यह नाटक अंग्रेजी के लेखक डॉक्टर सूज की किताब से प्रेरित होकर लिखा गया है । यह नाटक उनकी किताब पढ़ी तो मुझे और मेरी सहेली विशाखा को उनमें और संत कबीर की सोच में काफी समानता दिखाई दी। फिर क्या था ? उसी की प्रेरणा से मैंने हिंदी में अपनी समझ के अनुसार डॉक्टर सूज की किताब "Mc Elligot’s pool!" की भावनाओं और विचारों को लिख डाला । फिर मेरी एक और सहेली राजश्री सेन जो अंग्रेजी की अध्यापिका हैं । वे भी संत कबीर और डॉक्टर सूज की प्रशंसिका हैं , उन्होंने इस नाटक में मानो जान ही भर दी । उन्होंने इस नाटक की शुरुआत और अंत डॉक्टर सूज के द्वारा लिखे कथनों से लिखा । इसके साथ ही उन्होंने अंग्रेजी में संवाद बोलने और अभिनय करने वालों को प्रशिक्षित किया । इस नाटक में करीब ४५ से ५० मिश्रित माध्यमिक समूह के कक्षा ५,६ और ७ के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया । सभी ने इस नाटक की तैयारी में भाग लिया । इस नाटक में संत कबीर के गानों को मेरी एक और सहेली दीपा कामथ जो प्रह्लाद जी की शिष्या है ने छात्र-छात्राओं को सिखाया । उसी ने एक और अन्य मेरी सहेली सुनीता जो नृत्य अध्यापिका हैं के साथ छात्र -छात्राओं को कबीर जी के गानों पर नृत्य भी सिखाया । हमारे स्कूल की चित्रकार नलिनी जयराम ने सभी छात्र -छात्राओं के साथ इस कविता का अर्थ चित्र रूप में कथा कहते हुए रंगों से स्पष्ट किया । नाटक के साथ मंच के एक और इन पेंटिंगों को चित्र कथा के रूप में दर्शाया गया । इसलिए आप स्क्रिप्ट में जगह -जगह पेँटिगों की संख्याएं लिखी देखेंगे।इसके साथ ही मिडिल स्कूल के अन्य अध्यापको और अध्यापिकाओं ने इस नाटक के प्रस्तुतीकरण में मेरी पूरी मदद की । सभी के सहयोग और छात्र -छात्राओं की रुचि और मेहनत से यह नाटक सफल रहा । मैं अपने सभी सहयोगियों की आभारी हूँ । आशा है कि आप सब को यह नाटक रोचक और मनोरंजक लगेगा ।
प्यारा उथला ताल कबीरा का !
INTRODUCTION BEFORE THE PLAY-What happens when one marries the world of apparent absurdity to the world of deep philosophy? (Pause)
Lets find out on visiting the presentation put forth by the middle school Hindi Students.
Dr. Seuss'book "McElligot's Pool" an apparent tale of nonsense limericks has been welded with dexterity with the philosophical sayings of Kabir, the mystic saint poet. The result is NOT ambiguity but a soul touching, conscience awakening message that is relevant and helpful in both the social and spiritual content.
Narrator 1: What are you doing? क्या कर रहे हो ?
Narrator
2{Seussian Dress}: (Pretending not to hear)
Narrator 1: (Repeats) Hello! Hello! (Goes around trying to distract him)(To himself) He is deliberately trying to ignore me, anyways he seems to be engaged in some sort of nonsense…….I’ll ignore him too and go along…hun, nonsense (Exaggerated tone in nonsense)
Narrator 2: (Suddenly in a wise tone) “I like Nonsense; it wakes up the brain cells.”
Narrator 1: (Threatening) Don’t try to sound too philosophical…(before he can complete)
Narrator
2: “ If you never did you should
These things are fun and
fun is good.”
Narrator 1: Dismissive initially. Borrowed lines……nice rhyme…..from whom?
Narrator 2: Dr. Seuss.
Narrator 1: Dr. Seuss?
Narrator
2: “Think left and think right and think low and think high. Oh, the thinks you can think up if
only you try!” Dr. Seuss again. (Says it
dramatically, bowing as he says it)
Narrator
1: ये सूज है कौन ?
Narrator
2: (Flourish of his hand) Theodor Geisel Oorf Dr. Seuss, children’s fantasy writer…. कहते हैं
“Fantasy is the most
essential element of living.”
मज़े ही मज़े हैं उनकी books में - Wild and whacky yet insightful हँसते -हँसते बहुत कुछ बोल देते हैं उनके ये apparently nonsense rhyme कबीर की deep philosophy से बहुत मिलते हैं|
Narrator 1: Kabir, Hindi poet कबीर के साथ -कैसे ? ! (Surprised)
Narrator
2: (In a patronizing tone) “Don’t judge a book by its cover!”
(Thinks) एक काम करते हैं । चलो, तुम्हें उनकी wild and whacky दुनिया में ले चलते हैं । (Freezes) {Transition- Enter
third Narrator} 1st PAINTING
Narrator 3: (Dressed similarly as Narrator 2) आज के presentation की script और poem Dr. Seuss की book “Mc Elligot’s pool” से inspire होकर ही लिखी गई है ।
The
fantastical tale of hope and optimism tells about a young lad who refuses to be
put off when he’s told that there are
no fishes to be found in Mc Elligot’s pool.
Brushing
aside adult skepticism he chooses instead to be patient, he lets his
imagination run away with him as fancies all the weird and outrageous fish of the
wild heading his way!
Narrator
4: हमारी poem का character Kabira,
Narrator
3: (Interrupts) Hindi poet Kabir.
Narrator
4: जी नहीं Hindi poet Kabir नहीं | हमारा कबीरा तो मस्त मौला है, वो अपनी धुन में खोया हुआ वैली के BAND से निकलकर Agra tal में फिर कावेरी में ना जाने कहाँ -कहाँ घूमता हुआ जाता है ? पता नहीं, उसकी मंजिल क्या है? क्या उसकी कल्पना है ?
Brushing aside adult skepticism he chooses instead to be patient, he lets his imagination run away with him as fancies all the weird and outrageous fish of the wild heading his way!
Narrator 3: (Interrupts) Hindi poet Kabir.
अरे देखो, पगला-दीवाना-सनकी कबीरा !
बैठा टीले पर, अपनी धुन में है खोया ॥
उथले ताल के पानी में , है उसने काँटा डाला ।
टकटकी लगे मछली फँसने की , है राह तक रहा ॥१॥
उथले ताल के पानी में , है उसने काँटा डाला ।
टकटकी लगे मछली फँसने की , है राह तक रहा ॥१॥
अरे ओ ,सिरफिरे, पगले कबीरा ।
लगता है दिमाग , सटक तेरा ॥
लगता है दिमाग , सटक तेरा ॥
पानी है इस ताल का, गंदा- मटियारा - मैला ।
है मुश्किल किसी भी मछली का, इसमें जी पाना ॥ २ ॥
गंदे -मटियारे पानी का, ताल यह छोटा -सा ।
बोतल , खाली डिब्बों , कचरे-से लबालब भरा ॥ 2nd PAINTING
खोजने से कांटे में तेरे , आ फंसेगा कोई जूता ।
या, फिर तेल-घी-आटे का, टीन का खाली डिब्बा ॥ ३ ॥
सुनकर ये सब बोल, कबीरा ने ज़ोऱ से ठहाका लगाया ।
अनसुना कर, मुस्कराकर , अपनी ही धुन में बोला ॥
चढ़कर गिरना , गिराकर चढ़ना , हार न मानना ।
चींटी यह सीख सिखाती, कोशिश करते ही रहना ॥४॥
आस नहीं , जीत की , पर जीवन में कुछ करने की । दिल में कहीं कसक , छुपी है मेहनत करने की॥
खोजते हुए पा जाउं , भेद इस ताल की गहराई का ।
गहरे पानी में पैठ ही , किसी को मोती है मिलता ॥५॥ 3rd PAINTING
ऊपर से दिख रहा, छोटा -सा, गंदा -मटियारा ।
कौन जाने ? कहाँ तक है यह फैला ?
कहीं तो टाँका भिड़ा होगा, किसी से इसका । ज़रूर कहीं दूर , किसी दरिया में होगा अटका ॥६॥
कहीं तो टाँका भिड़ा होगा, किसी से इसका । ज़रूर कहीं दूर , किसी दरिया में होगा अटका ॥६॥
नीचे ही नीचे रसातल में , गहरे में जा मिला ।
गंदा -मटियारा पानी इसका, उसी में जा समाता ॥ ७ ॥
{ संत कबीरदास जी के शब्दों में - जिन ढूंढा तीन पाइयां , गहरे पानी पैठ मैं बौरा डूबत डरा , रहा किनारे बैठ ॥}
{कहे कबीरा सुनो भाई साधो ....
दरियाव की लहर , दरियाव है जी ।
उठे तो नीर है, बैठे तो नीर है ।
दरिया और लहर में भिन्न कोयम ॥
उठे तो नीर है, बैठे तो नीर है ।
दरिया और लहर में भिन्न कोयम ॥
उठे तो नीर है, बैठे तो नीर है ।
कहो जी दूसरा किस तरह होयम ॥
कहो जी दूसरा किस तरह होयम ॥
उसी का फेर के नाम , लहर धरा ।
लहर के कहे , क्या नीर खोयम ॥
लहर के कहे , क्या नीर खोयम ॥
जक्त ही के फेर सब , जक्त पर ब्रह्म मैं ।
ज्ञान कर देखो , कबीर गोयम ॥ }
ज्ञान कर देखो , कबीर गोयम ॥ }
Narrator
1-To divide and to make distinctions on any grounds comes naturally to us
humans. Kabir says that the “leher” and the “Dariya” can’t be too
different-they are merely man made divisions for convenience.
Narrator
4-Somewhere we are all connected; we are all one irrespective of the apparent
division.
Narrator 2- It might go along, down where no one can see, It might keep on flowing…..perhaps…..who can tell?...
Narrator 3- This might be a river, Now mightn’t it be, Connecting McElligot’s Pool With The Sea! 4th PAINTING
क्या पता ? कौन जाने ? वैली से निकला ?
घूमता -फिरता जंगलों में सैर सपाटा करता ॥
बहता -बहता अगरा ताल में जा समाता ।
अनजाने रास्तों में से होता, कावेरी की गोद में गिरता ।। ८ ॥
अनजाने रास्तों में से होता, कावेरी की गोद में गिरता ।। ८ ॥
कावेरी की गोद , नहीं इसकी अभिलाषा ।
चाह इसकी अठखेलियाँ, कर सागर में समाना ॥
सपना है मेरा, प्यारी-सी मछली से मिलन का ।
कहीं दूर से तैरती हुई , आ पहुंचे इस दिशा ॥ ९ ॥
चाह मेरी , उथले ताल की , मापनी है इसकी गहराई ।
करो तब पहचान , मेरे सब्र और सहनशीलता की ॥
आस अगर दोनों ओर की , हो एक जैसी गहरी ।
तो अवश्य उथले ताल में ही मिलेगी मंजिल मेरी ॥ १० ॥
कहीं दूर से तैरती हुई , आ पहुंचे इस दिशा ॥ ९ ॥
चाह मेरी , उथले ताल की , मापनी है इसकी गहराई ।
करो तब पहचान , मेरे सब्र और सहनशीलता की ॥
आस अगर दोनों ओर की , हो एक जैसी गहरी ।
तो अवश्य उथले ताल में ही मिलेगी मंजिल मेरी ॥ १० ॥
{ कबीरदास जी के शब्दों में -
धीरे -धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा , ऋतु आए फल होय ॥
धीरे -धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा , ऋतु आए फल होय ॥
अब थारा लाल समंदरडारा माय There are rubies in your ocean
समुंदर सा सदगुरु किया , दिया अविचल ज्ञान
जहां देखूं तहां एक ही , और दूजा नहीं आन
I got a true guru , vast as an ocean, He gave me
timeless wisdom.
Wherever I look I see only One, There is no second
or other.
अब थारा लाल समंदरडारा माय There are rubies in your ocean
हो मरजीवा कोई , लाल ल्यावे हो ! A brave pearl-diver will bring up the ruby, oh yes
हो मरजीवा कोई , लाल ल्यावे हो ! A brave pearl-diver will bring up the ruby, oh yes
हो हो हो
हा मरजीवों का देस अज़ब है, Pearl-divers live in a wondrous land.
हा मरजीवों का देस अज़ब है, Pearl-divers live in a wondrous land.
अरे भाई देस अज़ब है
नुगरा थारा ना पाया गुरा जी Those without a guru can’t understand.
हा सुगुरा री गति , ए जी भाई सुगुरा जाने Only one with a guru,
नुगरा थारा ना पाया गुरा जी Those without a guru can’t understand.
हा सुगुरा री गति , ए जी भाई सुगुरा जाने Only one with a guru,
सुगुरा री गति , ए जी भाई सुगुरा जाने
अब ई नगरा की बुरमावे?knows what makes a brave one tick. What will others make of it ?
हो हो हो
अब ई नगरा की बुरमावे?knows what makes a brave one tick. What will others make of it ?
हो हो हो
अब थारा लाल समंदरडारा माय
हो मरजीवा कोई, लाल ल्यावे हो ! A brave pearl-diver will
bring up the ruby, oh yes
हा आप तजी ने बैठीगया समुंद में You gave up the ‘I” and
sat in the ocean.
मोतीड़ा से सुरत लगाया गुरा जी your awareness fixed on the jewel.
मोतीड़ा से सुरत लगाया गुरा जी your awareness fixed on the jewel.
आप तजी ने बैठी गया समुंद में You gave up the ‘I” and sat in the ocean.
मोतीड़ा से सुरत लगाया गुरा जी your awareness fixed on the jewel.
मोतीड़ा से सुरत लगाया गुरा जी your awareness fixed on the jewel.
हीरो हीरा लाल ए जी भाई पदारथ ल्याया Such rubies, pearls and gems surfaced,
अब यो समंदर छोड्यो नी जावे lIt is difficult now, to
leave this ocean.
हीरो हीरा लाल ए जी भाई पदारथ ल्याया Such rubies, pearls and gems surfaced,
हो मरजीवा कोई, लाल ल्यावे हो !
A brave pearl-diver will
bring up the ruby, oh yes
हो हो हो ----
हा हर दम का सौदा कर ले रे बंदे Make a contract with every breath, my friend
सोहम ताल बजाया गुरा जी Swing
to your breath’s rhythm.
हर दम का सौदा ए जी भाई कर ले रे बन्दे
सोहम ताल बजाया गुरा जी
रत्ती एक स्वांसा हेरो इना घट में Search your body for the
breath of a breath.
रत्ती एक स्वांसा ए जी भाई हेरो इना तन में
तब यह पवन पुरुष परकाशेगा Then the being of breath
will manifest !
हो मरजीवा कोई, लाल ल्यावे हो ! A brave pearl-diver will
bring up the ruby, oh yes
हो हो हो
अब थारा लाल समंदरडारा माय There are rubies in your ocean
हो मरजीवा कोई, लाल ल्यावे हो ! A brave pearl-diver will
bring up the ruby, oh yes
5th
PAINTING
Narrator
1: A life of awareness and intense consciousness fortitude is sure to reap “rich
jewels.”
Narrator
2:
“If you want to catch beasts you don’t see everyday.
You have to go places quite out of the way .
You have to go places no others can get to
You have to get cold and you have to get wet too.”
कैसी होगी मंज़िल ? नहीं, नहीं चाह मेरी ।
नहीं, नहीं, मछली मेरी, सुनहरी-प्यारी सी ॥
लैला की पतली -सी , सुनहरी उंगुलियों जैसी ॥ ¬
गोल -मटोल, छोटी -छोटी , लम्बी पतंग डोर जैसी ॥ ११॥
कैसे आकार, रूप -रंग वाली होगी मेरी मछली ।
नहीं छोड़ी मैंने आशा, सबसे विचित्र मछली की ॥
होगी अजूबी -सी , मेरे प्यारे -से झबरे कुत्ते जैसी ।
लम्बे -लम्बे कानों वाली , प्यारी -सी नाक उसकी ॥१२॥
होगी मेरी मछली की पूंछ , नोकदार पहिये जैसी । 6th PAINTING
शान से झूमते फिन , पताका जैसे होंगे उसके ॥
हिरनी की तरह पानी में , भरने वाली मस्त कुलांचे ।
लम्बी -लम्बी मूंछों वाली , तैरती मानो पनडुब्बी जैसे ॥१३॥
लम्बी -सी घुमावदार नाक में , मक्खी न बैठने देने वाली ।
मुर्गे की तरह सुबह , बाँग देकर जगाने वाली ॥
शतंरज बोर्ड, नहीं -नहीं , स्ट्रॉबेरी जैली के पेट वाली।
अरे, देखो दरियाई घोड़े जैसे , तेज़ भागने वाली ॥१४॥
मुश्किल है पर असम्भव नहीं , पाना मछली मेरी । अजीबोगरीब वह होगी , भोली गाय जैसी ॥ गरमी से तंग आ , तैरने की होड़ करती ॥
छपाक -छपाक उछाल भरती , लगती बिलकुल परी -सी ॥१५॥
है दूर कहीं लम्बी -सी , असंख्य झुकावों वाली । 7th PAINTING
दोनों तरफ छोटे -छोटे मुंह , उन से आवाज़ें करतीं ॥
हाय रे किस्मत ! कैसे पहुंचे , पास उसके आवाज़ मेरी ?
लगता है शेर -सी , भयानक दहाड़ है उसकी ॥१६॥
छोटू -मोटू -गोलू -मोलू , नहीं होगी मछली मेरी ।
होगी वह लम्बी -बड़ी , विशालकाय रूप वाली ॥
सब्र और सहनशीलता का , फल होगा मीठा ।
लम्बे इन्तज़ार के बाद मुझे म मिलेगा अनोखा ख़ज़ाना ॥१७॥
{गोरखनाथ के शब्दों में }
{गोरखनाथ के शब्दों में }
कुंए रे किनारे अवधू
At the edge of a well, oh
seeker
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे
At the edge of a well, oh seeker, I sowed a tamarind seed.
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे
At the edge of a well, oh seeker, I sowed a tamarind seed.
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे
जारो पेड़ मछलियाँ छायो , हे लो The tree sprouts fish,
casts a fine shade- Oh my mind !
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे
जारो पेड़ मछलियाँ छायो , हे लो
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे Take my message to that wandering yogi !
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
TABLA
LINE----------
कुंए रे किनारे अवधू , हिरनी-सी ब्यायी रे
At the edge of a well, oh seeker, a deer was wed.
At the edge of a well, oh seeker, a deer was wed.
कुंए रे किनारे अवधू , हिरनी-सी ब्यायी रे
हो जी पाँच मिरगला लाई, हे लो She gave birth to five fawns- Oh my mind !
कुंए रे किनारे अवधू , हिरनी-सी ब्यायी रे
TABLA LINE----------
ससईयो शिकारी अवधू बन खंड चाल्यो रे Ther rabbit turns hunter,
takes off to the forest.
ससईयो शिकारी अवधू बन खंड चाल्यो रे
ममता मृगली ने मारी , हे लो He kills the fawns of attachment- Oh my mind !
ससईयो शिकारी अवधू बन खंड चाल्यो रे
ममता मृगली ने मारी , हे लो
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे
TABLA LINE----------
खूंटो तो दूजे अवधू , भैंस बिलोवे रे The
peg milks, the buffalo churns.
खूंटो तो दूजे अवधू , भैंस बिलोवे रे
जारो माखण बिरला खायो , हे लो Only
the rare one eats this butter- Oh my mind !
खूंटो तो दूजे अवधू , भैंस बिलोवे रे
जारो माखण बिरला खायो , हे लो
TABLA LINE----------
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे
जां खोज्यां वां पाया , हे लो The
one who seeks, will find- Oh my mind !
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे Take my message to that
wandering yogi ! }
जां खोज्यां वां पाया , हे लो
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
Narrator 3: Only if we are prepared to go that
extra mile,
Only if one “Seeks” ardently
and fervently will one enjoy the butter.”
8th PAINTING
अरे देख , कबीरे की कल्पना , सपनों में उड़ान भरती
मछली उसकी अनोखी तैरती, आगे बढ़ती जा रही ॥
विचित्र द्वीपों में चक्कर , लगाती-लगाती फँस जाती ।
कभी सर्कस करती, तो कभी कराटे करती , नज़र आती ॥१८॥
हँसो मत ! तुम भी उड़ान भरो सपनों में मेरे ।
आ रही पास मछली मेरी, सबसे बड़े दरिया से ॥
बहुत उंचाई से , गिरते हैं वहाँ झाग वाले झरने ।
बिना पैराशूट के मछली मेरी, तैरे उसमें आराम से ॥१९॥
तैरते -तैरते जाए गहरे में , डुबकी लगे मुंह उठाए ।
बाहर मुंह आए , इधर -उधर देखे, ढूंढे चारों ओर मुझे ॥
हर दिशा में उसी के, मुंह ही मुंह नज़र आए ।
ओह ऐसी मछली ! शायद ही जाल में मेरे फँसे ॥२०॥
कैसी होगी ? कौन आ फंसेगी मेरे जाल में ।
भयानक मुख वाली या छोटी मछली लिए पेट में अपने ॥
लगे बिलकुल कंगारू -सी , न -न छोटी मछली न चाहूँ मैं ।
बड़ी-बड़ी थूथनी वाली , दिख गई मछली मुझे ॥२१॥
शांत रहना, सब्र करना, यही है परीक्षा मेरी ।
तभी लगेगी हाथ मेरे , कोई अजूबी मछली ॥
अरे, कोई केकड़ा आ फँसा , पकड़ में मेरी ।
मज़बूती से डोर पकड़नी , नहीं है मुझे छोड़नी ॥२२॥ 10th PAINTING
पानी में उठती लहरों में , तेज़ी से तैरती आती ।
लम्बी -लम्बी छलांगे भरती चली आ रही ॥
न जाने कितने द्वीपों को , पार करती है आई ।
इस ताल को पार कर , गिरेगी गोद में मेरी ॥२३॥
लम्बी -लम्बी छलांगे भरती चली आ रही ॥
न जाने कितने द्वीपों को , पार करती है आई ।
इस ताल को पार कर , गिरेगी गोद में मेरी ॥२३॥
यह तो लगती कोई, सर्कस की मछली ।
कराटे करती , छलांगे भरती , प्रदर्शन करती ॥
कराटे करती , छलांगे भरती , प्रदर्शन करती ॥
दूर कहीं से बड़ी -सी नदी से चलती आ रही ।
पैराशूट लगाए , नीचे ही नीचे तैरती जाती ॥२४॥
नहीं आएगी वह हाथ मेरे , "व्हेल" ही होगी मेरी ।
पूंछ को पीछे फेंकती , पचासों व्हेल मछली आ रहीं ॥
इतनी बड़ी व्हेल देख , सुन्न हो गई ज़बान मेरी।
सागर में तो उससे भी, कई होंगी बड़ी -बड़ी मछली ॥२५॥ 9th PAINTING
मुझे कहाँ से कहाँ ले आई कल्पना मेरी ।
सागर में असंख्य जीव -जंतु , अनगिनत मछली ॥
सब्र , धीरज से पूरी हो जाए, शायद इच्छा मेरी ।
मुझ -सी मूर्ख , दीवानी, पगली , मेरी और आएगी तैरती ॥२६॥
Narrator 4: किसी ने सही कहा है यदि काम करना ही है चाहे कार्य कठिन ही क्यों न हो ?
Narrator 1: कार्य कठिन है इसलिए तो करना है ।
Narrator 2: “And that’s why I say
If I wait long enough if I’m patient and who knows what I’ll catch in Mc Elligot’s pool!
Narrator 3:
“And that’s why I think
That I’m not such a fool
When I sit here and fish
In Mc Elligot’s pool!”
(Chorus
song and all the participants come on the stage and bow)
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Dear Meenal ji, I would like to get in touch with you regarding the translations above. Could you kindly tell me your email address or any other contact info? Thank you very much. Regards, Tanaji Dasgupta.
ReplyDeleteFound your blog while looking for translation of Garakhnath's 'कुँए रे किनारे अवधू' which was featured in the ending scene of much acclaimed film, The Disciple. Really perplexed by these lines and their translation was left out in subtitles for film.
ReplyDeleteससईयो शिकारी अवधू बन खंड चाल्यो रे
ममता मिरगली ने मारी , हे लो
And comment for Tanaji Dasgupta who was Head of Post Production for film, shows this piece of writing was useful for them. I wish we could read some more analysis of thought behind these surreal lines.