक़- हैदर अली पर नाटक करना चाहिए था ।
टीपू- (अंदर आते हुए) हमें नाटक यह समझकर खेलना है कि जीतने वाला ही हमेशा बड़ा आदमी नहीं होता बल्कि कभी-कभी हारने वाला अपनी शिकस्त ही में वह कैफ़ियत पैदा कर देता है कि
हज़ार कामरानियाँ उस पर रश्क़ करती हैं । टीपू की ज़िंदगि से बढ़कर उसकी मौत आने वाली नस्लों के लिए मिसले राह बन गई है । वह नारा जो उसने दो सौ बरस पहले लगाया था, आज भी पैग़ामे अमन बनकर दुनिया के
हर मुल्क में गूँज़ रहा है। यह उसकी बदक़िस्मती थी कि हिन्दोस्तान की
कौमों ने उसकी आवाज़ पर लबबैक न कहा । एशिया के मुमाल्लिक एक
महाज़ पर न आ सके और जब कामयाबी की कोई उम्मीद बाकी न रही तो उसने अकेले ही आज़ादी की राह पर सरधड़ की बाज़ी लगा दी। आज आज़ादी का बीज़ नख्त यानि पेड़ दे रहा है। टीपू ने दकन की सरज़मीं को अपने
खून से सींचा था , यह उसी का तो नतीज़ा है। दरियाए काबेरी आज भी
हज़ार कामरानियाँ उस पर रश्क़ करती हैं । टीपू की ज़िंदगि से बढ़कर उसकी मौत आने वाली नस्लों के लिए मिसले राह बन गई है । वह नारा जो उसने दो सौ बरस पहले लगाया था, आज भी पैग़ामे अमन बनकर दुनिया के
हर मुल्क में गूँज़ रहा है। यह उसकी बदक़िस्मती थी कि हिन्दोस्तान की
कौमों ने उसकी आवाज़ पर लबबैक न कहा । एशिया के मुमाल्लिक एक
महाज़ पर न आ सके और जब कामयाबी की कोई उम्मीद बाकी न रही तो उसने अकेले ही आज़ादी की राह पर सरधड़ की बाज़ी लगा दी। आज आज़ादी का बीज़ नख्त यानि पेड़ दे रहा है। टीपू ने दकन की सरज़मीं को अपने
खून से सींचा था , यह उसी का तो नतीज़ा है। दरियाए काबेरी आज भी
अमन के लिए बेचैन है, मुतलातिम है । उसका पानी आज भी उसी तरह बह रहा है जिस तरह अठ्ठारहवीं सदी में मगर जाज उसकी मौज़ों में एक और ही शोर है । एक और ही तूफ़ान है । यह तूफ़ान मौज़ों के मिलने से पैदा होता है । उन्हें अलग अलग कर दो तो महज़ चंद पानी के कतरे रह जाएंगे । इसीलिए मैं कहता हूँ कि आज़ादी और अमन , अमन और इत्तेहाद यानि के शांति और एकता एक ही मंज़िल के दो नाम हैं। अगर हम उन क़ौमों का साथ न दें जो आज़ादी की राह पर जद्दोज़हद अथवा संघर्ष कर रही है । तो हम ख़ुद ग़ुलामी के अज़ाब से क्यों कर निज़ात हासिल कर सकते हैं ।
बर्तानवी इकतेदार यानि कि ब्रिटिश डोमीनेन्स अमरीका से उठ गयी है और यूरोप से उठती जा रही है। इसलिए अब बर्तानवी हुकूमत के खूनी पंजे
एशिआ की क़ौमों की तरफ बढ़ रहे हैं । क्या अमरीका और फ्रांस की आज़ादी हमारी गुलामी का बायस बन सकती है। हाँ, अगर हम तमाशा देखते रह
जाएं तो ज़रूर बन सकती है लेकिन अगर हम दुनिया की दूसरी क़ौमों से
सबक हासिल करें, उनसे इत्तेहाद क़ायम करें तो अमन और आज़ादी की
मंज़िल दूर नहीं, फ्रांस की छोटी ताकत आज यूरोप के जाबिर शहंशाहों को
नाकों चने चबा रही है । फ्रांसीसी आवाम के नारों से इंग्लिस्तान के
दरोबाम हिल रहे हैं। हुर्रियत, हुखूबत, और मसावात यानि कि लिबर्टी,
इक्वेलिटी, फरटेरनिटी की आवाज़ आज़ सारी दुनिया में गूँज उठी है। इस
आवाज़ में कितनी कशिश किस क़दर दिलफ़रेबी है। मैंने भी अपनी आवाज़
इसी संगीत में महज़ कर दी है। आओ, आज़ादी के इन नारों को एक
आलम्गीर, नग्मागीर बख्श दे । मैं दस्तेशिफ़ाकत, हुर्रियत पसंद फ्रांस की
तरफ बढ़ाता हूँ ।
नेपोलियन- मेरा ख़्वाबे आज़ादी आलमगीर आज़ादी का ख़्वाब ना मुकम्मल रहेगा । हमारा इत्तेहाद तारीख का तकाज़ा है । (चला जाता है)
टीपू- मैं दूसरी एशियाई क़ौमों को ललकार कर कह रहा हूँ कि भूत्तहिद हो
जाएं । फिरंगियों की हवस कारी हिन्दोस्तान ही तक मौज़ूद नहीं हैं बल्कि उनकी हिरीस निगाह सारे एशिया पर है। वे खूब जानते हैं कि जब तक वे
दूसरे एशियाई मुल्कों पर अपना इख़्तेदार कायम ने कर लें, हिन्दोस्तान की सरज़मीन पर उनके कदम नहीं जम सकते , उनके जारिहाना हमलों के लिए हमें तैयार हो जाना चाहिए, इसके लिए ज़रूरी है कि हमारे पास एक
ज़बरदस्त जंगी बेड़ा हो जो उनके जंगी बेड़े से टक्कर ले सके । मैं सुल्ताने रोम से दरख़्वास्त करूँगा कि बसरा की बन्दरगाह सल्तनते ख़ुदादाद की
हुकूमत को इज़ारे पर दी जाए और उसके मुआविज़े में तुर्की को सल्तनते
ख़ुदादाद में जिस बंदरगाह की ज़रूरत हो, वह उन्हें इज़ारे पर दी जा सकती है। आप ख़लीफासूल मुस्लिमीन हैं । मुझे यकीन है कि मेरी दरख्वास्त पर पूरी तवज़्ज़ों देंगे। (सुल्ताने रोम यानि तुर्की खामोश रहता है। अंग्रेज उसे
इशारे से अपनी तरफ बुलाता है और बाहर ले जाता है । टीपू ईरान और
अफ़्गानिस्तान की तरह मुतवज़्ज़ोह होता है।) मैं शाह अफ़्गानिस्तान और
शहंशाह ईरान से भी यही अर्ज़ करूँगा कि आज़ादी के छोटे-छोटे हिस्से, छोटे-छोटे टुकड़े करना, आज़ादी को लूटकर मिठाई की तरह तक़सीम कर लेना
नामुमकिन है। आज़ादी मुट्ठी भर लुटेरों के गिरोह की नहीं होती । आज़ादी पूरी पूरी क़ौमों की होती है। ज़िन्दा क़ौमों की होती है। एक आदमी की
आज़ादी सबकी आज़ादी है और सबकी आज़ादी का मतलब यह है कि उस
क़ौम का हर फ़र्ज़ आज़ाद है। इसलिए मैं कहता हूँ कि हिन्दोस्तानी की
आज़ादी ही मेरी आज़ादी है। सारे एशिया की आज़ादी है। हमारी मंज़िल एक है। हमारा रास्ता एक है। हमारा दुश्मन एक है और हमारा महाज़ एक।
(तुर्की वापिस आता है।)
जाएं । फिरंगियों की हवस कारी हिन्दोस्तान ही तक मौज़ूद नहीं हैं बल्कि उनकी हिरीस निगाह सारे एशिया पर है। वे खूब जानते हैं कि जब तक वे
दूसरे एशियाई मुल्कों पर अपना इख़्तेदार कायम ने कर लें, हिन्दोस्तान की सरज़मीन पर उनके कदम नहीं जम सकते , उनके जारिहाना हमलों के लिए हमें तैयार हो जाना चाहिए, इसके लिए ज़रूरी है कि हमारे पास एक
ज़बरदस्त जंगी बेड़ा हो जो उनके जंगी बेड़े से टक्कर ले सके । मैं सुल्ताने रोम से दरख़्वास्त करूँगा कि बसरा की बन्दरगाह सल्तनते ख़ुदादाद की
हुकूमत को इज़ारे पर दी जाए और उसके मुआविज़े में तुर्की को सल्तनते
ख़ुदादाद में जिस बंदरगाह की ज़रूरत हो, वह उन्हें इज़ारे पर दी जा सकती है। आप ख़लीफासूल मुस्लिमीन हैं । मुझे यकीन है कि मेरी दरख्वास्त पर पूरी तवज़्ज़ों देंगे। (सुल्ताने रोम यानि तुर्की खामोश रहता है। अंग्रेज उसे
इशारे से अपनी तरफ बुलाता है और बाहर ले जाता है । टीपू ईरान और
अफ़्गानिस्तान की तरह मुतवज़्ज़ोह होता है।) मैं शाह अफ़्गानिस्तान और
शहंशाह ईरान से भी यही अर्ज़ करूँगा कि आज़ादी के छोटे-छोटे हिस्से, छोटे-छोटे टुकड़े करना, आज़ादी को लूटकर मिठाई की तरह तक़सीम कर लेना
नामुमकिन है। आज़ादी मुट्ठी भर लुटेरों के गिरोह की नहीं होती । आज़ादी पूरी पूरी क़ौमों की होती है। ज़िन्दा क़ौमों की होती है। एक आदमी की
आज़ादी सबकी आज़ादी है और सबकी आज़ादी का मतलब यह है कि उस
क़ौम का हर फ़र्ज़ आज़ाद है। इसलिए मैं कहता हूँ कि हिन्दोस्तानी की
आज़ादी ही मेरी आज़ादी है। सारे एशिया की आज़ादी है। हमारी मंज़िल एक है। हमारा रास्ता एक है। हमारा दुश्मन एक है और हमारा महाज़ एक।
(तुर्की वापिस आता है।)
अफगानिस्तान- हमें उम्मीद है कि सुल्ताने रोम आपकी दरख्वास्त कभी न ठुकरायेंगे ।
तुर्की- हमारा जवाब यह है कि आप फ्रांस के साथ अपने दोस्ताना ताल्लुकात ख़त्म कर दीजिए और अंग्रेजों से सुलह कर लीजिए । फ्रांसीसी बड़े ग़द्दार और बड़े बेदीन हैं । इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मन हैं । उनका यह
इरादा है कि दुनिया से तमाम मज़ाहिब को उखाड़ फेंकें। इसके बर अक्स
अंग्रेज़ हमारे दोस्त और हलीफ हैं । आपके उनके दरमियान जो वुजूहे
मुखालिफत हैं । उनको आप बयान करें, हम खुद बीच में पड़कर आपके और उनके दरमियान तसफ़िया करा देंगे।
इरादा है कि दुनिया से तमाम मज़ाहिब को उखाड़ फेंकें। इसके बर अक्स
अंग्रेज़ हमारे दोस्त और हलीफ हैं । आपके उनके दरमियान जो वुजूहे
मुखालिफत हैं । उनको आप बयान करें, हम खुद बीच में पड़कर आपके और उनके दरमियान तसफ़िया करा देंगे।
अंग्रेज़- आपके लिए बेहतर है कि मज़ाहिब के दुश्मन और खलीफाए इस्लाम पर हमला करने वाले फ्रांसीसियों से हर क़िस्म के ताल्लुकात मुलकता करके जोशे इस्लाम दिखायें । मुझे उम्मीद है कि सुल्तान रोम का जवाब सुनकर आप इस नतीज़े पर पहुँच गए होंगे कि फ्रांसीसियों ने मुसलमानों के ख़लीफा की तौहीन की है और उन पर हमला किया है और बेवजह मिस्त्रो शाम में जारिहाना जंग शुरू कर दी है। यह वो इलाके हैं जिनकी हर मुसलमान
इज़्ज़त करता है और जिन्हें मज़हबे इस्लाम की यादगारों का खज़ीना समझता है।
इज़्ज़त करता है और जिन्हें मज़हबे इस्लाम की यादगारों का खज़ीना समझता है।
टीपू (गुफ्तगू तुर्की से) आस्तानयेवाला पर मक्फ़ी नहीं कि हमारी गरज़ खुदा के रास्ते में जिहाद और दीन ए ईलाही के सररिस्ताए उमूर को दुरुस्त करना है। आजकल अंग्रेज़ हमसे लड़ने आए हैं और उन्होंने सामाने ज़ंग तैयार
किया है। चुनांचे उनका मुकाबला करना हमारा बल्कि तमाम मुसलमानों और आज़ादी पसंदों का फ़र्ज है। (सुल्ताने रोम चला जाता है। टीपू
अफ़गानिस्तान और ईरान से मुखातिब होता है।) मैं आप लोगों से पूछना
चाहता हूँ कि क्या हमसे तआवुन आपको मंज़ूर है।
अफ़गानिस्तान- हम आपको यकीन दिलाते हैं कि हमें आपके मक़ासिद से पूरा-पूरा इत्तेफ़ाक है और आपके इरादोम से हमदर्दी ।
ईरान-ख़लीफा-ऐ इस्लाम का फ़ैसला बरहक़ है। हमारे लिए लाज़िम है कि उनके फ़ैसले पर
अमल करें। इस मामले में ग़ैरजानिबदरी ही बेहतर है।
टीपू- दोस्तों, मेरे अज़ीज़ों मगरिष के इन नये व्यापारियों के रूप को देखो। इनके खूनी इरादों को पहचानो, एशियाई क़ौमों की हालत पर ग़ौर करो।
हिमालय की सरबलंद चोटियाँ तुम्हें तावते-इंक़लाब देतीं हैं। एक सिरे से दूसरे सिरे तक वतन के मुर्दा ज़िस्म में
आज़ादी की रूह फूंक दो दुनिया के बदलते हुए हालात पर नज़र रखो ।
ज़माने के इस रोज़ अफज़ुम तागईमुर पर यानि कि दिन ब दिन बढ़ता हुए परिवर्तन पर। ज़रा करीब से निगाह डालो आज से एक मुल्क की तारीख का असर, सारी दुनिया के हालात पर पड़ेगा और दुनिया के हालात हम मुल्क की तारीख और सियासत पर असर अंदाज़ होंगे आगे बढ़ते हुई क़ौमों की
रफ्तार से सबक सीखो । मैं हिन्दोस्तान की क़ौमों और एशिया के मुल्कों को एक परचम के नीचे आ जाने की दावत देता हूँ ताकि मगरिब की लूटने
और ग़ुलाम बनाने वाली ताकतें ख़त्म हों। एशिया से यह बद अमनी जाती
रहे ज़ंग का नामो निशान बाकी न रहे ।
हिमालय की सरबलंद चोटियाँ तुम्हें तावते-इंक़लाब देतीं हैं। एक सिरे से दूसरे सिरे तक वतन के मुर्दा ज़िस्म में
आज़ादी की रूह फूंक दो दुनिया के बदलते हुए हालात पर नज़र रखो ।
ज़माने के इस रोज़ अफज़ुम तागईमुर पर यानि कि दिन ब दिन बढ़ता हुए परिवर्तन पर। ज़रा करीब से निगाह डालो आज से एक मुल्क की तारीख का असर, सारी दुनिया के हालात पर पड़ेगा और दुनिया के हालात हम मुल्क की तारीख और सियासत पर असर अंदाज़ होंगे आगे बढ़ते हुई क़ौमों की
रफ्तार से सबक सीखो । मैं हिन्दोस्तान की क़ौमों और एशिया के मुल्कों को एक परचम के नीचे आ जाने की दावत देता हूँ ताकि मगरिब की लूटने
और ग़ुलाम बनाने वाली ताकतें ख़त्म हों। एशिया से यह बद अमनी जाती
रहे ज़ंग का नामो निशान बाकी न रहे ।
अफ़गानिस्तान- हमें आपके साथ त आवुन मंज़ूर है।
अंग्रेज़- आप लोगों ने यह भी सोचा है कि इसका नतीज़ा क्या होगा?
अफ़गानिस्तान- खूब अच्छी तरह सोच लिया है।
टीपू- (तुर्की से) हम आपकी राय के मुंतज़िर हैं।
ईरान- हम सोचकर आपको जवाब देंगे।
अफ़गानिस्तान- हम हर तरह आपका साथ देने के लिए तैयार हैं। आप
अपनी तज़वीज़ पेश करें।
अपनी तज़वीज़ पेश करें।
टीपू- मेरी तज़वीज़ यह है कि आप हिन्दोस्तान पर हमलावर हों और देहली फतह करने और मुग़ल शहंशाह को मराठों के चंगुल से निजात दिलाने के बाद शाह आलम को तख्ते देहली से उतार कर किसी बहादुर शहज़ादे को
तख्त नशीन किया जाए । जब देहली का तख्त उस्तुवार हो जाए तो
अफ़गान लश्कर दकन की तरफ पेशक़दमी करे और खुद मैं अपनी फ़ौज़ों
समेत शिमाली हिन्दोस्तान की तरफ पेश क़दमी करूँ। यहाँ तक के दोनों
लश्कर दुश्मनों का खात्मा करते हुए किसी अच्छे मुकाम पर मिल जाएं ।
आज अवध और बंगाल की नज़रें भी आप ही की तरफ उठ रही हैं।
तख्त नशीन किया जाए । जब देहली का तख्त उस्तुवार हो जाए तो
अफ़गान लश्कर दकन की तरफ पेशक़दमी करे और खुद मैं अपनी फ़ौज़ों
समेत शिमाली हिन्दोस्तान की तरफ पेश क़दमी करूँ। यहाँ तक के दोनों
लश्कर दुश्मनों का खात्मा करते हुए किसी अच्छे मुकाम पर मिल जाएं ।
आज अवध और बंगाल की नज़रें भी आप ही की तरफ उठ रही हैं।
अफ़गानिस्तान- तज़वीज़ हमें मंज़ूर है। (शाह अफ़गानिस्तान और टीपू चले जाते हैं।)
अंग्रेज़ (ईरान से) मैं एक बार शहंशाह ऐ ईरान के गोरा गुज़ार कर देना चाहता हूँ। आप जानते हैं कि अफ़गानिस्तान का बादशाह शाहज़मां हिन्दोस्तान के सियों पर क्या ज़ुल्म कर रहा है। लाहौर के सिये तो इन मग़ालिम से इस क़दर तंग आए हैं कि भाग भाग कर कंपनी बहादुर के इलाके में पनाह ले रहे हैं। ज़मानशाह को हिन्दोस्तान पर हमला करने से रोकना इंसानियत और मज़हब की बहुत बड़ी ख़िदमत होगी।
ईरान- मगर कैसे?
अंग्रेज़- आप जानते हैं कि शाहज़मां और उसके भाई महमूद खां में आपस में नहीं बनती और महमूद खां तख्ते काबुल पर काबिज़ भी होना चाहता है। महमूद खां अपने भाई के मुकाबले में बहुत बेहतर आदमी है। आप सियों के बचाओ के लिए महमूद खां की मदद करें । ताकि वो ज़माशाह के ख़िलाफ जंग करके सियोंको इस अज़ाबे-अलीम से बचाए ।
ईरान- ऐसा ही होगा । (चला जाता है। फ़कीरों के लिबास में एक अंग्रेज़
दाखिल होता है।)
दाखिल होता है।)
पीर- एक ख़ुशखबरी लेकर आ रहा हूँ।
अंग्रेज़- कहो।
पीर- नेल्सन ने नेपोलियन की फ़ौज़ों को पस्पा कर दिया । हमारी फ़ौज़ें
आगे बढ़ रही हैं। फ्रांसीसी ताक़त हमेशा के लिए टूट गयी।
आगे बढ़ रही हैं। फ्रांसीसी ताक़त हमेशा के लिए टूट गयी।
अंग्रेज़- इससे बड़ी खुशखबरी सिर्फ एक हो सकती है-टीपू का खात्मा । खैर हमने एक टीपू को तो खत्म किया अब दूसरे की
फ़िक्र करनी चाहिए।
फ़िक्र करनी चाहिए।
पीर- टीपू की ताक़त का अंदाज़ा उसकी रियाया में रहकर होता है। मैंने
कनारीज़ (कन्नड़) तेलगू, तमिल, उर्दू और फ़ारसी ज़बानों में महारथ हासिल कर ली है। हिन्दू मुसलमानों के रस्मो रिवाज़ और मज़ाहिब से वक्फ़ियत
हासिल कर ली है। श्रीरंगापट्टम के लोग मुझे एक खुदा रसीदा मजज़ूब
समझते हैं और पीर साहब कहकर पुकारते हैं। हिन्दोस्तान के लोग चूँकि
फ़ितरतन मज़हबी और तवक्दुम परस्त हैं इसलिए अकीदत मंदो का दायरा बहुत तेज़ी से फैल रहा है। मगर टीपू के खिलाफ बग़ावत इन तमाम
कामयाबियों के बावजूद जूयेशीर लाने से कम नहीं । श्रीरंगापट्टनम के लोग टीपू के नाम पर ज़िन्दगी निसार कर देने के लिए तैयार हैं ।
कनारीज़ (कन्नड़) तेलगू, तमिल, उर्दू और फ़ारसी ज़बानों में महारथ हासिल कर ली है। हिन्दू मुसलमानों के रस्मो रिवाज़ और मज़ाहिब से वक्फ़ियत
हासिल कर ली है। श्रीरंगापट्टम के लोग मुझे एक खुदा रसीदा मजज़ूब
समझते हैं और पीर साहब कहकर पुकारते हैं। हिन्दोस्तान के लोग चूँकि
फ़ितरतन मज़हबी और तवक्दुम परस्त हैं इसलिए अकीदत मंदो का दायरा बहुत तेज़ी से फैल रहा है। मगर टीपू के खिलाफ बग़ावत इन तमाम
कामयाबियों के बावजूद जूयेशीर लाने से कम नहीं । श्रीरंगापट्टनम के लोग टीपू के नाम पर ज़िन्दगी निसार कर देने के लिए तैयार हैं ।
अंग्रेज़- इन लोगों से तवक्क़ो ग़लत है। जिनके दिल में टीपू पर ज़िन्दगी
निसार कर देने से बेहतर कोई आरज़ू नहीं आप फ़ौज़ के उन बड़े ओहदेदारों और दरबार के उमरा और जागीरदारों में असर पैदा कीजिए जो रियासत,
हुकूमत और सरबत जैसे अल्फ़ाज के मायने जानते हैं । ( एक सिपाही तेज़ी से दाखिल होता है, सलाम करके रुक जाता है) क्या खबर लाए हो?
निसार कर देने से बेहतर कोई आरज़ू नहीं आप फ़ौज़ के उन बड़े ओहदेदारों और दरबार के उमरा और जागीरदारों में असर पैदा कीजिए जो रियासत,
हुकूमत और सरबत जैसे अल्फ़ाज के मायने जानते हैं । ( एक सिपाही तेज़ी से दाखिल होता है, सलाम करके रुक जाता है) क्या खबर लाए हो?
गोरा- खुशखबरी।
अंग्रेज़- कहो।
गोरा- अफ़गानिस्तान के हुक्मराँ शाहज़मां ने हिन्दोस्तान पर हमला कर
दिया था, मगर उसका भाई महमूद खां ईरानी फ़ौज़ों की मदद से हिरात पर
काविज़ हो गया, जिसकी वजह से शाहज़मां को लाहौर से वापिस होना पड़ा । महमूद खां ने अपने भाई शाहज़मां की आंखें फोड़ दीं और अब खुद काबुल के तख़्त पर काबिज़ हो गया है। अब हमें अफ़्गानिस्तान की तरफ से कोई खतरा नहीं।
अंग्रेज़- कामरानियां हमारे क़दम चूमती नज़र आती हैं। बस अब टीपू पर
आखिरी वार का वक्त आ गया । जाओ और निज़ाम हैदराबाद को हमारी
तरफ से यह पैग़ाम दो कि अगर सरकार हमें अपनी ज़ियारत का शरफ़ बक्शें तो हम एहसानमंद होंगे। (गोरा चला जाता है।)
आखिरी वार का वक्त आ गया । जाओ और निज़ाम हैदराबाद को हमारी
तरफ से यह पैग़ाम दो कि अगर सरकार हमें अपनी ज़ियारत का शरफ़ बक्शें तो हम एहसानमंद होंगे। (गोरा चला जाता है।)
पीर- क्या आपने मैसूर पर हमला करने का फ़ैसला कर लिया ।
अंग्रेज़- इस फैसले में क्या अब भी कोई त आमुल हो सकता है। यह फैसला तो मुद्दतों पहले हो चुका था ।
पीर- मेरा ख्याल है कि अभी और इंतज़ार की ज़रूरत है।
अंग्रेज़- इंतज़ार? अब और किस बात का इंतज़ार? नेपोलियन का इंतज़ार
बेसुध हो गया और शाहज़मां के हमले का इंतज़ार बेमानी। अब क्या इस
बात का इंतज़ार किया जाए कि बढ़े और हमें फ़ना कर दें।
बेसुध हो गया और शाहज़मां के हमले का इंतज़ार बेमानी। अब क्या इस
बात का इंतज़ार किया जाए कि बढ़े और हमें फ़ना कर दें।
पीर- आप बखूबी वाकिफ़ हैं कि टीपू हमले की तैयारियां नहीं कर रहा है। मैसूर की तीसरी जंग में जो चोट उसने खाई है। कभी उससे पूरी तरह जांबर नहीं हुआ है। टीपू के खिलाफ जंग का फैसला करने से पहले हमें
मराठोम का त आबुन हासिल करना चाहिए । हमारे पास वक़्त है। टीपू जानता है कि वह अकेला कुछ नहीं कर सकता । शाहज़मां और नेपोलियन की
शिकस्त उसे और भी बेदस्तोदा कर चुकी है । वह ज़रूर मराठों से
इत्तेहाद क़ायम करने की कोशिश करेगा । और इसके लिए......।
मराठोम का त आबुन हासिल करना चाहिए । हमारे पास वक़्त है। टीपू जानता है कि वह अकेला कुछ नहीं कर सकता । शाहज़मां और नेपोलियन की
शिकस्त उसे और भी बेदस्तोदा कर चुकी है । वह ज़रूर मराठों से
इत्तेहाद क़ायम करने की कोशिश करेगा । और इसके लिए......।
अंग्रेज़- इसके पेश्तर कि वह मराठों से इत्तहाद क़ायम करे , हम उस पर
धावा बोल देंगे।
धावा बोल देंगे।
पीर- मराठों की मदद बगैर ।
अंग्रेज़- इस जंग में मराठों की मदद हमारे लिए मुफ़ीद न होगी ।
पीर- आप जानते हैं कि आज हिन्दोस्तान में सिर्फ तीन ताकतें हैं जिनसे नबर्द आज़मा होना है- सिक्ख, मराठे और टीपू ।
अंग्रेज़- हम हरेक का अलग-अलग फैसला करेंगे ।
पीर- अगर इनमें से कोई दो ताकतें भी यकज़ा हो गईं तो वह हमारा फैसला कर देंगीं।
अंग्रेज़- मगर इनमें से किसी एक ताकत को भी अगर ज़रा और पनपने का मौका मिल जाता है तो बस दो एक ताकत ही हिन्दोस्तान में हमारी तकदीर का फैसला कर देने के लिए काफ़ी हैं।
पीर- क्या मतलब?
अंग्रेज़- मैसूर की जंग में अगर फिर एक बार मराठों की मदद हासिल की
जाए तो मैसूर में उनका इख्तेदार और बढ़ जाएगा और यह हमारे हक़ में
जाए तो मैसूर में उनका इख्तेदार और बढ़ जाएगा और यह हमारे हक़ में
अच्छा न होगा । हम इस बची खुची रियासत के फिर से तीन हिस्से न होने देंगे । हमें मराठों से बाद में निपटना होगा । हमारे लिए वही पॉलिसी सबसे मुफीज़ है जो हमने बंगाल और अवध में बनाए रखी है ।
पीर- मगर इस पॉलिसी का तकाज़ा तो यह है कि कामयाबी को यक़ीनी
बनाने के लिए एक दुश्मन के खिलाफ हिन्दोस्तान में ज़्यादा से ज़्यादा दोस्त पैदा किए जाएं । चुनांचे मैं यह समझता हूँ कि इस जंग में मराठों का न होना, हमारी हुकमते अमली के खिलाफ है । महज़ निज़ाम की ताकत पर
भरोसा करना कहाँ की दानिश मंदी है । जबकि हम यह जानते हैं कि हमारे इस अमल से, इस अमर का इमकान और बढ़ जाएगा कि मराठे टीपू का
साथ देने के लिए तैयार हो जाएं । ( गोरा अंदर आता है)
बनाने के लिए एक दुश्मन के खिलाफ हिन्दोस्तान में ज़्यादा से ज़्यादा दोस्त पैदा किए जाएं । चुनांचे मैं यह समझता हूँ कि इस जंग में मराठों का न होना, हमारी हुकमते अमली के खिलाफ है । महज़ निज़ाम की ताकत पर
भरोसा करना कहाँ की दानिश मंदी है । जबकि हम यह जानते हैं कि हमारे इस अमल से, इस अमर का इमकान और बढ़ जाएगा कि मराठे टीपू का
साथ देने के लिए तैयार हो जाएं । ( गोरा अंदर आता है)
गोरा- आलीजाह निज़ाम उल मुल्क वाकिये हैदराबाद बार्गाहे आली का शरफ हासिल करने के लिए तशरीफ़ लाए हैं। हुक्म के मुंतज़िर है। (पीर जाने के लिए मुड़ता है।)
अंग्रेज़- (सिपाही से) भेज दो । (पीर से) आप श्री रंगापट्टम में अपना काम जारी रखें और हमारे हमले का इंतज़ार करें ।
पीर- जो हुक्म । (जाता है, निज़ाम दाखिल होता है।)
निज़ाम- हुजूर, गवर्नर बहादुर की खिदमत में आदाब बजा लाता हूँ।
अंग्रेज़- आपने मेरी बड़ी इज़्ज़त अफज़ाई की ।
निज़ाम- मैं खुद आपसे मिलने के लिए बैचेन था । मैसूर पर हमला करने का वक्त आ गया है।
अंग्रेज़- हमने भी यही फैसला किया है। (एक दस्तावेज़ पेश करता है।) बस इस दस्तावेज़ पर आपके दस्तखत की देर है।
निज़ाम- कैसा दस्तावेज़?
अंग्रेज़- इम्दादे वाहमी का मुहायदा जिसके मुताबिक आपके दुश्मनों के
खिलाफ, आपकी मदद करना हमारा फ़र्ज़ होगा और इस सिलसिले में हमारी इस्सादी फ़ौज़ , आप अपनी रियासत की हुदूद में रखेंगे । और, इस फ़ौज़ के इखराज़ात आपके जिम्मे होंगे । अगर इम्दादे बाहमी की पॉलिसी कुबूल करने वाली रियासतों में आपस में झगड़ा हो जाए । तो उस सूरत में फैसले का इख्तयार हमें होगा और हमारा फैसला आखिरी होगा ।और, आखिरी शर्त यह है कि आप अंग्रेज़ों के अलावा कोई यूरोपियन अफ़सर अपने यहाँ मुलाज़िम नहीं रखेंगे । इनमें से अक्सर सरायत आप पहले ही कुबूल कर चुके हैं । आप इस दस्तावेज़ पर दस्तखत कर दें तो हम मैसूर
पर हमले की तैयारी करें।
खिलाफ, आपकी मदद करना हमारा फ़र्ज़ होगा और इस सिलसिले में हमारी इस्सादी फ़ौज़ , आप अपनी रियासत की हुदूद में रखेंगे । और, इस फ़ौज़ के इखराज़ात आपके जिम्मे होंगे । अगर इम्दादे बाहमी की पॉलिसी कुबूल करने वाली रियासतों में आपस में झगड़ा हो जाए । तो उस सूरत में फैसले का इख्तयार हमें होगा और हमारा फैसला आखिरी होगा ।और, आखिरी शर्त यह है कि आप अंग्रेज़ों के अलावा कोई यूरोपियन अफ़सर अपने यहाँ मुलाज़िम नहीं रखेंगे । इनमें से अक्सर सरायत आप पहले ही कुबूल कर चुके हैं । आप इस दस्तावेज़ पर दस्तखत कर दें तो हम मैसूर
पर हमले की तैयारी करें।
निज़ाम- मगर टीपू की ताकत का आपको अंदाज़ा है?
अंग्रेज़- अच्छी तरह । (अंग्रेज़ अपना फाऊण्टेन पेन बढ़ाता है, निज़ाम
दस्तावेज़ पर दस्तखत करने के लिए कलम उठाता है और उसी वक्त परदा गिरता है।)
दस्तावेज़ पर दस्तखत करने के लिए कलम उठाता है और उसी वक्त परदा गिरता है।)
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