यह नाटिका मैंने किसी पाठ्य पुस्तक से ली है जिसका नाम मेरे पास नहीं है पर पढ़कर मुझे यह बहुत पसंद आयी और मैंने इसे इस साल यानि कि अगस्त २०१४ में मिडिल स्कूल के मिश्रित समूह के साथ किया जिसमें कक्षा पाँच , छ : और सात के छात्र और छात्राएं थे । इस नाटिका के नाटककार का नाम पाठ्य पुस्तक में नहीं दिया गया था । बच्चों ने इस नाटिका को करते हुए बड़ा मज़ा किया । उन्होंने भूरे रंग का चूड़ीदार /पायजामा और हरा कुर्ता पहना । सिर पर उन्होंने एक छोटा -सा मुकुट जैसा बनाया जिस पर पेड़ का नाम हिंदी और अंग्रेजी में लिखा जो भूमिका वे निभा रहे थे । सभी को इस नाटिका से पेड़ों के बारे में बहुत जानकारी मिली । इस प्रकार यह नाटिका सभी के लिए काफी ज्ञानवर्द्धक रही।
पेड़ों की पंचायतपात्र- पीपल, तुलसी, बड़, ताड़, खज़ूर, जामुन, नीम, कीकर और झाड़ी
नीम- क्या हुआ? उदास मत हो । सब ठीक हो जाएगा ।
बाड़- क्या खाक ठीक होगा? मैं कैसे अपने मन को शांत करूँ?
कीकर और तुलसी- अरे भाइयों, दु:ख बांटने से ही घटता है।
ताड़ और खज़ूर- ठीक कहा है, चलो मिलकर बैठते हैं । आपस में बातचीत करने से शायद मन को कुछ शांति और सुख मिले ।
जामुन- हाँ, अच्छा होगा कि हम सब एक ग्रुप बना लें । हर महीने कम से कम एक बार तो अवश्य मिला करेम और आपस में अपने सुख-दु:ख बांटें ।
झाड़ी- क्यों न हम पीपल दादा को निमंत्रित करें । वे ही हमारे ग्रुप का नाम रखें और हमें रास्त दिखाएं।
सब एक साथ- सही फरमाया। क्या बात कही है !(तालियाँ बजाकर पीपल का स्वागत करना)
पीपल- (हाथ जोड़कर) मुझ में इतने गुण बड़प्पन के तो नहीं हैं परन्तु आप सबने जो मुझे मान दिया है , उसके लिए सब ही महानुभवों का मैं तहेदिल से धन्यवाद करता हूँ । (तालियाँ) हमारे ग्रुप का नाम होगा- पेड़ों की पंचायत । इसके साथ ही मैं बहिन तुलसी को इस पंचायत का मंत्री बनाने के लिए प्रस्ताव रखता हूँ ।
सब-(तालियाँ बजाते हुए) हम सर्व सम्मति से बहिन तुलसी को अपना मंत्री स्वीकार करते हैं ।
तुलसी- सबसे पहले मैं अपने बड़े भाई बड़ यानि कि बरगद से निवेदन करूँगी कि वह यह बताएं कि खुदगर्ज और स्वार्थी मनुष्य उनसे क्या लाभ उठाते हैं ?
बड़- प्रधान और मंत्री की आज्ञा से मैं अपने लाभ बताता हूँ-मेरी छाया सबसे बड़ी है। पत्ते लम्बे-चौड़े हैं और मेरा फल बड़गोल गांव के बच्चे बड़े मज़े से खाते हैं । बन्दरों के लिए बड़ा सुरक्षित स्थान है । उनको खाने के लिए मेरे फल मिलते हैं । मनुष्य के कई रोगों में मेरी छाल, पत्ते और फल काम आते हैं ।
सब- वाह, आप तो बड़े काम के वृक्ष हैं ।
तुलसी- अब कीकर भाई, आप अपने बारे में बताएं ।
कीकर- स्वार्थी मनुष्य मेरी दातुन काट कर अपने दांत साफ करता है । मेरी छाल को पीस कूट कर खांसी में काम लाते हैं । जब मैं सूख जाता हूँ तो खेतों की हिफाज़त के लिए मेरी छड़ों की बाड़ लगाते हैं । घरों के आस-पास कुत्ते-बिल्ली से सुरक्षा करने के लिए भी मेरी छड़ों का प्रयोग करते हैं । मेरे फूल और फल भी अनेक रोगों को दूर करते हैं।
सब (तालियाँ) वाह भई , वाह, क्या बात है !
तुलसी- अब आपके सामने कैर झाड़ी बहन अपने गुणों का वर्णन करके यह बताएंगी कि मनुष्य ने अपने सुख के लिए हमारा दुरुपयोग किस प्रकार किया है ?
सब (तालियाँ बजाकर) हां जी कैर बहन , आप भी फरमाएं ।
कैर झाड़ी- हमारे कांटे होते हुए भी मनुष्य ने हमें काट-छांट कर अपंग बनाया और हमारे फल टींट को अपने भोजन के लिए लाभकारी बनाया- हमारे सूख जाने के बाद भी हमें पानी में उबाल कर, जला कर अपनी दवाई के रूप में प्रयोग किया । हमारे फल टींट का अचार डालते हैं - इसके पानी को कांजी के रूप में इस्तेमाल करते हैं । लेकिन कभी यह स्वार्थी मनुष्य हमारे रख-रखाव का ध्यान नहीं रखता । हम ईश्वर की दया पर जीवित रहते हैं ,इन मनुष्यों से हमें पानी पाने तक की आशा नहीं है ।
सब- (तालियाँ बजाते हैं) वाह, आप में तो निराले गुण हैं । आपको जीने के लिए पानी भी नहीं चाहिए ।
तुलसी- अभी आपने झाड़ी के संबंध में सुना- हाँ , एक बात तो उनके गुण वर्णन में रह ही गई कि इन झाड़ियों का उपयोग भी मनुष्य अपनी सुरक्षा के लिए करते हैं । चलिए, अब आप ताड़ वृक्ष के मुँह से उनके विचार सुनिए ।
ताड़- मैं लगभग वन के सभी वृक्ष, पेड़-पौधों में सबसे ऊँचा वृक्ष हूँ । मुझ पर प्रत्येक जीव आसानी से नहीं चढ़ सकते । फिर खास बात यह है कि मेरा फल भी बड़ी ऊँचाई पर लगता है लेकिन मेरा फल बहुत ही लाभकारी होता है । मेरा फल खाने के काम में तो आता ही है-साथ ही प्रत्येक पूजा में भी मेरा आह्वान होता है - व्यापार, गृह प्रवेश में भी मेरा ही पूजन होता है और उसका प्रसाद बाँटा जाता है । मुझे भी पोषण पाने के लिए मनुष्य की कोई ज़रूरत नहीं है । मेरी लकड़ी भी मनुष्य के लिए बड़ी उपयोगी सिद्ध होती है । मेरा गुड़ भी बनाते हैं लोग ।
सब- (तालियाँ बजाते हैं )
तुलसी- अब आपके सामने ताड़ की भांति एक और ऊँचा पेड़ यानि कि खज़ूर भाई अपने बारे में कुछ बताएंगे, कृपया शांत रहकर ध्यान से सुनिए ।
खज़ूर- आप हंसिए मत, मैं भी अपने भाई ताड़ की भांति लम्बा हूँ और उपयोग के लिए मेरे फल भी आवश्यक हैं । पर मुझमें एक सबसे अलग बात है कि मेरा फल बहुत मीठा और रसीला होता है- जो व्यक्ति मुझे एक बार खाना शुरु कर दे तो फिर वह मुझे बार-बार खाने के लिए लालायित रहता है । सबसे अधिक बात मेरे फल में यह है कि ताड़ का तो रस निकाल कर ही गुड़ बनता है और मीठा बनता है- मेरे फूल में तो स्वयं मिठास होती है । मेरे फल में एक और खूबी है कि मेरे चार-छ: दाने खाने के बाद ऊपर से दूध या पानी पी लो, तो दिन भर की भूख खत्म । ताड़ की भांति मेरी लकड़ी भी काम में लाई जाती है । मेरा प्रयोग बच्चे, स्त्री बहुत करते हैं, खास तौर से मैं बूढ़ों के तो बहुत काम में आता हूँ । यदि मेरा प्रयोग कोई महीनों तक करे, तो मैं उस व्यक्ति को शक्ति देता हूँ ।
सब- (तालियाँ बजाते हुए) इसमें शक नहीम कि खज़ूर के समान और कोई फल इतना उपयोगी नहीं है । लोग भी तो कहते हैं - "ताड़-खज़ूर दो पेड़ हैं , फल लागे अति दूर । पंछी को छाया नहीं, इनकी छाया अति दूर ।"
तुलसी- अब हम सबकी बहन जामुन अपने विचार हमारे सामने प्रकट करेगी ।
सब- अरे वाह! (तालियाँ)
जामुन- आप में से बहुत से भाई-बहिनों के मुँह में पानी आ गया होगा, मेरा नाम"जामुन"सुनकर । आप कहेंगे क्यों ? मुँह में डालते ही मेरा स्वाद खट्टा-सा भी होता है और मीठा भी । साथ में मुझमें सबसे बड़ा गुण यह है कि जिसको सांस की बीमारी हो, मेरे लगातार प्रयोग से वह समाप्त हो जाती है । इसके साथ ही मेरे प्रयोग से खांसी-जुकाम भी खत्म होते हैं । जिस व्यक्ति को ब्लडप्रेशर की बीमारी हो, मेरी गुठली को निकाल कर उसकी गिरी निकाल कर पाउडर बना लो और उसको दही या कच्चे दूध के साथ सेवन करो, तो बीमारी गायब । वैसे बच्चों-बूढ़ों को मुझे खाने में बड़ा स्वाद आता है ।
सब- वाह, क्या बात है! खांसी-जुकाम के साथ ब्लडप्रेशर और सांस की बीमारी भी जामुन से ठीक होती हैं !
तुलसी- आपने बहिन जामुन के संबंध में सुना अब आपके सामने आ रहे हैं नीम भाई । वे आपको अपने बारे में बताएंगे ।
सब- (तालियाँ बजाते हैं )
नीम- (हाथ जोड़कर) मंत्री जी के साथ-साथ प्रधान जी और आप लोगों का बड़ा धन्यवाद है कि मेरे जैसे कड़ुवे पेड़ को आदर करके आप सब ने मुझे कुछ कहने का अवसर दिया है । देखो जी, अब तक जितने साथी आए, उन सब को चबाने में कुछ तो स्वाद होगा । मगर आप सब में मैं इतना बेमज़ा और कड़ुवा हूँ कि हर आदमी मुझे खाने के बाद थूकता है और मुझे भला-बुरा कहता है । परन्तु मैं आपको बताए देता हूँ कि मुझे केवल चबाने मात्र से ही सबका मुँह शुद्ध हो जाता है । मुँह में बदबू नहीं रहती । दांत और मुँह स्वच्छ हो जाता है । इसी कारण नीम की दातुन बनाकर लोग खुश हो जाते हैं । मेरी कौन-सी ऐसी वस्तु है, जो काम में नहीं आती । मैं प्रत्येक रोग की अचूक दवा हूँ -पेट में तकलीफ हो, बुखार हो, सिर में दर्द हो, आंखों में तकलीफ हो, यहाँ तक कि पेट में कीड़े हों, बवासीर यानि कि पाइल्स की समस्या हो, शरीर में कहीं भी चोट लग जाए और खून निकलने लगे- इन सब में मेरा प्रयोग होता है । मुझे कहना तो नहीं चाहिए क्योंकि यह अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना होगा, पर सच तो यह है कि मनुष्य के प्रत्येक रोग की औषधि हूँ मैं । मुझे प्रयोग करने में मनुष्य का कोई विशेष खर्च भी नहीं होता ।
सब - (ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ बजाते हैं )
पीपल- आप सब ने अभी-अभी नीम भाई के गुणों का वर्णन सुना । वास्तव में देखा जाए तो शायद ही हमारी जाति में इतने गुण हैं । अब मैं अपनी बहिन तुलसी से प्रार्थना करूंगा कि वे अपने संबंध में बताकर हम सब को लाभान्वित करें ।
सब- (तालियों से स्वागत करते हुए) हाँ, हम अपने मंत्री जी से भी बहुत कुछ सुनना चाहते हैं ।
तुलसी - (हाथ जोड़कर) मैं आप सबकी आभारी हूँ जो आपने मुझ जैसी तुच्छ और सबसे छोटी को बोलने का अवसर दियाअ । यह मनुष्य इतना स्वार्थी और खुदर्गज़ है कि मेरे अन्य गुणों के साथ मेरा प्रयोग चाय बनाने में भी करता है । कहते हैं कि मेरी चाय से खांसी, जुकाम, बुखार, सर्दी आदि फौरन चले जाते हैं । यदि मेरे दो पत्तों को काली मिर्च के साथ चबाया जाए तो गले की खराश और खरखराहट दूर हो जाती है । इतना ही नहीं मेरे पत्तों को निचोड़ कर उसका अर्क निकाला जाए और उसको नाक में निचोड़ा जाए तो नाक की फुंसी खत्म हो जाती है । इसके साथ मेरा अर्क यदि किसी ताज़े जख्म पर लगाया जाए तो दो-तीन बार लगाने से वो जख्म ठीक हो जाता है । आज जो कैंसर की नई बीमारी चली है यदि दस पत्तियों को सुबह, दोपहर - शाम नीबू के अर्क के साथ खाया जाए तो महीने-बीस दिनों में ही कैंसर का रोग नष्ट हो सकता है ।
पीपल- (सब के तालियाँ बजाने के बाद) हम तुलसी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं कि तुलसी में जितने गुण हैं , वह हम में से किसी में भी नहीं हैं । भाइयों और बहनों , दु:खी मत हो । मनुष्य के स्वार्थी और खुदगर्ज़ स्वभाव पर ध्यान न दो । हमें तो बस दूसरों का भला करना चाहिए, किसी से कुछ पाने की आशा नहीं रखनी चाहिए । इसी से हमें "सच्चा सुख" मिलेगा । अगले महीने फिर इसी तारीख पर हम सब यहीं मिलेंगे और अपना सुख-दु:ख बांटेगे । धन्यवाद, शुक्रिया, अलविदा तब तक के लिए ।
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