Saturday, 2 May 2015

Kaan ( Written by Vishakha Chinchani) / कान (कवयित्री विशाखा चिंचानी )

                              कान (कवयित्री विशाखा चिंचानी ) 

नीचे लिखी कविता पर कार्यशाला की गई । कक्षा दो के साथ यह कार्यशाला विशाखा के द्वारा ली  गई थी । बच्चों के साथ हर तरह के प्राणी के अंगों के साथ उनके स्वभाव और आदतों के बारे में चर्चा की गई । फिर उनके साथ तरह-तरह के कान बनाए गए । बच्चों ने मुखौटे लगाए और इस कविता का वाचन किया । बच्चों ने प्राणियों का अभिनय करते हुए इस कविता का भरपूर आनंद लिया । आशा है कि अध्यापक और अध्यापिकाओं इस कविता का बच्चों को आनंद दिला पाएंगे । 

कान कान कान 
कितने सारे कान 
किसके , किनके हैं यह कान ?
अनोखे आकार के 
 नाना प्रकार के 
 छोटे -बड़े 
    मोटे
बैठे-खड़े 
गोर-काले 
   भूरे 
धब्बे वाले 
कान ही कान 
मेरी मान तो 
कान को पहचान 
कपिल और केवल के कान 
काका और काकी के कान 
बूढ़ों और बच्चों के कान 
बनावटी बहुरुपियों के कान 
पगड़ी में छिपे 
राजा के कान 
साड़ी के नीचे 
रानी के कान 
नाना- नानी 
दादा-दादी 
बुआ-मौसी 
पास-पडोसी 
हैं सभी के दो कान 
          दो 
कान कान कान 
दो कान कान कान 
कान से रह मत तू अनजान 
बताओ तो, यह किसके कान ? 
दूर तक सुनते 
पटाखों से घबराते 
कभी ऊपर 
कभी नीचे 
कुत्ते के ऐसे होते कान 
और भी हैं 
बहुत से कान 
जान … .... जान  ....... जान 
बिल्ली और बन्दर के कान 
चूहों , छछूंदरो के कान 
गाय के और भैंस के कान 
        गधे
        घोड़े    
        ऊँट के कान 
उल्लू के भी होते कान 
जंगल में हैं ढेर से कान 
बाघ मामा, शेर खान के कान 
काले भालू  के काले कान 
मतवाले हाथी के मतवाले कान 
        महान 
कान कान कान 
मेरे पर छोटे दो कान 
रिमझिम रिमझिम सुनते कान 
खट खट खट खट सुनते कान 
झुन झुन झुन झुन सुनते कान 
सुन सुन सुन सुन सुनते कान 
टिप टिप टिप टिप बूंदों का गाना 
फड़ फड़  फड़ पत्तों का फड़फडाना 
हाय रे हाय ! मौसी का चिल्लाना 
चोर, चोर , शोर मचाना । 
कान का काम है सुनते जाना 
            लेकिन 
(इस बात पर देना तुम ध्यान )
चक चक चक चक 
बक बक बक बक 
कैंची की तरह जब चले जुबान 
कान न करे तब सुनने का काम 
अब कान की रहे कोई ना शान 
मेरी मान, तो 
कान को पहचान  । 
गुन गुन गुन गुन 
गुनगुन मान 
सुन सुन सुन सुन 
सुन सुन कान । 
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