प्रस्तुत नाटिका "कुछ तो लोग कहेंगे" मेरी पुत्री जब कक्षा सात में थी तो उसने अपनी हिंदी अध्यापिका गीता खन्ना के साथ इसे किया था । उसने इस नाटिका में बहू का अभिनय किया था । यह नाटिका भी गीता खन्ना के द्वारा लिखा गया है । इस नाटिका का अंत नाटिका में प्रयोग किए गए मुहावरों और कहावतों के पोस्टर बना उन्हें हाथ में उठाकर भाग लेने वाले सभी बच्चों ने मंच पर आकर दर्शकों के सामने सिर झुकाकर अभिवादन कर किया ।आशा है कि आपको यह नाटक अच्छा लगेगा।
कुछ तो लोग कहेंगे
दृश्य एक
(दृश्य आरम्भ होता है। चार लोग हाथ में चार बोर्ड लेकर प्रवेश करते हैं जिस पर लिखा है ’कुछ’ ’तो”लोग”कहेंगे’ । वे उल्टे-सीधे तरीके से खड़े होते हैं।)
सूत्रधार १- ये मुए चारों मूर्ख के मूर्ख ही रहेंगे।
सूत्रधार २- कितना समझाया था कि ठीक से खड़े होना।
(दोनों रंगमंच पर जाकर उन्हें क्रम से खड़ा करते हैं। इतने में ही उनके पीछे एक झुँड आता है, सबसे आगे मूसरनान हैं। सूत्रधार २ इशारे से सुत्रधार १ से पूछता है कि ये लोग कौन हैं?)
रामवेत स्वर में- "हे गंगा मैया हमका शरण में लई लो
हम तो भए हैं बड़े दु:खी अब हाय राम" (दो बार)
(ऐसा कहते हुए वे रंगमंच से बाहर निकल जाते हैं।)
सूत्रधार २- अरे भाई, ये सब ऐसी रोनी सूरत बनाकर, गाते हुए कहाँ चले जा रहे हैं।
सूत्रधार १- अरे भैया! अब क्या बताएँ, इनकी कहानी भी बड़ी विचित्र है, सुनना चाहोगे?
सूत्रधार २- हाँ, हाँ , क्यों नहीं?
सूत्रधार १- तो सुनो!
(दोनों रंगमंच से बाहर चले जाते हैं)
दृश्य दो
सास- (गुस्से में प्रवेश करती हुई) बहूरानी! अरे ओ बहूरानी!
बहू- आई सासू जी।
सास- जब देखो तब मेरे बेटे के कान भरती रहती है।
बहू- लो सुन लो जी! अब मैंने क्या कह दिया?
सास-तूने उससे कहा नहीं कि चलो जी! कहीं और चलते हैं। इस बुढ़िया की बक-बक सुनते-सुनते कान पक गए हैं।
बहू- मेरी तौबा! मेरे बड़ों की तौबा! ’आग लगे मेरी जीभ में ’ जो मैंने ऐसी बात कही हो।
सास- बहुत हो गया। अब इस घर में या तो तू रहेगी या मैं।
बहू-रहूँगी तो मैं यहाँ , मेरे मिस्टर जी का घर है।
सास-तेरे मिस्टर बनने से पहले तो वो मेरा बेटा है। तू निकल है यहाँ से।
बहू-आप निकालिए।
सास-तू
बहू-आप
(इसी तू-तू, मैं-मैं, में मूसरनाना का प्रवेश)
मूसरनाना- भाभी जी! आखिर बात क्या है? क्यों सवेरे-सवेरे मोहल्ले में कोहराम मचा रखा है।
सास- ये लो! आ गए मूसरनाना, दाल-भात में मूसरचन्द बनने।
बहू- इनकी तो आदत है, हर एक के लफड़े में टाँग अड़ाने की।
सास-(खुश होकर) पहली बार तूने सही बात कही।
मूसरनाना- ये लो! आप तो उल्टे हम पर ही बरस पड़ीं। हम तो आए थे आपका बीच-बचाव करने। हद हो गई। आपको कोई हक नहीं मेरे नाम का मज़ाक उड़ाने की। हम अभी जाते हैं गंगा जी में डूब कर मरने , न तो हम रहेंगे , न ही लोग हमारा मज़ाक उड़ाएंगे। और याद रखना कि मेरी हत्या का पाप तुम दोनों पर ही पड़ेगा।
सास-बहू- (हँसते हुए, व्यंग्य से) अरे! जा-जा बहुत देखे तेरे जैसे (हुँह, सभी मंच से निकल जाते हैं।)
दृश्य तीन
ये कैसी है दुनिया, ये कैसे हैं लोग
उड़ाएं मज़ाक, और हँसते हैं लोग
ये कैसी...........
(रास्ते में उन्हें भैंस मिली)
भैंस- क्यों मूसरनाना, आप बड़े उदास दिख रहे हैं, कहाँ जा रहे हैं?
मूसरनाना- हम तो गंगाजी में डूब कर मरने जा रहे हैं, क्योंकि लोगों की बातें सुनते-सुनते और मक्खियाँ मारते, हम थक चुके हैं।
भैंस- तब तो मैं भी आपके साथ चलूँगी।
मूसरनाना- क्यों?
भैंस-मुझे भी लोग कहते हैं ’ भैंस के आगे बीन बजाए, भैंस खड़ी पगुराय’ , ’काला अक्षर भैंस बराबर’ ’अक्ल बड़ी कि भैंस’। तुम्हीं बताओ मूसरनाना, क्या मुझे कुछ अक्ल ही नहीं है। मैं भी आप ही के साथ गंगा में डूब मरती हूँ।
(नेपथ्य से "ये कैसी है दुनिया........)
(चलते-चलते रास्ते में घोड़ा मिला)
घोड़ा- कहाँ चल दिए सुबह-सुबह?
मूसर और भैंस- (सारी बात इशारों में कहते हैं)
घोड़ा- तब तो मैं भी आपके साथ चलूँगा क्योंकि मुझे भी लोग कहते हैं ’घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या’? आप ही बताएँ नाना, दिन-रात मेहनत करके क्या हम घास भी न खाएँ? (घोड़ा भी नाना के साथ हो लिया)
नेपथ्य- ये दुनिया से दुखियारे, देखो चल दिए कैसे थके हारे ये दुनिया......
(राह में आगे चलकर एक ऊँट मिला)
ऊँट- ये आप लोग ऐसे मुँह लटका कर कहाँ जा रहे हैं?
मूसर, घोड़ा और भैंस- (सारी बातें इशारों में कहते हैं)
ऊँट-मैं भी आपके साथ चलूँगा।
सभी-आखिर तुम हमारे साथ क्यों चलने लगे?
ऊँट-हमारी रचना तो भगवान ने बनाई है, फिर मैं लोगों के ताने क्यों सुनूँ कि ’ऊँट के मुँह में जीरा’ ’पता नहीं ऊँट किस करवट बैठेगा’?
सभी- हाँ, हाँ, भाई चलो।
(सभी चल देते हैं। नेपथ्य से देखो ये दुनिया है कैसी खराब, किसी के भी दु:ख को नहीं समझे ये जनाब’)
(रास्ते में कुत्ता मिला)
कुत्ता- (दर्शकों की ओर देखते हुए) दाल में कुछ काला नज़र आता है। ज़रा पता करके आता हूँ।
कुत्ता- क्यों जनाबे आलियों? आखिर माज़रा क्या है?
सभी- (इशारों में बताते हैं)
कुत्ता- मैं भी आप लोगों के साथ गंगा में डूब कर मुक्ति पा लेता हूँ।
सभी- अब तुझे क्या हो गया?
कुत्ता- मैं इंसान का सबसे वफादार जानवर हूँ, फिर भी लोग मुझे गाली के रूप में प्रयोग करते हैं। ’कुत्ते की मौत मरना’, ’धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का’ जैसी बातें करते रहते हैं।
(आगे मार्ग में बंदर-बिल्ली और चूहा मिलते हैं)
तीनों- हमें अभी पता चला कि आप सभी, के नामों पर मुहावरे और लोकोक्तियाँ यानि कि idioms और proverbs बनाकर लोग आपका मज़ाक उड़ाते हैं ।हम भी आपके साथ चलेंगे।
सभी- क्यों?
बन्दर-मुझे लोग कहते हैं ’बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद’, ’नाचे कूदे बांदरी खीर खाए फकीर’ (बिल्ली की ओर मुखातिब होते हुए) बोलो भई तुम्हें क्या कहते हैं?
बिल्ली-बताइए भला! चूहे तो हमारा भोजन हैं, फिर भी लोग कहते हैं, ’सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’, ’खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ (चूहे को कोहनी से मारते हुए) तू भी तो बता अपनी दु:ख भरी कहानी अपनी जुबानी।
चूहा- देखिए जनाब! (दर्शकों की ओर देखते हुए) जब आप सबको भूख लगती है तब आप कहते हैं,’ पेट में चूहे कूद रहे हैं’। बहुत मेहनत करने पर आपको भी फल मिले तो आप कहते हैं ’खोदा पहाड़ निकली चुहिया’, ये भी कोई तरीका है?
(लोग रंगमंच पर खड़े के खड़े रह जाते हैं)
सूत्रधार १- इसी प्रकार मार्ग में साँप, बगुला, मुर्गी, उल्लू , कौआ तथा मिट्ठू मिले। उन्होंने भी अपने-अपने कारण बताए, और मूसरनाना के साथ चल दिए।
सूत्रधार २- साँप अब ’आस्तीन का साँप’ नहीं बनना चाहते था ।
सूत्रधार एक- बगुला ’बगुला भगत’ सुनते-सुनते तंग आ चुका था।
सूत्रधार २- मुर्गी ’घर की मुर्गी दाल बराबर’ सुन-सुनकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते-लड़ते हार चुकी थी।
सूत्रधार १- उल्लू ’अपना उल्लू सीधा करना’ और मिट्ठू ’अपने मुँह मियाँ मिट्ठू’ सुनना नहीं चाहता था।
सूत्रधार २- और कौआ ’सयाना कौआ गंदगी पर बैठता है’ सुनते-सुनते ऊब गया था।
{सभी लोग एक स्वर में गाते हुए- हे गंगा मैया हमका शरण में लई लो
हम तो भए हैं बड़े दु:खी अब हाय राम।(दो बार)}
(गंगा ने इन सभी को अपनी ओर आते देखा तो घबरा गई)
गंगा- तुम सब मुझमें डूबकर क्यों मरना चाहते हो?
सभी- (दर्शकों की ओर इशारा करते हुए) इन लोगों ने हमारे नाम पर अब मुहावरे और कहावतें बनाकर हमेशा हमारा मज़ाक ही उड़ाया है। इसलिए अब हम और जीना नहीं चाहते और आप में डूबकर मर जाना चाहते हैं।
गंगा- तुम सब तो मुझमें डूबकर अपना पीछा छुड़ा लोगे पर मैं क्या करुँ? मुझे भी तो लोग कहते हैं ’मन चंगा तो कठौती में गंगा’। अब बोलो क्या मैं इस कठौती में समा सकती हूँ? लोगों का क्या है, उन्हें जो कहना है, कहते रहें। हमें अपना काम करते रहना चाहिए। अपने डूबने का विचार त्याग कर वापिस लौट जाओ।
सभी- (एक साथ) जय गंगा मैया की!
वही चार व्यक्ति फिर से ’कुछ तो लोग कहेंगे’ का बोर्ड लेकर प्रवेश करते हैं।
सभी गाते हैं-
सुन लो प्यारे एक बात
होना न तुम कभी उदास (२)
दुनिया का दस्तूर है
कुछ तो कहना ज़रूर है
सुन कर उसको कर दर किनार
होगा तेरा बेड़ा पार
दुनिया का दस्तूर है
कुछ तो कहना ज़रूर है। (२)
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