Monday, 4 May 2015

Introduction of different aspects of literature as a play/ साहित्य की विधाओं का परिचय (नाटकीकरण)

                 साहित्य की विधाओं का परिचय (नाटकीकरण) 

सभी को साहित्य के बारे मे जानकारी देने के लिए कक्षा आठ के साथ मैंने यह स्क्रिप्ट लिखी । उद्देश्य यही था कि लोग साहित्य की विभिन्न विधाओं को जानकर साहित्य का रसपान कर सकें । छात्र -छात्राओं के साथ सभी दर्शकों ने भी इस नाटिका का पूरा रसपान किया । आशा है कि पाठक वर्ग भी इसका आनंद अवश्य लेंगे । कहानी और काव्य विधा का  छात्र-छात्राओं ने वाचन किया और नाट्य विधा और व्याकरण विधा को अभिनीत किया । 

आज हम साहित्य की विविध विधाओं के बारे मे आपको बताने जा रहे हैं । ये सभी विधाएं हम हर भाषा में पढ़ते हैं । ये विधाएं हैं- कहानी, नाटक, कविता, उपन्यास, एकांकी, निबंध, जीवनी, स्मरण, व्याकरण आदि ।

"कहानी विधा"  का नाम लेते ही सर्वप्रथम जो नाम हमारे मन में आता है , वह है - मुंशी प्रेमचंद का । मुंशी प्रेमचंद के बारे में जितना भी कहा जाए, उतना ही कम है । फिर भी एक कविता के रूप में हम उनके बारे में बताने की कोशिश करेंगे ।
                                                                       मुंशी प्रेमचंद
था बचपन का नाम नवाब 
प्रेमचंद का मिला खिताब 
धनपतराय घरेलू नाम 
लमही में था उनका धाम । 

बचपन से ही मिली गरीबी 
अंतकाल तक चली गरीबी 
लेकिन कभी न हिम्मत हारे 
बने देश के उज्जवल तारे 

किस्सा और कहानी पढ़कर 
कुछ अपनी ही पीड़ा गढ़कर 
सोच-समझकर कलम चलाई 
उनके निकट सफलता आई । 

सीधे-सादे गांधीवादी 
वेश -भूषा थी सादी 
हँसते तो धरती काँप जाती 
थे हँसकर जीने के आदी । 

लिखी गाँव की बहुत कहानी 
उनकी पीड़ा , उनकी बानी 
जीवन के आदर्श बताए 
नए-पुराने रूप दिखाए । 

पहले उर्दू में लिखते थे 
बड़े-बड़े पोथे रचते थे 
उर्दू से हिंदी में आए 
उपन्यास -सम्राट कहलाए । 

शुरू से ही हम प्रेमचंद की कहानियाँ पढ़ते आ रहे हैं । उनके द्वारा लिखी कई कहानियाँ प्रसिद्ध हुईं जैसे कि - बड़े घर की बेटी, पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा, परीक्षा, दो बैलों की जोड़ी  आदि । हम सब ने इस साल कुछ कहानियों जैसे कि -मंदिर , रामकथा, रामलीला, सुजान भगत, लॉटरी , बड़े भाई साहब, रानी सारन्धा आदि पर परियोजना की। इनकी हर कहानी हमारे मन पर गहरी छाप छोड़ जाती है । "लॉटरी " कहानी से हमें सीख मिलती है कि लॉटरी के व्यर्थ झंझट में पड़ने से और लॉटरी जीतने की झूठी आशा से न केवल हम धन व्यर्थ करते हैं बल्कि समय और ऊर्जा भी व्यर्थ करते हैं । "बड़े भाई साहब " में दो भाइयों के बीच का रिश्ता तो "मंदिर" में सुखिया द्वारा अपने पुत्र जियावन को सामाजिक कुरीतियों के कारण खो देना, सबकी मदद करने वाला "सुजान भगत" आदि सभी पात्र हमारे मन में घर बना लेते हैं ।

सावन 
पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन,
आओ रे, सब मुझे घेर कर गाओ सावन! 
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन,
फिर -फिर आए जीवन में सावन मन-भावन !  

How beautiful is the rain
After dust and heat
In the broad and fiery street
In the narrow lane
How beautiful is the rain!

Robbins will ear their feathery fire
Whistling their whims on a low fence wire.

Umbrella man, come quick, come quick
The monsoon is her the rain is finally here!!

On the air the smell of wet earth
Bread fruit and mango
The sweet rot of the fertile sun
The rain thunders under cover

Black clouds heavy descend on plain
Cooler now,it begins to rain
In heavy skies thunder booms
Rivers are swelling, it's the monsoon.

Summer spell displace in moments
A monsoon vengeful, the weather foul.

There comes the rainbow
Showing its bright colours
And after all this goes away
And now I'm sitting inside waiting for it again.

Running for ward and yet staying
Giving birth to multitudes
Doth and life to many
Yet never disappearing only hiding back in the heavens
To bring the joy and the hell
Again
Next year.

कन्नड़ कविता - 
Mayadanta Male Bantana 
Madagaada Kerege.

Shraavana Bantu Shraavana
Shraavana Bantu Naadige
Bantu Kradige Bantu Beedige
Shravana Bantu Shravana.

आप सब समझ ही गए होंगे कि  हम कविताएं सुनाकर "काव्य विधा" की बात कर रहे हैं । आज तक हमने हिंदी भाषा में तरह-तरह की कविताएं पढ़ी हैं । इस साल हमने प्रकृति के सुकुमार कवि "सुमित्रानंदन पंत " जी की कविता "सावन" पढ़ी । इस कविता पर हमने परियोजना की । परियोजना के दौरान हमने "सावन " विषय पर अन्य भाषाओं जैसे कि -कन्नड़ और अंग्रेजी में लिखी गई कविताएं भी इकट्ठी की । उन्ही कविताओं की कुछ पंक्तियाँ आपको अभी-अभी हमने सुनाई हैं । इस परियोजना मेम हमने पंत जी द्वारा अन्य विषयों पर लिखी कविताएं भी इकट्ठी की । आइए , उनका रस लें -

भारतमाता ग्रामवासिनी  
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला-सा आँचल
गंगा जमुना में आँसू जल,
मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी
भारतमाता ग्रामवासिनी ।

वो सुबह कभी तो आएगी 
वो सुबह कभी तो आएगी 
इन काली सदियों के सर से 
जब रात का आँचल ढलकेगा 
जब दुःख के बादल पिघलेंगे
 जब सुख का सागर छलकेगा 
जब अम्बर झूम के नाचेगा 
जब धरती नर्गम गाएगी 
वो सुबह कभी तो आएगी । 

मुरझाया फूल
विश्व मे है , पुष्प!
तू सबके ह्रदय भाता 
दान पर स्वार्थमय फिर भी 
हाय! हरषाता है 
जब तेरी ही दशा पर 
दुःख हुआ संसार को 
कौन रोएगा सुमन
हमसे मनुज नस्सार को । 

नारी 
यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर,
तो वह नारी उर के भीतर
दल पर दल खोल ह्रदय के स्तर
जब बिठलाती प्रसन्न होकर
वह अमर प्रणय के शतदल पर

१५ अगस्त १९४७ 
नवजीवन की ज्वाला से दीप्ति हो दिशि क्षण 
नव मानवता में मुकुलित धरती का जीवन । 

चींटी 
मैं सबसे छोटी होउं 
तेरी गोद में सोऊ 
तेरा अंचल पकड़ -पकड़ कर  
फिर सदा माँ , तेरे साथ 
कभी न छोडू तेरा हाथ । 

कविता के बाद "नाट्य विधा" की बात हम करेंगे । आजकल हम "महाभारत" की कथा पढ़ रहे हैं , उसी के एक दृश्य को हम यहाँ अभिनीत करेंगे । हम बात कर रहे हैं उस समय की, जब पांडव कौरवों से जुए मे अपना सब कुछ हार बैठे थे । उन्हें बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भोगना था । वनवास के बारहवें वर्ष की बात है । युधिष्ठिर अज्ञातवास को लेकर चिंतित थे और वे अपने भाइयों और अपनी पत्नी द्रोपदी के साथ बैठे विचार-विमर्श कर रहे थे तभी………
(एक रोता हुआ ब्राह्मण आना ) 
ब्राह्मण - अरे, वह हिरन मेरी अरणी की लकड़ी ले गया । हे राम, अब मैं क्या करूं? कैसे मैं हवन करुंगा? 
युधिष्ठिर - हे ब्राह्मण - मैं क्या बताउं? मेरी झोंपड़ी के बाहर अरणी की लकड़ी टँगी हुई थी । एक हिरन आया इस लकड़ी से अपना शरीर खुजलाने लगा और चल पड़ा । अरणी की लकड़ी उसके सींग में ही अटक गई । इससे वह घबरा गया और बड़ी तेज़ी से भाग गया । अब मैं होम की अग्नि कैसे पैदा करुंगा । 

द्रोपदी - ब्राह्मण देवता, आप घबराए नहीं । ये सारे भाई आपकी मदद करेंगे । 
युधिष्ठिर - ठीक कहती हो द्रोपदी, हम सब अभी जाते हैं । चलो भाइयों, ब्राह्मण  देवता की अरणी की लकड़ी ढूंढ कर लाते हैं । 
(चारों भाई वन में लकड़ी ढूंढने जाते हैं । हिरन के पीछे भागते हैं  पर वह तेजी से उनकी आँखों के सामने ओझल हो जाता है । वे सब थककर प्यास से व्याकुल होकर एक बरगद की छाया में बैठ जाते हैं । उन्हें लज्जा आ रही है कि  वे ब्राह्मण का छोटा -सा काम भी नहीं कर पाए । प्यास से सभी का गला सूख  रहा है , तभी नकुल पानी की खोज में जाता है ।  कुछ दूर जाने पर उसे एक सरोवर मिलता है , उसमे स्वच्छ जल देखकर नकुल पानी पीने के लिए जैसे ही सरोवर में उतरता है, उसे एक आवाज़ सुनाई देती है । )
आवाज़- माद्री के पुत्र! दुस्साहस न करो । यह जलाशय मेरे अधीन है । पहले मेरे प्रश्नों के उत्तर दो , फिर पानी पीओ । 
(नकुल चौंक जाता है पर उसे प्यास इतनी ज़ोर से लगी है कि वह  आवाज़ की परवाह नहीं करता और पानी पी  लेता है । पानी पीते ही चक्कर खाकर बेहोश हो जाता है । युधिष्ठिर नकुल के देर तक न आने पर सहदेव को उसे खोजने के लिए भेजते हैं । सहदेव के साथ भी वही घटना होती है । सहदेव के न लौटने पर युधिष्ठिर अर्जुन को भेजते हैं । अर्जुन आवाज़ को सुनकर उस दिशा मे धनुष-बाण चलाने लगते हैं , पर उसका कोई फल नहीं निकलता है  । वह भी पानी पी  लेते हैं और चक्कर खाकर गिर जाते हैं । अर्जुन का इंतज़ार करते-करते युधिष्ठिर व्याकुल हो जाते हैं और भीम को भाइयों की खोज में भेजते हैं । भीम तेज़ी से सरोवर की ओर बढ़ते हैं , वे तीनों भाइयों को मरा पाते हैं । वे सोचते हैं -
भीम-यह किसी यक्ष की करतूत है , पर ज़रा पानी पी लूं , फिर देखता हूँ कि  कौन मेरे सामने आता है ?  )
(यह सोचकर ज्योंहि तालाब में भीम  उतरने लगते हैं तभी एक आवाज़ सुनाई देती है ) 
एक आवाज़- भीम, प्रश्नों के उत्तर दिए बिना पानी पीने का साहस न करो, नहीं तो तुम्हारी भी अपने भाइयों जैसी गति होगी । 
भीम - मुझे रोकने वाला तू कौन है ? 
( यह कहकर भीम ने पानी पी लिया और वे भी वहीं ढेर हो गए । चारों भाइयों के न लौटने पर युधिष्ठिर चिंतित हो गए और उन्हें खोजते हुए सरोवर की और चल पड़े । वे उसी सरोवर के पास पहुंचे जिसका जल पीकर चारों भाई मृत पड़े थे । उनकी मृत्यु का कारण सोचते हुए युधिष्ठिर भी प्यास से व्याकुल तालाब में उतरने लगे, इतने में वही वाणी उन्हें सुनाई पड़ी । ) 
वाणी - सावधान! तुम्हारे भाइयों ने मेरी बात न मानकर पानी पिया था । यह तालाब मेरे अधीन है । मेरे प्रश्नों के उत्तर दो  , फिर पानी पीकर प्यास बुझाओ । 
(युधिष्ठिर समझ गए की कोई यक्ष बोल रहा है )
युधिष्ठिर-आप प्रश्न कर सकते हैं । 
यक्ष - मनुष्य का  कौन साथ देता है ? 
युधिष्ठिर- धैर्य ही मनुष्य का साथ देता है । 
यक्ष - यशलाभ का एकमात्र उपाय क्या है ?  
युधिष्ठिर- दान । 
यक्ष - हवा से भी तेज़ चलने वाला कौन है ? 
युधिष्ठिर- मन । 
यक्ष - विदेश जाने वाले का कौन साथी होता है? 
युधिष्ठिर- विद्या । 
यक्ष - किसे त्याग कर मनुष्य मुक्त हो जाता है ? 
युधिष्ठिर-अहंभाव से छूट जाने पर । 
यक्ष - किस चीज़ के खो जाने से दुःख नहीं होता ?
युधिष्ठिर-क्रोध । \
यक्ष - किस चीज़ को गँवाकर मनुष्य धनी बनता है ?
युधिष्ठिर- लोभ ? 
यक्ष -ब्राह्मण होना किस बात पर निर्भर है ? जन्म पर , विद्या पर, शील स्वभाव पर ? 
युधिष्ठिर- शीलस्वभाव पर । 
यक्ष - धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है ? 
युधिष्ठिर- उदारता । 
यक्ष - कैसे व्यक्ति के साथ की गई मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती ? 
युधिष्ठिर- सज्जनों के साथ की गई मित्रता । 
यक्ष - इस जगत में आश्चर्य क्या है ? 
युधिष्ठिर- रोज़ हज़ारों लोग मर रहे हैं । फिर भी लोग चाहते हैं कि वे अनंतकाल तक जीवित रहें । इससे बड़ा आश्चर्य  और क्या हो सकता है ? 
यक्ष - राजन, मैं तुम्हारे मृत भाइयों में से किसी एक को जिला सकता हूँ । तुम जिसे कहो वह जीवित हो जाएगा । 
युधिष्ठिर- नकुल जी उठो । 
(यक्ष सामने आकर ) 
यक्ष- युधिष्ठिर! दस हज़ार हाथियों के बल वाले भीम को छोड़कर तुमने नकुल को जिलाना क्यों ठीक समझा? भीम नहीं तो अर्जुन को ही जिला लेते, जिसकी रण -कुशलता सदा ही तुम्हारी रक्षा करती रही है । 
युधिष्ठिर- महाराज! मनुष्य की रक्षा न तो भीम से होती है और न अर्जुन से। धर्म ही मनुष्य की रक्षा करता है और धर्म से विमुख होने पर मनुष्य का नाश होता है । मेरे पिता की दो पत्नियों में से कुंती का एक पुत्र मैं बचा हूँ । मैं चाहता हूँ कि माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहे । 
यक्ष - पक्षपात से रहित मेरे प्यारे पुत्र, तुम्हारे चारों ही भाई जी उठें । 
(इस प्रकार यक्ष के वार देते ही चारों भाई जी उठे । यह यक्ष और कोई नहीं स्वयं यमराज थे । उन्होंने ही हिरन का रूप धारण किया था । उनकी इच्छा थी कि  वे अपने  पुत्र युधिष्ठिर को देख अपनी आँखें तृप्त करें । )

पहली छात्रा - अंत में , अब आती है बात व्याकरण विधा की । व्याकरण मेम हम संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, काल, क्रियाविशेषण , मुहावरे, लोकोक्तियाँ…………… 

दूसरी छात्रा - अरे,  क्या हुआ? बोलती क्यों नहीं ? क्या तुम्हारी अक्ल घास चरने चली गई है ? 

तीसरा छात्र - नहीं, नहीं, इसकी अक्ल पर तो पत्थर पड़े हैं । 

चौथा छात्र -अरे, यह क्या कह रही हो? हमने खून-पसीना एक करके इस हिंदी प्रस्तुतीकरण की तैयारी की है । 
पांचवा छात्र - हे भगवान! आप सब लोगों के सामने क्यों आसमान सिर पर उठा रहे हैं । 

छठी छात्रा -अरे , हम सबके सामने पीठ दिखाकर यहाँ से जाने वाले नहीं हैं । 

सातवाँ छात्र - मेरे तो हाथ-पाँव फूल रहे हैं, जल्दी समाप्त करो । 

आठवीं छात्रा - अरे, इसमें पानी-पानी होने की क्या बात है ? भूल तो हो ही जाती है । 

नवीं छात्रा - पर हम सब की आँखों से गिर गए की हम प्रस्तुतीकरण के बीच मे अपने संवाद भूल गए । 

पहली छात्रा- बस, कह लिया आप सब ने जो कुछ कहना था। मैंने कुछ भी चौपट नहीं किया । मैं तो कहना चाहती थी कि  हम व्याकरण विधा में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, काल, क्रियाविशेषण, मुहावरे और लोकोक्तियाँ आदि कई विषय पढ़ते हैं और अपनी भाषा शुद्ध रूप से बोलना , पढ़ना और लिखना सीखते हैं ।  

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