Sunday, 30 November 2014

Pashu-Pakshion Ki Shikayat (पशु-पक्षियों की शिकायत)

यह नाटिका मैंने किसी पाठ्य पुस्तक से ली  है जिसका नाम मेरे पास नहीं है पर पढ़कर मुझे यह बहुत पसंद आयी और मैंने इसे इस साल यानि कि अगस्त २०१४ में मिडिल स्कूल के मिश्रित समूह के साथ यह नाटिका की  जिसमें कक्षा पाँच, छ: और सात के छात्र और छात्राएं थे । इस  नाटिका  के नाटककार का नाम पाठ्य पुस्तक में नहीं दिया गया था ।बच्चों ने इस नाटिका को करते हुए बड़ा मज़ा किया । उन्होंने जिन पशु-पक्षियों का अभिनय किया उसी के अनुसार उस रंग की ट्रेक पैंट और टी -शर्ट पहनी। सिर पर उन्होंने एक छोटा -सा मुकुट जैसा बनाया जिस पर पशु या पक्षी का नाम हिंदी और अंग्रेजी में लिखा जो भूमिका वे निभा रहे थे। सभी को इस नाटिका से पशु-पक्षियों  के बारे में बहुत जानकारी मिली । इस प्रकार यह नाटिका सभी के लिए काफी ज्ञानवर्द्धक रही। 
  

               पशु-पक्षियों की शिकायत

पात्र- गाय, भैंस, बैल, घोड़ा, गधा, तोता, मैना, बन्दर, रीछ, साँप, दुमई, मधुमक्खी आदि

(पशु-पक्षी एक वृक्ष के नीचे बैठे हुए मनुष्य के प्रति अपनी-अपनी शिकायत इस प्रकार करते हैं| पर मंच पर आने से पहले सभी छात्र-छात्राएं जिस पशु-पक्षी का अभिनय कर रहे थे उसी की चाल या बोली निकालते हुए आए फिर नाटिका शुरू हुई । )

गाय- देखो जी, स्वार्थी मनुष्य हमें खाना-दाना, पानी और रहने का स्थान देते हैं -ये उपकार हम उनका मानते हैं परन्तु एक बात उनकी बहुत ही विवादास्पद है- हमारे बछड़े-बछड़ियों के लिए दूध की एक बूंद भी नहीं छोड़ते, बल्कि हमारे दूध से अपने पूरे परिवार को पालते हैं कभी-कभी तो हमें खाना देना भी भूल जाते हैं - जहाँ तक कि कभी-कभी तो हम प्यासे भी मर जाते हैं कई बार तो यहाँ तक होता है कि हम गर्मी में धूप में जलते- रहते हैं या सर्दी में जाड़े में मरते रहते हैं, वे हमारा ज़रा भी ख्याल नहीं रखते हम सब बूढ़े या बेकार हो जाते हैं तो ओने-पौने भाव में हमें कसाई को बेच दिया जाता है

भैंस- गाय बहिन ने जिन बातों का वर्णन किया , वे ही सब बातें यह स्वार्थी मनुष्य हम भैंसों के साथ भी करता है लेकिन हम हर प्रकार से इस मनुष्य के सेवक और उपयोगी पशु बने रहते हैं

घोड़ा- खैर, हम घोड़े मनुष्य को दूध तो नहीं देते, लेकिन सर्दी-गर्मी और बरसात में हम पर सवारी करके कोसों-मीलों तक यह हमें दूर ले जाता है, कभी-कभी हम खाने-पीने तक को तरसते रहते हैं , हम बेज़ुबान हैं कुछ बोल नहीं सकते यह हमारा पूरा फायदा उठाता है और तो और कई बार कहीं जल्दी पहुँचने के लिए वह हमें कोड़े लगाता है, मारता है

गधा- भाई घोड़े, आपको कभी कभी तो वह प्यार करता है और खाना-दाना, पानी तो देता है हम गधों पर भारी-भारी वज़न लाद कर भी हमें पीटता है और गाली देता है- इतना ही नहीं, सबसे ज़्यादा उसकी स्वार्थी बात यह है कि भारी बोझा उतार कर गंदी जगहों पर हमें छोड़ देता है, वहाँ कुछ खाने को मिले तो ठीक है, ईश्वर का शुक्र मानो नहीं तो भूखों ही हमें रहना पड़ता है हमारे बच्चों की तो और भी दुर्दशा है उनको तो कुछ भी खाने को मिलता ही नही कुम्हार (मालिक) उसकी स्त्री, उसके बच्चे हम पर सवारी करते हैं और हमारे कान भी ऐंठते हैं बुरी बात तो यह है कि कोई भी हमसे प्यार से नहीं बोलता गाली और मार से ही हमेशा हमारा स्वागत होता है

बैल- भाई, मुझ बैल की शिकायत आप से कम नहीं, ज़्यादा ही है। मुझको भरी दुपहरी, गर्मी-धूप, बरसात, भरे जाड़े में हल में जोता जाता है चलने पर मेरी पीठ पर , सोटे यानि कि डण्डे से मेरा स्वागत किया जाता है रूखा-सूखा भूसा या नसीब से कभी-कदा हरा भूसा मेरे सामने डाल देता है यह स्वार्थी मनुष्य! पूरा पानी भी पीने के लिए नहीं देता मैं किसी कुएं, तालाब-जोहड़ पर खुद ही पानी पी लेता हूँ कुआं और रहट भी जोतता हूँ, खेतों में अनाज भी बोता हूँ अगर किसी दिन मेरा मन काम को नहीं करता तो मुझे खूब मार पड़ती है एक बात और है कि मुझे वश में करने के लिए यह निर्दयी मनुष्य मेरी नाकों में नकेल डाल देता है जिससे मैं उसी के कहने पर चलूँ जब कि मुझसे ही किसान की रोज़ी-रोटी चलती है, मेरे बिना वह और उसके बाल-बच्चे भूखों मर जाते हैं पर वह मेरा उपकार समझता ही नहीं

बन्दर- बैल भाई, आपसे ज्यादा दुर्गति मेरी होती है मैं स्वच्छ रहने वाला जीव बन्दर चाहे जिस जगह जाऊँ, किसी भी वृक्ष पर बैठूँ-सोऊँ, फल खाऊँ, स्वच्छन्द रहूँ पर इस निर्दयी मनुष्य ने मुझे अपने छल से पकड़ा और मार-पीट कर अपने मतलब के लिए मुझे ट्रेनिंग दी मुझे नाचना-कूदना सिखाया मानव ने मुझे अपनी उदरपूर्ति अथवा अपने पेट भरने का साधन बनाया

बकरी- सब भाई-बहिन, अपने-अपने दु:खों की शिकायत करते हैं, मुझ बकरी की भी तो सुनो- यह नालायक मनुष्य अपने बच्चों और अपने लिए मेरा दूध लेता है और मेरे खाने की बात पूछो, तो क्या देता है यह मुझे ? पेड़ के पत्ते , कुछ दाना-पानी यह ज़रूरत पड़ने पर मुझे मार कर मेरा मांस-हड्डी और मेरी खाल तक बेच देता है इस मनुष्य को क्या नाम दिया जाए ? मैं तो इसको अन्यायी और ज़ालिम ही कहूँगी

तोता- आप लोग तो मुझसे बड़े हैं और आपके कार्य भी मुझसे अधिक हैं - मनुष्य ने हम पक्षियों के साथ भी बड़ा ज़ुल्म और अन्याय किया है यह हम तोतों को धोखे और छल से पकड़ता है और पिंजरे में बन्द कर देता है पहला काम इसका यह है कि यह मुझे पिंजरे में बन्द करके बेचता है कई बार यह मनुष्य मुझे पीट-पीट कर राम-राम, राधे-कृष्ण रटवा कर पढ़ाता है अनपढ़ तोते का तो इसको कम मूल्य मिलता है और हम में से जिसको यह पढ़ा देता है , उसकी भारी कीमत पर बेचता है यह बहुत ही स्वार्थी और खुदगर्ज है

मैना- तोते भाई,यह मनुष्य तुमसे ज्यादा बुरी दशा तो मुझ जैसी मैना की करता है मैं स्वछन्द वृक्षों पर बैठी अपने प्रेमी को , ईश्वर को रटती रहती हूँ-परन्तु इस स्वार्थी मनुष्य अथवा हैवान को यह बात सहन नहीं होती और मुझे भी तुम्हारी तरह पिंजरे में कैद करके अपने घर में रखता है पान वाला पान की दुकान पर पिंजरे में मुझे बन्द करके लटका देता है अपने लाभ के लिए मुझे स्थान-स्थान पर काम में लाता है और अगर मैं किसी को पसन्द आती हूँ तो वह मुझे किसी और ज़ालिम के हाथ बेच देता है अपनी खुदगर्जी और स्वार्थ में हम जैसे स्वतंत्र पक्षियों को अपनी जेल में बंद करके रखता है खाना-पीना भी हमारी इच्छा के अनुसार नहीं मिलता, वन-जंगल में तो हमें हमारा मनपसन्द खाना मिल जाता है

मधुमक्खी- मैं भी जंगल का जीव हूँ मनुष्य अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए मुझ मधुमक्खी से इकट्ठा किया हुआ शहद (जो मैं अपने बच्चों या बुरे वक्त के लिए जमा करके रखती हूँ) चुरा लेता है जबकि वह शहद मेरे सारे परिवार के सदस्यों को धुएं से अन्धा बना कर मुझे मेरे छत्ते अथवा घर से बेघर बना देता है मुझे बड़ा क्रोध आता है मैं उनमें से किसी मनुष्य या उसके बीवी-वच्चों को काट लेती हूँ- तो उनके हाथ, मुंह, आंख, पांव आदि सूज जाते हैं वे घबरा जाते हैं क्या करूँ? आप किसी का घर उजाड़ें या उसके परिवार को नष्ट करें, तो आप क्या करेंगे ? सच ही तो है कि मरता क्या करता ? पर फिर भी यह नालायक मनुष्य मेरे शहद को दवाइयों में मिलाकर खाता है, अपने खांसी-जुकाम, बुखार जैसे रोगों को भगाता है चटखारे ले-एकर इसके बच्चे मुझे चाटते हैं

रीछ- बहिन, तुम्हारी बातें तो सोलह आने सच हैं परन्तु देखो बहिन! मुझ रीछ का जंगल में स्वछन्द घूमना इस नालायक मनुष्य को सहन नहीं होगा यद्यपि मैं बड़ा खूँखार जानवर हूँ मैं आदमी को मार कर उसका खून पी जाता हूँ मुझे तो जंगल में अकेले देखकर लोग डर जाते हैं लेकिन फिर भी यह स्वार्थी-खुदगर्ज इतना मतलबी है कि मुझे धोखा देकर पकड़ लेता है और मेरी नाक में नकेल डालकर मेरे मुँह को जकड़ देता है मैं विवश हो जाथा हूँ, इतना ही नहीं , अगर मैं इस मनुष्य के हुक्म के मुताबिक काम नहीं करता हूँ तो यह मनुष्य अपनी सोटी से मेरी बुरी खबर लेता है मुझे गांव-गांव, शहर-शहर, गलियों में घुमाता है - मुझे नचा-नचाकर खाना, कपड़े, पैसे मांगता है और अपना गुज़ारा करता है मेरे खाने-पीने की फिक्र इसको कम रहती है अगर इसके बच्चे या बीवी को कोई भय, डर, भूत-प्रेत लग जाए तो यह मेरे बाल नोंचकर उनमें मनके अथवा मोती पिरो-पिरो कर उनके गले, पैर या छाती पर लटकाता है इसके अलावा वह मेरे बालों को और लोगों को देकर पैसे भी खूब कमाता है

सांप- आप जानते हैं मेरे नाम से अथवा सांप नाम सुनने से ही बच्चे, बूढ़े , औरत-मर्द सब डरते हैं लेकिन यह मनुष्य इतना ज़ालिम और शैतान है कि अच्छे से अच्छे खूंखारों को वश में कर लेता है सब जानते हैं मेरे काट लेने से मनुष्य बड़ी मुश्किल से ही जीवित रहते हैं फिर भी इसकी अक्ल और बुद्धि की दाद देनी होगी कि यह किस प्रकार हम जैसे जहरीले, खूंखार जानवरों को अपने वश में कर लेता है मेरी बिलों पर खाने के लिए और साथ में पीने के लिए दूध रख देता है मैं उसके धोखे और छल में जाता हूँ बिल से बाहर आता हूँ तो किसी किसी तरीके से वह मुझे अपनी पिटारी में बन्द कर लेता है मैं उसकी पिटारी में कैद हो जाता हूँ, वह मुझे कई दिनों तक खाने-पीने को नहीं देता मैं बेदम होकर, कमज़ोर हो जाता हूँ , हिल-डुल नहीं सकता फिर मनुष्य मुझे अपनी चतुरता से पकड़ कर मेरे ज़हरीले दांतों को तोड़ देता है जिन दाढ़-दांतों में ज़हर होता है, उन्हें चिमटा या कील-कांटों से निकाल देता है कहने का मतलब है कि वह मुझे अपने मतलब का बना लेता है गांव-शहर में मेरा प्रदर्शन करके अपनी रोजी-रोटी कमाता है हिन्दू त्यौहारों पर भी मुझे दिखा कर मेरा दुरुपयोग करता है। सपेरे लोग ही मेरा प्रयोग करते हैं

दुमई- मैं भी सांप की तरह ही होती हूँ, परन्तु मेरे दोनों ओर मुँह होता है , इसलिए मुझे दुमई कहा जाता है मैं आगे-पीछे दोनों तरफ से चल-फिर सकती हूँ मुझे खाने की इतनी चिन्ता नहीं क्योंकि मिट्टी चाटकर ही मैं अपना समय बिता लेती हूँ सपेरे मुझे भी अपनी पिटारी में बन्द करके लोगों में मेरा प्रदर्शन करते हैं मैं काटती नहीं , पर यदि कोई मुझे अधिक परेशान करता है या मैं क्रोध में जब अधिक आती हूँ तो ऐसा काटती हूँ कि फिर उसका कोई इलाज नहीं उस मनुष्य का सारा शरीर नीला पड़ जाता है और मुँह, नाक, आंख में झाग आना शुरू हो जाता है मेरे काटने के कारण बेहोशी छा जाती है अड़तालीस घंटों में वह मर जाता है फिर भी स्वार्थी मनुष्य मेरे प्रदर्शन से बहुत लाभ उठाते हैं मुझे बच्चे बहुत हैरान करते हैं

गाय और भैंस-छोड़ो ये सब बातें

बैल, घोड़ा और गधा- थोड़ी बातें करके दिल तो हल्का कर लिया

तोता और मैना- सबकी बातें सुनकर लगा कि हम सब दु:खी हैं

बन्दर और रीछ- चलो, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि जो भी दिन हमें दिखाए, वे अच्छे ही दिखाए



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