Friday 7 April 2017

औरंगज़ेब/Aurangzeb (writer's name is not known)

प्रस्तुत नाटक "औरंगज़ेब" मैंने और मेरी सहेली नंदिनी कले ने कक्षा नौ और आठ के साथ इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत पेश किया | इस नाटक को हमने मार्च २०१७ में शुरू किया क्योंकि यह नाटक मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में था | हम इस नाटक को दोनों भाषाओं हिंदी और अंग्रेजी में करना चाहते थे | इसलिए इस नाटक के कुछ दृश्यों का मैंने हिंदी में अनुवाद किया | अप्रैल की छुट्टियों से पहले हमने इस नाटक की स्क्रिप्ट बच्चों को दे दी और उनके साथ यह नाटक पढ़ा भी ताकि उन्हें उच्चारण और हाव-भावों में परेशानी न हो | फिर मई से अगस्त तक अभ्यास किया | सभी बच्चों ने हिंदी भाषी न होते हुए भी इस नाटक को बहुत ही अच्छी तरह से अभिनीत किया | कक्षा आठ ने इस  नाटक में दो हिंदी गाने और एक कन्नड़ गाना गाया और  साथ में दो नृत्य भी किये  जिससे नाटक उबाऊ न हो | आशा है कि आप को यह नाटक पसंद आएगा | 
















 Ishwar Allah Tere Jahaan Mein Lyrics

Ishwar allah tere jahaan mein
Nafrat kyun hai, jang hai kyun
Tera dil to itna bada hai
Insan ka dil tang hai kyun
Ishwar Allah tere jahaan mein
Nafrat kyun hai, jang hai kyun
Tera dil to itna bada hai
Insan ka dil tang hai kyun
Kadam kadam par sarhad kyun hai
Saari zameen jo teri hai
Suraj ke phere karati hai
Phir bhii kitni andheri hai
Is duniya ke daaman par
Insan ke lahu ka rang hai kyun
Ishwar Allah tere jahaan mein
Nafrat kyun hai, jang hai kyun
Tera dil to itna bada hai
Insan ka dil tang hai kyun
Ishwar Allah tere jahaan mein
Nafrat kyun hai, jang hai kyun
Tera dil to itna bada hai
Insan ka dil tang hai kyun
Goonj rahi hain kitni cheekhein
Pyaar ki baatein kaun sune
Toot rahe hain kitne sapne
Inke tukde kaun chune
Dil ke darwazon par taale
Taalon par yeh zang hai kyun
Ishwar Allah tere jahaan mein
Nafrat kyun hai, jang hai kyun
Tera dil to itna bada hai
Insan ka dil tang hai kyun
























हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन
के जिस पे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशायें देखो रंगभरी, चमक रही उमंगभरी
ये किस ने फूल फूल पे किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
ये कौन चित्रकार है ...

तपस्वीयों सी हैं अटल ये पर्वतों की चोटियाँ
ये सर्प सी घूमेरदार, घेरदार घाटियाँ
ध्वजा से ये खड़े हुये हैं वृक्ष देवदार के
गलिचे ये गुलाब के, बगीचे ये बहार के
ये किस कवी की कल्पना का चमत्कार है
ये कौन चित्रकार है ...

कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो
इस के गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमकालो आज लालिमा अपने ललाट की
कण कण से झाँकती तुम्हें छबि विराट की
अपनी तो आँख एक है, उस की हज़ार हैं
ये कौन चित्रकार है ...

1 comment:

  1. Ma’am i want to do this play . How can I contact you

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