यह नाटिका मैंने किसी पाठ्य पुस्तक से ली है जिसका नाम मेरे पास नहीं है पर पढ़कर मुझे यह बहुत पसंद आयी और मैं आप सब के साथ बांट रही हूँ । इसे मैं मिश्रित माध्यमिक समूह अथवा कक्षा पांच , छह और सात के साथ अवश्य करूंगी । आशा है कि पाठक वर्ग को पसंद आएगी ।
साइकिल, स्कूटर, टैक्सी और मोटर कार, ट्रैक्टर की शिकायतें
पात्र- साइकिल, स्कूटर, टैक्सी, ट्रैक्टर, मोटर कार
(साइकिल,स्कूटर, टैक्सी,ट्रैक्टर, मोटर कार आदि वाहन दु:खी होकर मनुष्य की शिकायतें करते हैं । साथ में अपने-अपने गुणों का वर्णन करते हैं ।)
साइकिल-सुनो चचा, स्कूटर! मैं आपके सामने रफ्तार और स्पीड की तो बात कर नहीं सकती, परन्तु इतनी बात मैं बड़े गर्व से कह सकती हूँ कि मनुष्य को मुझे रखने के लिए जीवन में एक बार मुझे खरीदने का खर्च तो करना पड़ता है । कभी-कभी ट्यूब पिंचर हो जाए या टायर फट जाए तो उसकी मरम्मत अवश्य करानी होती है ।
स्कूटर- इसके साथ और भी बातें हैं अगर तुम्हारे ब्रेक फेल हो जाएं या अचानक पैडल से चैन उतर जाए तो साइकिल ड्राइवर परेशान ही नहीं होता बल्कि उसका एक्सीडेंट भी हो सकता है । ब्रेक और हैंडल का प्रॉब्लम हो जाने पर बहुत खर्च हो सकता है।
साइकिल- चचा, यह तो हमारी घरेलू समस्या है-सबसे बड़ी समस्या और शिकायत खुदगर्ज़ी मनुष्य की है। यह इतना गंदा इंसान है कि मेरा प्रयोग वहाँ करता है जहां सड़क नहीं होती, पत्थर-कंकड़, झाड़-झंकाड़, कांटों में भी मुझे खींचता है । पहाड़-पत्थर, ऊबड़-खाबड़ में भी मुझ पर चढ़ कर अपना सफर पूरा करता है । इससे अधिक तो उसकी बदमाशी यह है कि मुझ पर खुद तो सवारी करता ही है इसके साथ अपनी बीवी, दो-दो, तीन-तीन बच्चों को भी मुझ पर बैठाकर मुझे मीलों चलाता है । खेत में से अनाज, भूसा-चारा भी मेरे पर लादता है । घर का जितना भी छोटा-बड़ा सामान होता है , वह सब मुझ पर लादकर इधर से उधर, उधर से इधर करता रहता है। मैं उसकी इन नाजायज़ हरकतों की परवाह नहीं करती ।
स्कूटर- खैर! यह तो इस नालायक मनुष्य की ज़्यादती है । वैसे स्वार्थ तो यह मूर्ख हमारे साथ भी पूरा करता है - और हमें बेवकूफ बनाता है- हमारे कष्टों की ज़रा भी परवाह नहीं करता । हम बेज़बान हैं, इसलिए यह अपनी मनमानी करता रहता है ।
साइकिल- देखो, चचा! यह इंसान जितना स्वार्थ हमसे पूरा करता है, उतना देता नहीं । अच्छा आप ही बताइए, हमें खाने को क्या देता है और हम इससे मांगते क्या हैं ? बोलो!
स्कूटर- बेटा, यह बात तो आपकी सौ प्रतिशत ठीक है । हमें अफसोस तो है कि यह इंसान अपनी गर्ज़ पूरी करने के लिए हमारा दम निकाल लेता है । और हमसे काम निकाल कर कड़कती धूप में, धुआंधार बरसात में हमें यूँ ही रखता है और ज़रूरत पड़ने पर हमारी गद्दी झाड़कर उस पर बैठ शान से सवारी करता है और मटक-मटक कर इतराकर चलता है। चलते हुए बस इतराता रहता है। घमंड से सिर ऊंचा करके चलता है।
साइकिल-(थोड़ा गरम होकर) आप इसकी और भी हरकतों के बारे में सुनो । कभी भूले भटके मुझे कपड़े से साफ नहीं करता, न मुझमें तेल देकर मेरी थकान को ही दूर करता है । मैं कितनी ही लंगड़ा कर चलूँ, कराहती-सी चलूँ , मगर इस नालायक के बच्चे को यह शर्म नहीं आती कि ज़रा भी मेरे लिए सहानुभूति प्रकट करे या मुझे चूमे-पुचकारे, प्यार करे । हाँ, मुझे भी जब कभी गुस्सा आ जाता है, मैं भी अड़ियल घोड़े की तरह अड़कर खड़ी हो जाती हूँ। इस नालायक के कन्धे पर सवार होकर अपने डॉक्टर यानि कि साइकिल रिपेयरर की दुकान पर जाती हूँ । गुस्सा यह फिर भी मुझ पर करता है, मुझे दुकान पर ले जाकर पटक देता है, मेरी मिट्टी पलीद करता है, बहुत लातें मारकर अपना गुस्सा दिखाता है ।
स्कूटर- देखो भतीजी! जितने कष्ट और तकलीफें तुझे इस इंसान ने दिए हैं । उतने ही मुझे इसने दिए हैं । बहन, तुम्हारी तरह मैं भी इसे मज़ा चखाता हूँ, बदला लेता हूँ । मैं भी बीहड़ जंगल में इसकी ज़्यादती पर ऐंठ जाता हूँ तो यह इतना हैरान-परेशान हो जाता है कि रोने-सा लगता है- मुझे कंधों पर उठा नहीं सकता, क्योंकि मेरा वज़न बड़ा भारी है या तो किसी बैलगाड़ी पर या तांगे पर या फिर किसी ट्रक पर मुझे सवारी कराते हुए घर या रिपेयरर वाले के पास लाता है । तुम्हारी तरह मैं भी अपना गुस्सा निकालता हूँ । मैं पैट्रोल को पी जाता हूँ या पैट्रोल को सड़क पर बिखेर कर गिरा देता हूँ । मैं कभी-कभी लूला-लंगड़ा भी हो जाता हूँ और तुम्हारी ही तरह सब खराबियाँ मैं भी कर देता हूँ , बीमार-सा हो जाता हूँ-चलने-फिरने से इनकार कर देता हूँ। यह सब देखकर मनुष्य कभी-कभी सिर पकड़ कर रोने लगता है-सारी-सारी रात मैं इस नालायक इंसान को अकेला रखता हूँ और भूखा-प्यासा भी मार देता हूँ ।
साइकिल-चचा, ऐसा ही बर्ताव इस मनुष्य के साथ मैं भी करती हूँ। ऐसी जगह मैं लंगड़ी-लूली होकर लेट जाती हूँ। चलने से लाचार होकर सड़क के किनारे या बियावान जंगल में पड़ जाती हूँ । ऐसे इस मनुष्य को भूखा-प्यासा रखती हूँ ।
स्कूटर- लेकिन बेटी! यह इंसान भी सुखी नहीं है- हमको यह परेशान करता है और हमें ज़रा भी आराम नहीं देता- न ही हमारे आराम के लिए सोचता है । अगर यह हमारी सुख-सुविधा के लिए ज़रा भी विचार करे तो इसको भी आराम मिल सकता है । उपकार एक ऐसी चीज़ है जो तुम दूसरे के लिए करोगे तो तुम्हें सुख मिलेगा, नहीं तो विश्राम का कोई चांस नहीं । यह संसार का नियम है- कर भला, हो भला । अन्त भले का भला!
साइकिल- यह बात आपने सोलह आने सही कही । अगर यह इंसान हमें सुख देने की चेष्टा करे तो इसके घर-परिवार को भी आनन्द और सुख मिले ।
टैक्सी-देखो जी, बहिन साइकिल और भाई स्कूटर की व्यथा सुनकर मेरे मन को भी काफी ग़म हुआ । यह मनुष्य इतना गिरा हुआ है कि किसी भले की भी भलाई करने को तैयार नहीं । इसका बर्ताव इतना मतलबी है कि अपने स्वार्थ के सामने किसी दूसरे की भलाई सोचने को तैयार नहीं । मैंने तुम दोनों की बातें बड़े ग़ौर से सुनीं- अरे , मेरे साथ क्या कम दुर्व्यवहार करता है यह मूर्ख ? अपने स्वार्थ के सामने वह किसी को समझता ही नहीं । अगर कभी इसको गर्ज़ होती है तो मेरा प्रयोग करता है । लेकिन मेरा पूरा खाना यानि कि किराया भी नहीं देता- किराया देने में झगड़ा करता है लेकिन मैं भी कभी-कभी इसकी यह खबर लेती हूँ कि अपना मीटर पहले से ऑन रखती हूँ और इस शैतान से दुगुना-तिगुना, चौगुना किराया वसूल करती हूँ । बेटे को छटी का दूध याद आ जाता है । हाँ, एक बात तो मैं बताना ही भूल गई जब भी मैं इसके दुर्व्यवहार से परेशान हो जाती हूँ तो अपने को बीमार कर लेती हूँ या पैट्रोल सड़क पर गिरा देती हूँ ।
स्कूटर- बहिन, आप पैट्रोल को सड़क पर बेकार क्यों बिखेर देती हो?
टैक्सी- भाई, आपको पता नहीं गंदे आदमी को सबक सिखाओ, उसके साथ शैतानी करो । तब ही उसको अक्ल आती है।
स्कूटर- खैर, तुम्हारा सिद्धान्त तो ठीक है, परन्तु हमें भी अधिक स्वार्थी नहीं होना चाहिए ।
टैक्सी- भाई, स्वार्थी और खुदगर्ज़ को पाठ पढ़ाने के लिए यही एक तरीका है कि-
शठम प्रति लठं कुर्यात सादरम प्रति आदरम ॥
(मूर्ख के साथ मूर्खता का ही बर्ताब कर, सज्जन के साथ सज्जनता का ।)
स्कूटर- अजी, साइकिल में तो ऐसा ख़्रर्च ही नहीं होता । फिर भी मनुष्य उसके साथ भी उसकी मर्ज़ी के मुताबिक काम नहीं करता ।
टैक्सी- मेरी बात तुम लोगों से ज़रा अलग है क्योंकि मैं तो किराए की टट्टू हूँ-मेरा मालिक मुझे किसी को किराए पर दे देता है । वह ड्राइवर या मनुष्य भी कम बेरहम नहीं होता । वह तिलों में से तेल ही नहीं निकालता बल्कि मेरी पूरी जान ले लेता है । मेरे मालिक को धोखा देता रहता है । किराएदारों से तो पूरे पैसे चार्ज कर लेता है । बेचारे मेरे मालिक को तो थोड़ा बहुत देकर बेवकूफ बनाता है और जब चाहे मुझे बीमार बनाकर डॉक्टर की दवाई के मुफ्त के पैसे यह मनुष्य मेरे मालिक से चार्ज कर लेता है ।
ट्रैक्टर- यह किस्सा जो आपके साथ होता है, उसका पचास प्रतिशत भाग हमारे साथ भी होता है । मेरा मालिक ड्राइवर से परेशान है । मालिक ड्राइवर को हर तरह की सुख-सुविधा देता है, फिर भी ड्राइवर (मनुष्य) जब चाहे मुझमें कोई न कोई खराबी बताकर मालिक को धोखा देता है । मालिक उसको काफी पगार देता है-बख्शीश भी यानि कि इनाम के पैसे देता है,मगर फिर भी महीने में सत्रह दिन ही यह मुझे ठीक-ठीक चलाता है, बाक़ी दिन घर में बैठता है। आराम से बैठता है-बोलो, यह कहां की दुकानदारी है।
साइकिल- (बीच में) देखो, दादा! तुम बुरा तो मान जाओगे, लेकिन मैं जो भी बात कहूंगी, साफ कहूंगी-मैं आदमी को ईमानदर नहीं ठहराती मगर इतना ज़रूर है कि आपके धंधे में और भाई टैक्सी वाले के धंधे में कोई फर्क नहीं। जैसा बर्ताव टैक्सी वाला सवारियों के साथ करता है, मीटर में कुछ पैसे आते हैं और टैक्सी वाला मीटर में बदमाशी करके कुछ का कुछ चार्ज़ करता है । यह कोई ईमानदारी का काम है क्या? जो मीटर में आए वही सही दाम लेना चाहिए तो इसमें क्या खराबी है। आदमी अथवा टैक्सी के मालिक ने टैक्सी खरीदने में पैसे लगाए-उसको उसका कुछ प्रोफिट तो मिले या कोई उसको हर प्रकार की हैरानी और परेशानी दे? यह तो सरासर अन्याय है ।
ट्रैक्टर- बहिन! हम ड्राइवर को भी तो कुछ मिले या सब कुछ मालिक ही उड़ा जाए और हमारी मेहनत का हमें कुछ भी न मिले? बहिन साइकिल! आप तो इंडीपेडेंट हैं, हमारे साथ बहुत लफड़े हैं, पुलिस वाले भी हमारे फायदे में शामिल हैं-यदि यह सब मालिक को ही देना है तो.......
मोटरकार- देखो, बड़े भाई, हूँ तो मैं भी दु:खी क्योंकि मैं भी अपने मालिक की अकेली सवारी हूँ लेकिन ड्राइवर का लफड़ा मेरे साथ भी आप जैसा ही रहता है । स्कूटर, साइकिल की बात हमसे भिन्न है-लेकिन टैक्सी, ट्रैक्टर, मोटरकार तीनों की दशा एक सी है। हमें लोग बदनाम ज़रूर करते हैं- और न्यायपूर्वक देखा जाए तो बात सही भी है-हम तीनों अपने मालिक के साथ बेईमानी करते हैं । वे आदमी हैं, हमें भी पैसे अथवा पगार देने में परेशान करते हैं । अगर हमारा कोई पुर्जा टूट जाता है या कोई और खराबी हो जाती है हमारे में तो वे उसको ठीक कराते हैं पर मालिक तो हमें ही चोर ठहराता है । कहता है, हम उनमें से पैट्रोल निकाल कर पी जाते हैं ।
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