Friday 29 April 2016

खामोश पढ़ाई जारी है!/ Khamoshi Padai Jaari Hai written by K.P. Saxena

प्रस्तुत नाटक "खामोश पढ़ाई जारी है!"हम सब अध्यापक और अध्यापिकाओं ने अध्यापक दिवस के अवसर पर पिछले साल अपने छात्र-छात्राओं के सामने प्रस्तुत किया । हमने मूल नाटक में एक कहानी और जोड़कर थोड़ा -सा अलग कर दिया जिससे छात्र -छात्राएं और भी ज्यादा आनंद लें और साथ में सब अध्यापक और अध्यापिकाएं भी इस नाटक में भाग ले सकें । इस नाटक को मेरी सहकर्मी सीमा शर्मा ने इस रूप में परिवर्तित करके लिखा । आशा है कि आप को यह नाटक पसंद आएगा । 
                                   खामोश पढ़ाई जारी है !
(के.पी.सक्सेना द्वारा लिखित मूल नाटक का रूपान्तरण कर एक अन्य कहानी से जोड़कर नवीन रूप में नाटक)
धोबी- अरी ! सुनती हो।

धोबी- का है, सुबह-शाम सुनत हो, सुनत हो, करत हो, सुबह-सुबह लोग भगवान का नाम लेत हैं और इधर तुम्हारा गधा रेकत है ढ़ेंचु-ढ़ेंचु ।और , तुम सुनत-सुनत हो, सुनत करत सुबह-शाम यही चलत है।

धोबिन- अच्छा जाओ, अभो बहुत काम है ना! घाट पर जाओ, पर जाते-जाते मास्टर जी से मिल लेना।

                                                                दृश्य दो (स्कूल)
(मंच पर एक पाठशाला का दृश्य है। बैंचों पर - लड़के-लड़कियाँ बैठे हैं। ब्लैक बोर्ड के पास कुर्सी पर मास्टर जी उकड़ूँ बैठे ऊँघ रहे हैं।एक बैंच के पास दो छोटे-छोटे पिल्ले बंधे हैं और एक जालीदार पिंजड़े में एक तोता रखा टें टें चिल्ला रहा है।पीछे एक बैनर लगा है-"सर्वजंतु पाठशाला। यहाँ बच्चों तथा पशु-पक्षियों की मुफ्त पढाई होती है।" पाठशाला में बच्चे हल्ला मचा रहे हैं कक्षा में अध्यापक नहीं हैं।)

बच्चा - अकबर का नम अमरकोट में हुआ था।अकबर का नम अमरकोट में हुआ था। हेमू बनिए की आँख पर तीर लगा।हेमू बनिए की आँख पर तीर लगा।

बच्चा - अरे, यह क्या बोल रहा। रट्टू तोता-रट्टू तोता बड़ बड़ बड़ बड़।

बच्चा - देख मेरी कॉपी में यही लिखा है।

बच्चा - पानीपत की लड़ाई कब हुई थी?

बच्चा - मुझे नहीं पता हाँ कल रात मेरे माता-पिता में लड़ाई हुई थी।

बच्चा - सुनो, अकबर का जन्म सन १५५६ में पोरबन्दर गुजरात में हुआ था। वह जहाँगीर का बेटा था। उसने ताजमहल बनवाया था। महासंगीतज्ञ कालिदास इसके दरबार के नौ रत्नों में से एक थे।

बच्चा - वाह!वाह! क्या बात है? सब गड़बड़ है रट्टू तोता।

बच्चा - माउंट एवरेस्ट कहाँ है ? उसकी चोटी पर सबसे पहले कौन पहुँचा, रट्टू तोता? नहीं पता, मुझे पता है-यूरी गागरिन।

बच्चा - अरे मास्टर जी ने हमें मुहावरे याद करने को कहे थे- दूध का दूध, पानी का पानी अरे, ये क्या हुआ? दूध तो दूध है और पानी तो पानी है। फिर दूध का दूध और पानी का पानी , कुछ समझ में नहीं आया। छोड़ो इसे, दूसरा मुहावरा नौ दो ग्यारह होना, ऊँट किस करवट बैठेगा?

बच्चा - हमें क्या पता? रट्टू तोता। (बच्चा पाँच मुहावरे याद करते रहता है।)

बच्चा - एक और एक ग्यारह, नाक में दम करना

बच्चा - रट्टू तोता, रट्टू तोता|
(तभी मास्टर जी का प्रवेश)

सभी बच्चे- नमस्ते मास्टर जी।

मास्टर- अरे बच्चों, कितना शोर मचा रखा है? पूरा स्कूल आसमान पर उठा रखा है। चुप रहो। कुछ पढ़ो-लिखो।
लल्लू- जी मास्टर जी।

मास्टर जी (एक बच्चे को बुलाकर) -इधर आओ,तुम इन सबमें जरा कम गधे हो ।यहाँ खड़े होकर तुम इन सबको सभी मुहावरे और कहावतें पढ़ाओ।
(खुद मास्टर जी जम्हाई लेकर नींद में नाक बजाने लगते हैं)

लल्लू- प्यारे बच्चों, शान्त हो जाओ।तुम दोनों क्या बात कर रहे हो? तुम इस चौथी कक्षा में ही चार साल से डेरा डाले बैठे हो। बताओ इस मुहावरे का अर्थ- नाच आये, आँगन टेढ़ा।

जलेबी -मेरी कॉपी में लिखा है। मेरी कॉपी कल मेरी मुर्गी नकल करने के लिए ले गई और चोंच मार कर नोंच डाली। वैसे मैं अर्थ बताता हूँ। इसका अर्थ है- तूने नाच-नाच कर आंगन टेढ़ा कर दिया है। अब नाचना बंद कर , आंगन सीधा कर।

टुनटुनी- ये गलत बता रहा है, मैं बताता हूँ।

जलेबी- चुप बैठ।

टुनटुनी- रट्टू तोता!

मास्टर - (नींद में ही) शाबाश! शाबाश! खूब मन लगाकर पढ़ो।

लल्लू- तुम बैठ जाओ जलेबी।टुनटुनी, अब तुम बताओ। नीम हकीम खतरा जान-इसका क्या मतलब है?

टुनटुनी- यह तो बड़ा ही आसान है। इसका मतलब है कि हकीम, तू नीम के पेड़ के नीचे मत बैठ, तेरी जान को खतरा है।

मास्टर - (नींद में ही) बहुत अच्छे। ऐसे ही मेहनत करते रहो।

लल्लू- मुनमुन, तुम बताओ, नेकी कर कुएँ में डाल।

मुनमुन- मुझे कुएँ से डर लगता है। मैं नहीं बताऊँगी।

लल्लू- अच्छा घसीटे , तुम बताओ।

घसीटे- इसका मतलब है कि तू जबरदस्ती सबके साथ नेकी कर, अगर कोई राजी हो तो उसे कुएँ में डाल दे।

लल्लू- तुम खड़े हो जाओ, तानपुरे।
(एक बेहद मोटा थुलथुल लड़का उठ खड़ा होता है।)

तानपुरा-पूछो, मैं ज्यादा देर तक खड़ा नहीं हो सकता।

लल्लू-बताओ, घर की मुर्गी दाल बराबर।

जलेबी- मैं बताता हूँ।

टुनटुनी- मेरे घर में मुर्गी नहीं है इसलिए मुझे पता नहीं है कि उसे क्या खिलाते हैं?

तानपुरा- मैं बताता हूँ अगर मुर्गी पाली हो तो उसे बराबर दाल खिलाते रहो। नहीं तो वह अंडा नहीं देगी।

मास्टर- (नींद में ही) यह कौन कक्षा में अंडे दे रहा है?

सभी बच्चे-(एक साथ) कोई नहीं मास्टर जी। आप मज़े से सोते रहिए।

लल्लू- तानपुरा , तुम बैठ जाओ। हुड़कचुल्लू, तुम खड़े हो जाओ

हुड़कचुल्लू- (हकलाता है) ......ऊछो (पूछो)

लल्लू-अब तुम बताओ - जितनी चादर उतने पैर पसार।

हुड़कचुल्लू- ऊछो----------आदरें (चादरें) नाप लो जिसकी आदर लंबी हो, उसी में घुसकर पैर पसार लो।

लल्लू- शाबाश! अगर चादर छोटी पड़ जाए तो?

हुड़कचुल्लू- तो क्या?जितने ऐर(पैर) आदर के बाहर निकले रहें , उन्हें काटकर दूसरी आदर में रख सो , छुट्टी हुई।

मास्टर जी- (नींद से चौंककर) वाह......वाह...... शाबाश हुड़कचुल्लू, मेरा मतलब हुड़कचुल्लू, ऐसे ही मन लगाकर पढ़ो। (आँखें मूँद लेते हैं.....नाक बजने लगती है।)

लल्लू- बस एक प्रश्न और पूछूँगा। लुधियाना सिंह तुम बताओ।

लुधियानासिंह-(खड़े होकर) पुच्छो जी! अस्सी तैय्यार हैं।

लल्लू- बताओ, पाँच जनों की लाठी , एक जने का बोझ।

लुधियानासिंह- लो सुनो! पाँच आदमी मिलकर एक आदमी को लाठी मारो जब बेहोश हो जाए , तो उसका बोझ लाठी पर टाँग कर उसके घर पहुँचा दो। होर पुच्छो!

तानपुरा -ये गलत बोल रहा है।
(सब ताली बजाते हैं। जोर-जोर से हँसते हैं। बहुत शोर मचाते हैं।)(प्रधानाचार्य जी का प्रवेश)

प्रधानाचार्य- मास्टर जी, आप खुद मज़े से सो रहे हैं और दूसरे की नींद का कोई ध्यान नहीं है। इतना शोर मच रहा है, बहुत गल्त बात है।

मास्टर जी (हड़बड़ा कर उठते हुए)- क्षमा करें। अब शोर नहीं होगा। आप जाकर सोइए।
(प्रिंसिपल गुस्से में चले जाते हैं)

मास्टर- प्यारे बच्चों,तोतोंतुम्हें ध्यान रखना चाहिए कि प्रिंसिपल साहब सो रहे हैं। चुपचाप पढ़ो। जिसे शोर मचाना हो, वह मुँह बन्द करके शोर मचाओ ताकि आवाज़ हो। शाबाश!
(तभी घंटी बजती है और हिन्दी के मास्टर जी चले जाते हैं)

सभी बच्चे-(संस्कृत में गाना गाते हैं एक साथ)
कष्टम इष्टम
कष्टम कष्टम बहुकष्टम
प्रात: काले उत्थानम
प्रश्नानाम पुनरुत्तरकरणम
पृष्ठे पुस्तकभारोद्वहनम
कष्टं कष्टं बहुकष्टम॥
सायं प्रात: क्रीड़ाभ्यास:
गण्ये पुण्ये मधुरग्रास:
कक्ष्यायां तु सदा परिहास:
इष्टम इष्टम बहु इष्टम॥२॥
पठनं पाठश्रवणं कष्टम
लेखनमेव नितातं कष्टम
अनुशासनमेव हि कष्टम
कष्टम कष्टम बहुकष्टम॥३॥
नवगीतानां गानम इष्टम
अहर्निशं चलचित्रम इष्टम
अतिसहकारी मित्रम इष्टम
शिष्टम सर्वं बहु कष्टम ॥४॥

दूसरा मास्टर- ये क्या शोर मचा रहे हो? तुम लोग जानते नहीं हो कि मैंने जाने कितने गधों को आदमी बनाया है। चलो, किताबें निकाल कर पढाई शुरु करो
(धोबी मास्टर जी को यह कहते सुन लेता है)

धोबी-(अपने आप से) मास्टर जी कह रहे हैं कि अच्छे-अच्छे गधों को आदमी बनाया है। मैं अपना मोती गधा मास्टर जी के पास ले जाता हूँ। वे उसे आदमी बना देंगे। मेरी कोई औलाद नहीं है। इस तरह मेरे पास औलाद भी हो जाएगी।
(खुश होकर मास्टर जी के पास जाता है।)

धोबी- मास्टर जी! मास्टर जी!

मास्टर- क्या है? क्यों आसमान सिर पर उठा रहे हो? सब कुशल मंगल है।

धोबी- जब से मैंने सुना है कि आप अच्छे अच्छे गधों को इंसान बना देते हैं तो मुझसे रहा गया। मेरी आपसे विनती है कि मेरे कोई बच्चा नहीं है लेकिन मेरे पास गधे हैं, मेरे मोती को आप एक लड़का बना दें।

मास्टर- अरे भले आदमी, तुम्हारा दिमाग तो कहीं खराब नहीं हो गया? कहीं गधा भी आदमी बन सकता है?

धोबी- मैं अपने कानों से सुन चुका हूँ। आप जो कहेंगे मैं दूँगा, बस हाँ कर दीजिए।

मास्टर (समझ जाते हैं कि यह धोबी किसी तरह से मानने वाला नहीं है, उसे टालने के लिए कहते हैं) अच्छा भई, तुम इतनी ज़िद कर रही हो तो मैं तुम्हारी खातिर यह कर दूँगा। लेकिन (चुप्पी) इसमें समय लगेगा और साथ ही धन भी लगेगा।

धोबी-आप बताइए कि कितने पैसे लगेंगे?

मास्टर- दो सौ रुपए लगेंगे। और, वक्त दो महीने लगेगा।

धोबी- अभी गधा और पैसे दोनों लाता हूँ।

(धोबी गधे को मास्टर जी के घर पर बाँध कर और मास्टर जी को पैसे देकर चला जाता है।
(दो महीने बाद)

धोबी- मास्टर जी! मास्टर जी! क्या मेरा मोती इंसान बन गया। कहाँ है वो?

मास्टर- अरे भई , बहुत दिनों में दर्शन दिए। कहाँ थे इतने दिन? कोई अता-पता नहीं है तुम्हारा ? इधर हमें कितनी परेशानी हुई। तुम्हारा मोती बहुत बड़ा आदमी बन गया है। वह बहुत बड़ा जज बन गया है। जाओ जाकर उससे मिलो।

धोबी-वह मुझे पहचानेगा कैसे?

मास्टर- ज़रुर पहचानेगा। एक काम करो कि तुम अपने साथ उसका दानेवाला थैला भी लेते जाओ। तुम्हें तो वह भूल सकता है लेकिन उस थैले को नहीं भूल सकता।

धोबी-(खुश होकर) धन्यवाद मास्टर जी। अभी अपने मोती से मिलने जाता हूँ। मैं घर जाकर उसका थैला भी साथ लेते जाऊँगा।

(कचहरी का दृश्य)
जज-आर्डर!आर्डर! ये कौन चिल्ला रहा है? ये कैसा शोर है?

धोबी- (दरबान से झगड़ा करते हुए) मुझे अंदर जाने दो। मुझे अपने बेटे मोती से मिलना है।
(धोबी लड़-झगड़ कर किसी तरह कचहरी के अंदर पहुँच जाता है।)

धोबी- (जज से) मोती बेटे, देख मैं तेरा मालिक हूँ। अरे, चल घर। मैं तुझे लेने आया हूँ।
(जज को समझ नहीं आता कि यह आदमी क्या कह रहा है और किससे कह रह है?)

जज-आर्डर! आर्डर! कोई है? किसने इसे अन्दर आने दिया? बाहर निकालो इस आदमी को।
(धोबी को तभी मास्टर की बात याद आती है और वह फौरन उसे थैला निकाल कर दिखाता है। और कहता है)

धोबी- मुझे भूल गया। हे भगवान, मैं तेरा मालिक हूं रोज तू मेरे साथ घाट पर जाता था। मेरे प्यारे बेटे! मेरे बच्चे मोती! तू मुझे भूल गया! देख, ये मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ ? तेरा दाने वाला थैला! इसमें ही तू  खाना खाता था।

जज- ये कौन पागल है? निकालो इसे बाहर! आर्डर! आर्डर!

धोबी-(बड़बड़ाता हुआ जाता है) इंसान क्या बन गया, मुझे पहचानता ही नहीं है। मेरा मोती गधा ही अच्छा था। मास्टर जी को कहता हूँ। मेरा गधा वापिस दें दे।
(धोबी का मंच से बाहर जाना और पर्दा गिरना)


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