Tuesday, 30 December 2014

प्यारा उथला ताल कबीरा का ! / Pyra Uthala Taal Kabira Kaa ( inspired by "Mc Elligot’s pool!" written by Dr. Seuss)

यह नाटक अंग्रेजी के लेखक डॉक्टर सूज की किताब से प्रेरित होकर लिखा गया है । यह नाटक उनकी किताब पढ़ी तो मुझे और मेरी सहेली विशाखा को उनमें और संत कबीर की सोच में काफी समानता दिखाई दी। फिर क्या था ? उसी की प्रेरणा से मैंने हिंदी में अपनी समझ के अनुसार डॉक्टर सूज की किताब "Mc Elligot’s pool!"  की भावनाओं और विचारों को लिख डाला । फिर मेरी एक और सहेली राजश्री सेन जो अंग्रेजी की अध्यापिका हैं । वे भी संत कबीर और डॉक्टर सूज की प्रशंसिका हैं , उन्होंने इस नाटक में मानो जान ही भर दी । उन्होंने इस नाटक की शुरुआत और अंत डॉक्टर सूज के द्वारा लिखे कथनों से लिखा । इसके साथ ही उन्होंने अंग्रेजी में संवाद बोलने और अभिनय करने वालों को प्रशिक्षित किया । इस नाटक में करीब ४५ से ५० मिश्रित माध्यमिक समूह के कक्षा ५,६ और ७ के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया । सभी ने इस नाटक की तैयारी में भाग लिया । इस नाटक में संत कबीर के गानों को मेरी एक और सहेली दीपा कामथ जो प्रह्लाद जी की शिष्या है ने छात्र-छात्राओं को सिखाया । उसी ने एक और अन्य मेरी सहेली सुनीता जो नृत्य अध्यापिका हैं के साथ छात्र -छात्राओं को कबीर जी के गानों पर नृत्य भी सिखाया । हमारे स्कूल की चित्रकार नलिनी जयराम ने सभी छात्र -छात्राओं के साथ इस कविता का अर्थ चित्र रूप में कथा कहते हुए रंगों से स्पष्ट किया । नाटक के साथ मंच के एक और इन पेंटिंगों को चित्र कथा के रूप में दर्शाया गया । इसलिए आप स्क्रिप्ट में जगह -जगह पेँटिगों की संख्याएं लिखी देखेंगे।इसके साथ ही मिडिल स्कूल के अन्य अध्यापको और अध्यापिकाओं ने इस नाटक के प्रस्तुतीकरण में मेरी पूरी मदद की । सभी के सहयोग और छात्र -छात्राओं की रुचि और मेहनत से यह नाटक सफल रहा । मैं अपने सभी सहयोगियों की आभारी हूँ । आशा है कि आप सब को यह नाटक रोचक और मनोरंजक लगेगा । 

                 प्यारा उथला ताल कबीरा का  !


INTRODUCTION BEFORE THE PLAY-What happens when one marries the world of apparent absurdity to the world of deep philosophy? (Pause)

Lets find out on visiting the presentation put forth by the middle school Hindi Students.

Dr. Seuss'book "McElligot's Pool" an apparent tale of nonsense limericks has been welded with dexterity with the philosophical sayings of Kabir, the mystic saint poet. The result is NOT ambiguity but a soul touching, conscience awakening message that is relevant and helpful in both the social and spiritual content.

Narrator 1: What are you doing?  क्या कर रहे हो ? 

Narrator 2{Seussian Dress}: (Pretending not to hear)

Narrator 1: (Repeats) Hello! Hello! (Goes around trying to distract him)(To himself) He is deliberately trying to ignore me, anyways he seems  to be engaged in some sort of nonsense…….I’ll ignore him too and go along…hun, nonsense (Exaggerated tone in nonsense) 

Narrator 2: (Suddenly in a wise tone) “I like Nonsense; it wakes up the brain cells.”

Narrator 1: (Threatening) Don’t try to sound too philosophical…(before he can complete)

Narrator 2: “ If you never did you should
                    These things are fun and fun is good.”

Narrator 1: Dismissive initially.                  Borrowed lines……nice rhyme…..from whom?

Narrator 2: Dr. Seuss.

Narrator 1: Dr. Seuss?

Narrator 2: “Think left and think right and think low and think high.                     Oh, the thinks you can think up if only you try!”                     Dr. Seuss again. (Says it dramatically, bowing as he says it)
Narrator 1: ये सूज है कौन ? 


Narrator 2: (Flourish of his hand) Theodor Geisel Oorf Dr. Seuss, children’s   fantasy writer…. कहते हैं
                  “Fantasy is the most essential element of living.”
                 मज़े ही मज़े हैं उनकी books में - Wild and whacky yet insightful हँसते -हँसते बहुत कुछ बोल देते हैं उनके ये  apparently nonsense rhyme कबीर की  deep philosophy से बहुत मिलते हैं| 

 Narrator 1: Kabir, Hindi poet कबीर के साथ -कैसे ?(Surprised)

Narrator 2: (In a patronizing tone) “Don’t judge a book by its cover!”
(Thinks) एक काम करते हैं । चलो, तुम्हें उनकी  wild and whacky दुनिया में ले चलते हैं । (Freezes) {Transition- Enter third Narrator}  1st PAINTING

Narrator 3: (Dressed similarly as Narrator 2) आज के presentation की  script और poem Dr. Seuss की  book “Mc Elligot’s pool” से inspire होकर ही लिखी गई है । 

The fantastical tale of hope and optimism tells about a young lad who refuses to be put off when he’s   told that there are no fishes to be found in Mc Elligot’s pool.

Brushing aside adult skepticism he chooses instead to be patient, he lets his imagination run away with him as fancies all the weird and outrageous fish of the wild heading his way!

Narrator 4: हमारी poem का  character Kabira,


Narrator 3: (Interrupts) Hindi poet Kabir.

Narrator 4: जी नहीं Hindi poet Kabir नहीं | हमारा कबीरा तो मस्त मौला है,  वो अपनी धुन में खोया हुआ वैली के BAND से निकलकर Agra tal में फिर कावेरी  में ना जाने कहाँ -कहाँ घूमता हुआ जाता है ? पता नहीं, उसकी मंजिल क्या है? क्या उसकी कल्पना है ? 


अरे देखो, पगला-दीवाना-सनकी कबीरा !
बैठा टीले पर, अपनी धुन में है खोया ॥ 
उथले ताल के पानी में , है उसने काँटा डाला । 
टकटकी लगे मछली फँसने की , है राह तक रहा ॥१॥ 

अरे ओ  ,सिरफिरे, पगले कबीरा । 
लगता है दिमाग , सटक  तेरा ॥ 
पानी है इस ताल का, गंदा- मटियारा - मैला । 
है मुश्किल किसी भी मछली का, इसमें जी पाना ॥ २ ॥ 

गंदे -मटियारे पानी का, ताल यह छोटा -सा । 
बोतल , खाली डिब्बों , कचरे-से लबालब भरा ॥   2nd PAINTING
खोजने से कांटे में तेरे , आ फंसेगा कोई जूता । 
या, फिर तेल-घी-आटे का, टीन का खाली डिब्बा ॥ ३ ॥ 

सुनकर ये सब बोल, कबीरा ने ज़ोऱ से ठहाका लगाया । 
अनसुना कर, मुस्कराकर , अपनी ही धुन में बोला ॥ 
चढ़कर गिरना , गिराकर चढ़ना , हार न मानना । 

चींटी यह सीख सिखाती, कोशिश करते ही रहना ॥४॥  


आस नहीं , जीत की , पर जीवन में कुछ करने की । दिल में कहीं कसक , छुपी है मेहनत करने की॥ 

खोजते हुए पा जाउं , भेद इस ताल की गहराई का । 
गहरे पानी में पैठ ही , किसी को मोती है मिलता ॥५॥   3rd PAINTING

ऊपर से दिख रहा, छोटा -सा, गंदा -मटियारा । 
कौन जाने ? कहाँ तक है यह फैला ? 

कहीं तो टाँका भिड़ा होगा, किसी से इसका । ज़रूर कहीं दूर , किसी दरिया में होगा अटका ॥६॥ 
नीचे ही नीचे रसातल में , गहरे में जा मिला । 

गंदा -मटियारा पानी इसका, उसी में जा समाता ॥ ७ ॥ 


{ संत कबीरदास जी के शब्दों में -               जिन ढूंढा तीन पाइयां , गहरे पानी पैठ                                          मैं बौरा डूबत डरा , रहा किनारे बैठ ॥}                         

                         {कहे कबीरा सुनो भाई  साधो ....

                दरियाव की लहर , दरियाव है जी । 
                उठे तो नीर है, बैठे तो नीर है । 
                दरिया और लहर में भिन्न कोयम ॥ 
               उठे तो नीर है, बैठे तो नीर है ।
               कहो जी दूसरा किस तरह होयम ॥  
                उसी का फेर के नाम , लहर धरा । 
               लहर के कहे , क्या नीर खोयम ॥                     
                जक्त ही के फेर सब , जक्त पर ब्रह्म मैं । 
                ज्ञान कर देखो , कबीर गोयम ॥ } 
                                      

Narrator 1-To divide and to make distinctions on any grounds comes naturally to us humans. Kabir says that the “leher” and the “Dariya” can’t be too different-they are merely man made divisions for convenience.

Narrator 4-Somewhere we are all connected; we are all one irrespective of the apparent division.

Narrator 2- It might go along, down where no one can see,                   It might keep on flowing…..perhaps…..who can tell?...

Narrator 3- This might be a river, Now mightn’t it be,                   Connecting McElligot’s Pool With The Sea!    4th PAINTING


क्या पता ? कौन जाने ? वैली से निकला ?  

घूमता -फिरता जंगलों में सैर सपाटा करता ॥ 

बहता -बहता अगरा ताल में जा समाता । 
अनजाने रास्तों में से होता, कावेरी की गोद में गिरता ।। ८ ॥  


कावेरी की गोद , नहीं इसकी अभिलाषा । 
चाह  इसकी अठखेलियाँ, कर सागर में समाना ॥ 

सपना है मेरा, प्यारी-सी मछली से मिलन का । 
कहीं दूर से तैरती हुई , आ पहुंचे इस दिशा ॥ ९ ॥  

चाह मेरी , उथले ताल की , मापनी है इसकी गहराई । 
करो तब पहचान , मेरे सब्र और सहनशीलता की ॥ 
आस अगर दोनों ओर की , हो एक जैसी गहरी । 
तो अवश्य उथले ताल में ही मिलेगी मंजिल मेरी ॥ १० ॥ 

                { कबीरदास जी के शब्दों में - 
                         धीरे -धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । 
                         माली सींचे सौ घड़ा , ऋतु आए फल होय ॥ 

                   अब थारा लाल समंदरडारा माय  There are rubies in your ocean

समुंदर सा सदगुरु किया , दिया अविचल ज्ञान 

जहां देखूं तहां एक ही , और दूजा नहीं आन 
I got a true guru , vast as an ocean, He gave me timeless wisdom.
Wherever I look I see only One, There is no second or other.

अब थारा लाल समंदरडारा माय  There are rubies in your ocean
हो मरजीवा कोई , लाल ल्यावे हो ! A brave pearl-diver will bring up the ruby, oh yes
हो हो हो
हा मरजीवों का देस अज़ब है, Pearl-divers live in a wondrous land.
 अरे भाई देस अज़ब है        
 नुगरा थारा ना पाया गुरा जी   Those without a guru can’t understand.
हा सुगुरा री गति , ए जी भाई सुगुरा जाने  Only one with a guru,
सुगुरा री गति , ए जी भाई सुगुरा जाने
अब ई नगरा की बुरमावे?knows what makes a brave one tick. What will others make of it ?
हो हो हो     
अब थारा लाल समंदरडारा माय 
हो मरजीवा कोई, लाल ल्यावे हो !  A brave pearl-diver will bring up the ruby, oh yes
 हा आप तजी  ने बैठीगया समुंद में   You gave up the ‘I” and sat in the ocean.
 मोतीड़ा से सुरत लगाया गुरा जी    your awareness fixed on the jewel.
आप तजी ने बैठी गया समुंद में      You gave up the ‘I” and sat in the ocean.
मोतीड़ा से सुरत लगाया गुरा जी    your awareness fixed on the jewel.
हीरो हीरा लाल ए जी भाई पदारथ ल्याया   Such rubies, pearls and gems surfaced,
अब यो समंदर छोड्यो नी जावे  lIt is difficult now, to leave this ocean.
हीरो हीरा लाल ए जी भाई पदारथ ल्याया Such rubies, pearls and gems surfaced,
हो मरजीवा कोई, लाल ल्यावे हो !  A brave pearl-diver will bring up the ruby, oh yes
हो हो हो ----
हा हर दम का सौदा कर ले रे बंदे   Make a contract with every breath, my friend
सोहम ताल बजाया गुरा जी    Swing to your breath’s rhythm.
हर दम का सौदा ए जी भाई कर ले रे बन्दे 
सोहम  ताल बजाया गुरा जी 
रत्ती एक स्वांसा हेरो इना घट में  Search your body for the breath of a breath.
रत्ती एक स्वांसा ए जी भाई हेरो इना तन में   
तब यह पवन पुरुष परकाशेगा  Then the being of breath will manifest !
हो मरजीवा कोई, लाल ल्यावे हो ! A brave pearl-diver will bring up the ruby, oh yes
हो हो हो 
अब थारा लाल समंदरडारा माय There are rubies in your ocean
हो मरजीवा कोई, लाल ल्यावे हो ! A brave pearl-diver will bring up the ruby, oh yes
5th PAINTING

Narrator 1: A life of awareness and intense consciousness fortitude is sure to reap “rich jewels.”
Narrator 2: 

“If you want to catch beasts you don’t see everyday. 

You have to go places quite out of the way . 

You have to go places no others can get to 

You have to get cold and you have to get wet too.”



कैसी होगी मंज़िल ? नहीं, नहीं चाह मेरी । 
नहीं, नहीं, मछली मेरी, सुनहरी-प्यारी सी ॥  
लैला की पतली -सी , सुनहरी उंगुलियों जैसी ॥ ¬
गोल -मटोल, छोटी -छोटी , लम्बी पतंग डोर जैसी ॥ ११॥ 

कैसे आकार, रूप -रंग वाली होगी मेरी मछली । 
नहीं छोड़ी मैंने आशा, सबसे विचित्र मछली की ॥
होगी अजूबी -सी , मेरे प्यारे -से झबरे कुत्ते जैसी ।

लम्बे -लम्बे कानों वाली , प्यारी -सी नाक उसकी ॥१२॥ 


होगी मेरी मछली की पूंछ , नोकदार पहिये जैसी ।    6th PAINTING
शान से झूमते फिन , पताका जैसे होंगे उसके ॥ 
हिरनी की तरह पानी में , भरने वाली मस्त कुलांचे । 
लम्बी -लम्बी मूंछों वाली , तैरती मानो पनडुब्बी जैसे ॥१३॥ 

लम्बी -सी घुमावदार नाक में , मक्खी न बैठने देने वाली । 
मुर्गे की तरह सुबह , बाँग देकर जगाने वाली ॥ 
शतंरज बोर्ड,  नहीं -नहीं , स्ट्रॉबेरी जैली के पेट वाली। 
अरे, देखो दरियाई घोड़े जैसे , तेज़ भागने वाली ॥१४॥ 

मुश्किल है पर असम्भव नहीं , पाना मछली मेरी । अजीबोगरीब वह होगी , भोली गाय जैसी ॥ गरमी से तंग आ , तैरने की होड़ करती ॥ 
छपाक -छपाक उछाल भरती , लगती बिलकुल परी -सी ॥१५॥ 


है दूर कहीं लम्बी -सी , असंख्य झुकावों वाली ।  7th PAINTING

दोनों तरफ छोटे -छोटे मुंह , उन से आवाज़ें करतीं ॥ 

हाय रे किस्मत ! कैसे पहुंचे , पास उसके आवाज़ मेरी ? 
लगता है शेर -सी , भयानक दहाड़ है उसकी ॥१६॥ 

छोटू -मोटू -गोलू -मोलू , नहीं होगी मछली मेरी । 

होगी वह लम्बी -बड़ी , विशालकाय रूप वाली ॥ 

सब्र और सहनशीलता का , फल होगा मीठा । 
लम्बे इन्तज़ार के बाद मुझे म मिलेगा अनोखा ख़ज़ाना ॥१७॥ 
                                 {गोरखनाथ के शब्दों में } 
                                   कुंए रे किनारे अवधू 
                                   At the edge of a well, oh seeker
 कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे  
 At the edge of a well, oh seeker, I sowed a tamarind seed.
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे  
 जारो पेड़ मछलियाँ छायो , हे लो The tree sprouts fish, casts a fine shade- Oh my mind !
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे 
जारो पेड़ मछलियाँ छायो , हे लो
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे  Take my message to that wandering yogi !
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे 
 TABLA LINE----------

कुंए रे किनारे अवधू , हिरनी-सी ब्यायी रे
At the edge of a well, oh seeker, a deer was wed.
कुंए रे किनारे अवधू , हिरनी-सी ब्यायी रे
हो जी पाँच मिरगला लाई, हे लो   She gave birth to five fawns- Oh my mind !
कुंए रे किनारे अवधू , हिरनी-सी ब्यायी रे
TABLA LINE----------

ससईयो शिकारी अवधू बन खंड चाल्यो रे Ther rabbit turns hunter, takes off to the forest.
ससईयो शिकारी अवधू बन खंड चाल्यो रे
ममता मृगली ने मारी , हे लो       He kills the fawns of attachment- Oh my mind !
ससईयो शिकारी अवधू बन खंड चाल्यो रे

ममता मृगली ने मारी , हे लो      

कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे 
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे 
TABLA LINE----------

खूंटो तो दूजे अवधू , भैंस बिलोवे रे   The peg milks, the buffalo churns.
खूंटो तो दूजे अवधू , भैंस बिलोवे रे  
जारो माखण बिरला खायो , हे लो   Only the rare one eats this butter- Oh my mind !
खूंटो तो दूजे अवधू , भैंस बिलोवे रे
जारो माखण बिरला खायो , हे लो    
TABLA LINE----------
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे 
कुंए रे किनारे अवधू , इमली-सी बोई रे 
जां खोज्यां वां पाया , हे लो   The one who seeks, will find- Oh my mind !
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे  Take my message to that wandering yogi !  }  
जां खोज्यां वां पाया , हे लो 
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे
रमते जोगी ने म्हारा आदेश केवणा रे

 Narrator 3: Only if we are prepared to go that extra mile,
                   Only if one “Seeks” ardently and fervently will one enjoy the butter.”


8th PAINTING
अरे देख , कबीरे की कल्पना , सपनों में उड़ान भरती 
मछली उसकी अनोखी तैरती, आगे बढ़ती जा रही ॥ 
विचित्र द्वीपों में चक्कर , लगाती-लगाती फँस जाती । 
कभी सर्कस करती, तो कभी कराटे करती , नज़र आती ॥१८॥ 

हँसो मत ! तुम भी उड़ान भरो सपनों में मेरे । 
आ रही पास मछली मेरी, सबसे बड़े दरिया से ॥ 
बहुत उंचाई से , गिरते हैं वहाँ झाग वाले झरने । 
बिना पैराशूट के मछली मेरी, तैरे उसमें आराम से ॥१९॥ 

तैरते -तैरते जाए गहरे में , डुबकी लगे मुंह उठाए । 
बाहर मुंह आए , इधर -उधर देखे, ढूंढे चारों ओर मुझे ॥ 
हर दिशा में उसी के, मुंह ही मुंह नज़र आए । 
ओह ऐसी मछली ! शायद ही जाल में मेरे फँसे ॥२०॥  

कैसी होगी ? कौन आ फंसेगी मेरे जाल में ।  
भयानक मुख वाली या छोटी मछली लिए पेट में अपने ॥ 
लगे बिलकुल कंगारू -सी , न -न छोटी मछली न चाहूँ मैं । 
बड़ी-बड़ी थूथनी वाली , दिख गई मछली मुझे ॥२१॥  

शांत रहना, सब्र करना, यही है परीक्षा मेरी । 
तभी लगेगी हाथ मेरे , कोई अजूबी मछली ॥ 
अरे, कोई केकड़ा आ फँसा , पकड़ में मेरी । 
मज़बूती से डोर पकड़नी , नहीं है मुझे छोड़नी ॥२२॥    10th PAINTING

पानी में उठती लहरों में , तेज़ी से तैरती आती ।
लम्बी -लम्बी छलांगे भरती चली आ रही ॥ 
न जाने कितने द्वीपों को , पार करती है आई । 
इस ताल को पार कर , गिरेगी गोद में मेरी ॥२३॥ 

यह तो लगती कोई, सर्कस की मछली । 
कराटे करती , छलांगे भरती , प्रदर्शन करती ॥ 

दूर कहीं से बड़ी -सी नदी से चलती आ रही । 

पैराशूट लगाए , नीचे ही नीचे तैरती जाती ॥२४॥ 


नहीं आएगी वह हाथ मेरे , "व्हेल" ही होगी मेरी । 
पूंछ को पीछे फेंकती , पचासों व्हेल मछली आ रहीं ॥ 
इतनी बड़ी व्हेल देख , सुन्न हो गई ज़बान मेरी। 
सागर में तो उससे भी, कई होंगी बड़ी -बड़ी मछली ॥२५॥   9th PAINTING

मुझे कहाँ से कहाँ ले आई कल्पना मेरी । 
सागर में असंख्य जीव -जंतु , अनगिनत मछली ॥ 
सब्र , धीरज से पूरी हो जाए, शायद इच्छा मेरी । 
मुझ -सी मूर्ख , दीवानी, पगली , मेरी और आएगी तैरती ॥२६॥ 

Narrator 4: किसी ने सही कहा है यदि काम  करना ही है चाहे कार्य कठिन ही क्यों न हो ? 

Narrator 1: कार्य कठिन है इसलिए तो करना है  । 

Narrator 2: “And that’s why I say            

If I wait long enough if I’m patient and who knows what I’ll catch in Mc Elligot’s pool!

Narrator 3:

 “And that’s why I think                    

That I’m not such a fool                    

When I sit here and fish                     

In Mc Elligot’s pool!”


(Chorus song and all the participants come on the stage and bow)

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Itne Ghode- A short story from the life of Shivaji (Translation done by Rachna Dhir) इतने घोड़े: शिवाजी के जीवन से एक लघु कथा

यह नाटक मैंने दो साल पहले कक्षा नौ के बच्चों के साथ किया था । आई. सी. एस. ई पाठ्यक्रम के अनुसार कक्षा नौ और दस के हिंदी छात्र-छात्राओं से मौखिक परियोजना के अंतर्गत नाटक या कविता वाचन या सम्भाषण आदि करने की अपेक्षा की जाती है । इसी कारण हर साल मैं अपने कक्षा नौ और दस के छात्र-छात्राओं को कोई न कोई नाटक कराती हूं । इस कारण ही अपनी छात्रा अनुका धीर की माता रचना धीर की मदद से मैंने यह नाटक कक्षा नौ के छात्र-छात्राओं के साथ किया । यह नाटक मौलिक रूप से अंग्रेजी भाषा में लिखा गया था जिसका अनुवाद रचना धीर ने किया था । इस  नाटक का उपयोग ज्यादा से ज्यादा लोग कर सकें इसलिए मैनें यहाँ पर प्रकाशित किया है । आशा है कि मेरा यह प्रयास उपयोगी सिद्ध होगा । 
                      इतने घोड़ेशिवाजी के जीवन से एक लघु कथा
रचना धीर जी के विचार प्रस्तावना और सुझाव के तौर पर सब अध्यापक और अध्यापिकाओं के लिए - वेबसाइट पञ्चकेपेडिया के अनुसार, "१९६० के दशक में बंगाली नवयुवकों में सदाशिव कहानियां बहुत लोकप्रिय थीं । " जिस कहानी के अनुवाद पर यह नाटक आधारित है, हो सकता है सच हो । ऐतिहासिक तौर पर, कुछ नाम तो सच हैं, लेकिन कुछ बनावटी भी ।
यह नाटक दस बच्चों के संग यदि वे अनेक रोल करें, या फिर कई ज्यादा छात्रों के साथ, जो केवल एक ही किरदार का रोल अदा करें, किया जा सकता है । ऐसी लिखने की शैली का प्रयोग किया गया है जिससे एक तो दर्शक तथा कलाकार दोनों व्यस्त रहे और दूसरे दृश्य बदलने की गति भी तेज़ हो । सरल भाषा का प्रयोग इस लिए किया गया है ताकि उसका अनुवाद कठिन न हो, जिस कारण छात्र मंच के हर विभाग से परिचित हो सकें (जैसे कि अनुवाद, लिखित कहानी से नाटक का बदलाव, समय के अनुसार पोशाक , सेट, अभिनय, आज कल के वातावरण के अनुसार बात चीत का ढंग, इत्यादि )
मंच की सजावट बहुत ज्यादा हो सकती है या फिर सीधी साधी , बजट के अनुसार । यही बात संगीत तथा पोशाक पर भी लागू होती है। (दौड़ते घोड़ों क़ी आवाज़ के लिए तबला, राजमहल के दृश्य के लिए शहनाई , मेहमानों के स्वागत के लिए बिगुल इत्यादि साधनों का प्रयोग किया जा सकता है।)
नाटक के लिए यह कहानी चुने जाने का कारण यह था कि बच्चों को यह समझना ज़रूरी है कि बात चाहे पुराने ज़माने क़ी क्यूँ न हो, दिल और दिमाग तो तब भी और अब भी वैसे ही काम करते थे और करते रहेंगे । यह कहानी केवल इतिहास का ही एक हिस्सा न बनी रहे , इस लिए इस कहानी को जज्बातों से सजाने क़ी कोशिश की गयी है ।
इस नाटक में कई रिश्तों पर ख़ास ध्यान दिया गया है, मिसाल के तौर पर-
माँ और बेटा (जीजा बाई और शिवाजी )
ममेरे भाई बहिन (बलवंत राव और जीजा बाई )
जवान, बलवान, बुद्धिमान, सिपाही, सेवक, तथा सेनापति जो मिलजुल कर काम करते हैं - लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जब बच्चे मिल जुलकर सद्भावना से काम करें, तो मुश्किल कठिनायों के सुझाव उन्हें खुद ब खुद मिलेंगे ।
"लेकिन, शिवाजी चोर नहीं थे क्या?" कुछ बच्चों का यह सवाल पूछना स्वाभाविक है ।
दूसरे कह सकते हैं, " उन्होंने जो किया वह ठीक न था" । यहाँ बड़ों का उन्हें आपस में बात चीत करके समझौते पर आने देना ही सही माना जाएगा । यह ज़रूरी नहीं कि प्रत्येक घटना सही या गलत के माप तौल में हर समय परखी जा सके । रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में हमें बहुत चीज़ों का ध्यान रखना पड़ता है और हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम कठोर वचनों से दूर रहे, अपनी क्षमता और बुद्धि का सही उपयोग करें ।
मुख्य अदाकार :
शिवाजी (राजा)
सदाशिव (नौ जवान सिपाही )
जीजाबाई (शिवाजी की माता)
कुछ उनकी साथी- सहेलियां
तानाजी (शिवाजी के मंत्री)
कुछ अन्य मंत्री (कम से कम १ लेकिन ५ तक मुमकिन)
जीजाबाई के ममेरे भाई बलवंत राव
पुजारी राम देव
शिवाजी के सिपाही
बलवंत राव के सिपाही और मंत्री भी
सूत्रधार (एक या अनेक)
पहला दृश्य
मंच के एक कोने पे, जीजाबाई अन्य औरतों के साथ बैठी हैं (सिलाई करती या खाना पकाती - कोई भी काम पसंद कर लीजिये) {पीछे चादरें दाल सकते हैं सुखाने के लिए ।}
मंच के दूसरे कोने पर शिवाजी मेज़ पर पंख के साथ पत्र लिख रहे हैं (चेक करना है )
सूत्रधार : महाराष्ट्र में पूना में आपका स्वागत है । समय है १६४० और १६५० के लगभग का दशक । उस समय, यहाँ बहुत किले थे । कुछ मुग़ल बादशाहों के, कुछ बिजपुरियों के और बहुत स्वाधीन राजाओं के ।
छत्रपति शिवाजी का बुलंद इरादा इन सब किलों को जीतकर एक सल्तनत बनाने का था। सब मराठी एकजुट होकर फिरंगी राज से मुक्त हो जाते । लेकिन यह कौन-सा आसान काम था? रास्ते में बहुत उलझनें थीं जिसमें से एक इस नाटक में छिपी है । चलिए देखते हैं कैसी?
जीजाबाई ( अपनी एक साथी से कहती हैं): "मैंने पुजारी से पंचांग के बारे में बात की। उनके अनुसार इस महीने का सबसे शुभ दिन अगला गुरूवार है। मैं तभी अपना उपवास शुरू करना चाहूँगी । तुम तो जानती ही हो कि मैं कितने सालों से इस व्रत के बारे में सोच रही हूँ लेकिन कुछ न कुछ बाधा आ ही जाती है। लेकिन इस वर्ष मैंने पक्का फैसला किया है , कोई भी अड़चन मुझे रोक नहीं सकेगी ।"
पहली सहेली:बहुत अच्छी बात है। मैं भी इस शुभ कार्य में तुम्हारा साथ देना चाहूंगी। मैं भी प्रभु की शुक्र गुज़ार हूँ कि उन्होंने हमारे राज्य पर इतनी कृपा बरसाई है और हमें शिकायत का कोई मौका नहीं दिया।"
दूसरी सहेली: "मैंने न जाने कितनी बार शिवाजी और उनके सिपाहियों की टोली की सुरक्षित वापसी के लिए कामना की, जो पूरी हुई। यदि मैं भी उपवास रखूँ, तो आने वाले दिनों में भी उनकी सफलता और सुरक्षा बनी रहेगी।"
(शिवाजी जब पत्र लिख रहे थे, तब उन्होंने उनकी बातें सुन ली । उठकर उन्होनें अपनी माताजी से पूछा)
शिवाजी: "माँ, तुम अपने व्रत के लिए किसे बुलाना चाहोगी?"
जीजाबाई (लम्बी-सी सूरत बनाकर बोली): "शायद कुछ ब्राह्मणों को? यदि हमारे कोई रिश्तेदार पूना में होते, तो उन्हें भी बुला सकते थे।"
शिवाजी: "अगर आपकी यही इच्छा है, तो क्या उपवास से पहले मैं आपके ममेरे भाई बलवंत राव को भोजन के लिए आमंत्रित कर सकता हूँ? आपको उन्हें मिले कितने बरस हो गए? जब मैं नन्हा बच्चा था, उन्होंने कसम खिलाई थी कि मैं उनकी सेना पर कभी आक्रमण नहीं करूंगा और उनके किले को अपना बनाने की कोई ख्वाहिश नहीं रखूंगा । इस कारण, हम उनसे फिर कभी नहीं मिले‌।"
जीजाबाई: "यह फैसला मैं तुम पर छोडती हूँ । वैसे तो ज़रूरी भी नहीं, लेकिन शायद दोनों शासनों की सेनाओं और मंत्रियों की सद्भावना के लिए यह लाभ दायक हो सकता है।"
शिवाजी: "बहुत अच्छे! मैं अपने मंत्रियों से तुरंत सलाह लेता हूँ और अगर वे भी सहमत हैं तो हम कल सुबह ही राज्य पुजारी को आमंत्रण के साथ भेजेंगे। "
(जीजाबाई उठती है तो शिवाजी उनकी एक साथी को कहते हैं)
शिवाजी: "आप जाते जाते तानाजी और सभी मंत्रियों को मुझे मिलने को कहिए ।"
(तानाजी सबसे पहले पधारने वाले मंत्री थे)
तानाजी: "आपने सबको बुलाया, क्या?"
शिवाजी:"हाँ, सभी आ रहे हैं?'
(इंतज़ार करते, मंच पर दर्शकों की ओर देखते आधे चक्र के आकार में पंक्ति बनाते हैं। पहले मंत्री से शिवाजी पूछते हैं)
शिवाजी: "बीमार घोड़ों की क्या खबर है?"
(आँखे मीचे) मंत्री: "खबर अच्छी नहीं है, जड़ी-बूटी का कुछ भी असर नहीं हुआ लगता‌।”
(तानाजी दूसरे मन्त्री से पूछते हैं)
तानाजी: "हमारे दुश्मनों की सेना इतनी खुशहाल कैसे है?"
(मंत्री शिवाजी की ओर देखते जवाब देता है)
मंत्री: "सरकार, आपने गलत सुना है । मेरे जासूसों का कहना है, मुग़लों के घोड़े भी नहीं बचे इस बीमारी से।"
(एक और मंत्री तानाजी से कहते हैं)
मंत्री: "ईरान और दूसरे देशों के घोड़े बेचने वाले इतना डर गए हैं कि हिंदुस्तान आना ही बंद कर दिया ।”
एक और मंत्री: "मैंने सुना है कि केवल बलवंत राव के घोड़े तंदुरुस्त हैं? और बड़ी बात यह है, कि उन्हें यह मालूम भी है । इस लिए, एक एक घोड़े का दाम १० सुनहरी मुद्राएँ मांग रहे हैं।"
एक और मंत्री: क्या उनसे बात करें?”
(शिवाजी से तानाजी कहते हैं)
तानाजी: "उनके मामले में खून से सोना घना/कीमती है । दलालों ने उन्हें बताया भी कि घोड़े उनके भांजे शिवाजी के लिए हैं , लेकिन फिर भी दाम कम न किया ।आख़िरकर वह एक पहुंचे हुए व्यापारी हैं।"
मंत्री:"वे अपने निजी मामलों और रिश्तों को कारोबार के बीच नहीं आने देते ।नहीं तो और कोई मामा ख़ुशी-ख़ुशी अपना किला अपने भांजे के राज्य को मज़बूत करने के लिए भेंट न कर देता?"
(शिवाजी की तरफ देखते हुए मंत्री पूछते हैं)
मंत्री:"मैंने कुछ गलत कहा?”
शिवाजी (मुस्कुराते हुए) "जो बीती सो बात गयी । वे आज दो हज़ार घोड़ों और केवल ५०० सिपाहों के साथ चंद्रागढ़ में विराजमान हैं । मैंने उन्हें अपना वचन दिया था - वापिस नहीं ले सकता । लेकिन, बात हुई थी खून-खराबा न होने की। अगर हम उनके कुछ घोड़ों को अपने राज्य का सदस्य बना लें - बिना किसी सिपाही को चोट पहुंचाए - तो क्या उसे कसम तोड़ना माना जाएगा?"
( सब आपस में खुसर-पुसर शुरू करते हैं, बात न समझते हुए)
शिवाजी (सबको कहते हैं ):"मेरी माँ अगले गुरूवार से उपवास रखना चाहती हैं ।क्यों न हम बलवंत राव तथा उनके आदमियों को उससे पहले दावत पर बुलाएं? जब वे अपने तंदुरुस्त घोड़ों पर आयेंगे हम उन सबका - आदमियों का और घोड़ों का - खूब अच्छे से आदर सम्मान करेंगे । अगले दिन जब उन्हें पता चलेगा कि उनके घोड़े चोरी हो गए, तो हम क्या कर सकते हैं?"
सफाई देने के लिए तानाजी बोले: "सारी दुनिया जानती है आजकल चोर लुटेरे सब जगह मौजूद हैं।"
सब ने (मिलके एक साथ कहा):"क्या बात है! बहुत अच्छे"
"छत्रपति शिवाजी महाराज की जय"(सब एक साथ बोले)
एक मंत्री (दूसरे से):"हमने तो रिश्तेदारी का लिहाज़ माँगा था सौदा करते समय, तब तो वे नहीं माने ।सो अब उनको सबक सिखाने की बारी है।"
तानाजी:"शिवाजी चाहते तो धावा बोल सकते थे चान्दी गढ़ पर । लेकिन अपने मामाजी की इज्ज़त करते हैं ।घोड़ों को कैद करने की तो कोई बात ही नहीं हुई थी और सिपाहियों को तो हम छू भी नहीं रहे हैं।"
शिवाजी: "तो तय हुआ? कल सुबह-सवेरे राज पुरोहित आमंत्रण लेकर निकल पड़ेंगे ।"
तानाजी: "क्या सदाशिव को भी उनके साथ भेजें?"
शिवाजी:"हां, क्यूँ नहीं ? वे बलवंत राव से पहली बार मिल भी लेगा और ऊपर से बैल गाडी भी चला देगा ।"
मंत्री:"लेकिन घोड़े पर क्यों नहीं?"
तानाजी:"सबसे पहली बात तो यह कि राज पुजारी की उम्र को मद्दे नज़र रखते हुए, बैल गाडी ठीक रहेगी ताकि वे आराम से जा सकें। दूसरी बात यह कि हमारे इक्का-दुक्का सेहतमंद घोड़ों को ऐसे समय भेजना खतरे से खेलना होगा । आजकल सब मजबूर हैं और तंदुरुस्त घोड़े के लिए कोई भी हमला करने को तैयार हो सकता है ।”
सूत्रधार: जहाँ शिवाजी, उनकी माता जीजाबाई और मंत्री तानाजी सच्चे शख्स थे । सदाशिव एक बनावटी कलाकार माना जा सकता है ।उसे जन्म दिया -बंगाली उपन्यासकार सरदिंदु बंदोपाध्याय ने । उसकी उम्र १६ बरस की थी और वह शिवाजी का भक्त तथा एक अच्छा सिपाही माना गया । १९५० की शतक में उसपर लिखी कहानियों का अंग्रेजी अनुवाद हमारे पुस्तकालय में "अ बैंड ऑफ़ सोल्जर्स" नामक पुस्तक में उपलब्ध है ।
(जब सब मंत्री मंच से उतर रहें हैं, तो एक चिल्लाता है)
मंत्री: "सदाशिव - यहाँ आओ"
मंत्री (जोर से):"चूंकि तुम वीर हो और बुद्धिमान भी, तुम्हें एक बार फिर ज़रूरी काम सौंपा जा रहा है, समझ गए? अपना मुंह बंद रखना लेकिन आँखें खुली और सब ध्यान से सुनना और देखना । कर सकोगे?"
सदाशिव (अपना सर हिलाते हुए): "दीवार पर बैठी मक्खी माफिक बनकर रहूँगा ।आप मुझपर पूरा विश्वास कर सकते है।"
(और वे दोनों अलग-अलग दिशा में मंच से उतरते हैं।)
दूसरा दृश्य
(किले का बड़ा-सा दरवाज़ा जिस पर सिपाही शास्त्रों से पहरा दे रहे हैं। पुजारी और सदाशिव दो सिपाहियों की ओर बढ़ते है।)
पहला सिपाही : तुम कौन हो?
दूसरा सिपाही: तुम्हें क्या चाहिए?
तीसरा सिपाही :"तुम कहाँ से आये हो?
चौथा सिपाही: "तुम्हें चाहिए क्या?"
पुजारी: "नमस्कार! मेरा नाम राम देव है और मैं पूना का राज्य पुजारी हूँ ।राज्य माता जीजाबाई ने अपने भाई बलदेव राव के लिए मेरे हाथ निमंत्रण भेजा है ।
पहला सिपाही: "यहीं इंतज़ार करो । मुझे अपने सेनापतिसे अनुमति लेनी होगी । मैं चुटकी में लौटा ।"
दूसरा सिपाही (पीठ पर बोरी उठाए सदाशिव से पूछता है): "और तुम्हारी तारीफ?"
राज्य पुजारी (जवाब देते हैं): "यह मेरा सहायक है जो बैल गाडी पर मुझे यहाँ लाया है । चूंकि हमें सब मंत्रियों को और आप सब को आमंत्रण देना है, यह सब के लिए सुपारी लाया है ।"
पहला सिपाही:"सूबेदार ने इन्हें अन्दर ले जाने को कहा है ।"
(एक सिपाही इनके साथ दुर्ग की दूसरी तरफ जाना शुरू करता है । बाकी सिपाही पहले की तरह पहरा देना पुनः आरंभ करते हैं ।)
दृश्य ३
(यदि खूब सारे बच्चे हों और बजट अनुमति दे, तो महल का माहौल बड़े पैमाने पर बनाया जा सकता है - खूब सिपाही, बड़े पंखे हाथों से झुलाने वाले इत्यादि ।नहीं तो, कुछ बच्चे ही काफी हो सकते हैं|)
(बलवंत राव गद्दे पे बैठे मंत्री को इशारा करते हैं । राज पुजारी के स्वागत के लिए । मंत्री हाथ जोड़कर राजपुरोहित की तरफ बढ़ता है, दोनों एक साथ बलवंत राव की दिशा में आते हैं ।) बलवंत राव (पुरोहित को प्रणाम करते हैं और पूछते हैं): "मेरी बहिन जीजा और उसका बेटा शिवा कैसे हैं?"
राज पुजारी(हाथ जोड़े जवाब देते हैं):“प्रभु की कृपा से सब कुशल मंगल है ।(ओल इज़ वेल)? आपको अगले हफ्ते दावत के लिए आमंत्रित करने आया हूँ ।आपकी बहिन जीजा अगली पूर्णिमा से व्रत रख रही हैं और शिवाजी चाहते थे कि उनके रिश्तेदार भी उनके साथ हर्ष मना सकें । हम आपके शुक्रगुज़ार होंगे यदि आप अपने सभी मंत्रियों तथा सेनापतियों के साथ अगले बुधवार पूना पधार सकें ।(सबकी ओर इशारा करते हुए) कृपया ये पांच सुपारियाँ शुभ निमंत्रण समझ स्वीकार करें।”(सदाशिव उनके हाथ में ५ सुपारी देता है जिसे लेकर राज पुजारी बलवंत राव की दिशा में बढ़ते हैं)
(बलवंत राव अपनी पगड़ी गद्दे से लेकर अपने सर पर रखते हैं और खुली हथेली राज पुरोहित के सामने रख सुपारी स्वीकार करते हैं ।वे राजपुरोहित को बैठने का इशारा करते हैं पर सदाशिव खड़ा रहता है (क्यूंकि वह उम्र में और ओहदे में छोटा है)
बलवंतराव (अविश्वसनीय सूरत से पूछता है): "दावत में क्या खिलाएंगे?"
सदाशिव (हाथ के इशारों के साथ कहता है): "उम्दा चावल, स्वादिष्ट सब्जियां, पौष्टिक रागी रोटी, गोल-गोल लड्डू, बादाम दूध, बलखाती जलेबियाँ...."
(वह तो बोलता जाता यदि बलवंत राव उसे रोकते नहीं ।)
बलवन्तराय: तुम तो देख ही रहे हो कि मेरे राज्य में ५०० से भी अधिक सैनिक और उतने ही मंत्री भी हैं। क्या तुम्हारा शिवाजी महाराज उन सब को इतना बढ़िया खाना खिला पाएगा? "
राज्पुजारी राम देव (पूरे गर्व से) :“क्यों नहीं? आप ने तो उनके बारे में सुना है "प्राण जाएँ पर वचन न जाईं ।”
(फिर बारी-बारी वे मंत्रियों के हाथ में सुपारी रखते गए और एक पंक्ति में मंत्री मंच से उतरते गए |संतुष्ट बलवंत राव (मुख्य मंत्री को इशारा करते हैं राज पुजारी को ले जाने के लिए और कहते हैं): "जीजा को कहना मैं ज़रूर आऊंगा । जब शिवा छोटा था, मैंने उससे प्रतिज्ञा दिलवाई थी मेरे किले में कभी पाँव ना धरने की । अभी तक तो उसने वादा निभाया है । माँ ने बेटे की अच्छी परवरिश की है ।"
राज्यपुजारी रामदेव (सर झुका कर प्रणाम करते हैं):जी ज़रूर ।शिवाजी अपना दिया हुआ वचन कभी नहीं तोड़ेंगे ।"
(एक मंत्री राजपुरोहित और सदाशिव को हाथ के इशारे से मंच से उतरने का इशारा करते हैं| फिर वे घर -घर जाकर आमंत्रण देते है ।उनके साथ एक सिपाही जोर से बार-बार ऐलान करता है।)
सिपाही: दावत में शामिल हों! सब दावत में शामिल हों!”
एक सिपाही (सुपारी को हथेली में स्वीकार करते हुए कहता है): "मैं अगले बुधवार तक कैसे इंतज़ार करूँ? आजकल तो केवल ज्वार की रोटी और धनिये की चटनी से पेट भरता रहा हूँ ।”
दूसरा सिपाही: "तुम्हारा राजा तो बहुत दयालु है । अपने मामू को बुलाता लेकिन हमें भी खिला रहा है? काश, उसका मामू भी उसके जैसे बड़े दिलवाला होता ।”
दृश्य ४
(पंडित कतार में बैठे खा रहे हैं, कुछ लोग खाना परोस रहे हैं । शिवाजी और उनके मंत्री मेहमानों का इत्र छिडकाते हुए स्वागत कर रहे हैं । लोगों की आपस में बातें ऐसे सुनाई दे रही हैं जैसे भिनभिनाती मक्खियाँ ।)
एक सिपाही (एक मंत्री से कहता है): "जेस्साजी - किले से निगरानी रखने के लिए कितने सिपाहियों की ज़रुरत है?”
मंत्री जेस्साजी:हज़ार लोगों को बुलाया है - उच्चत्तम कोटि की सुरक्षा ।”
सिपाही: "हमारे जासूसों ने कुछ ख़ास न देखा, न सुना ।"
मंत्री जेस्साजी: "बहुत खूब | उनसे कहिये, फिर भी चौकन्ने रहें।"
(मंच के दूसरी ओर, सदाशिव लम्बी सी दूरबीन से देखते हुए, चेक कर लीजिये):
सदाशिव: घाटों की दिशा से बहुत धूल उठ रही है - ज़रूर बलवंत राव की ही सेना होगी ।”
एक मंत्री: "मुझे देखने दो - कितने घुड़सवार हैं?"
सदाशिव: "मुझे तो एक-भी घोडा दिखाई नहीं दे रहा? यह टोली तो बहुत धीमी गति से आ रही है! अरे, कहीं ये बैल गाड़ियों पर तो नहीं आ रहे? उनके घोड़े कहाँ गायब हो गए?"
(मंच के दूसरी ओर,एक सिपाही जाकर शिवाजी को खबर सुनाता है । खामोश, केवल इशारे से)
शिवाजी(दु:खी अंदाज़ में): "वे समझ गए होंगे । हमने उन्हें क्यों बुलाया?"
(शिवाजी और कुछ मंत्री हाथ जोड़ मेहमानों का स्वागत करते गए, जैसे कि कुछ न हुआ हो )शिवाजी (बलवंत राव के आगे, सर झुकाकर) :"आप आये - हम आभारी हैं. "
बलवंत राव: "आखिर मेरी बहन ने बुलाया था, मै भला कैसे न आता? कहाँ है जीजा?"
शिवाजी(सिपाही को इशारा करते हैं । मंत्रियों के हाथ धुलाये जाते हैं और खाने की पंक्ति में बैठने का इशारा किया जाता है)
शिवाजी: "सारे मंत्रियों और सिपाहियों को कितनी बैलगाड़ियों में लाए ? "
बलवंत राव: "जितनी गाड़ियों में सब आराम से बैठ सकें, सौ सिपाही तो किले के पहरे के लिए रुकने ही थे ।आजकल आपने डकैतों के बारे में नहीं सुना? इस लिए तो हम घोड़ों पर सवार नहीं हुए ।"
(भोले बनकर )शिवाजी: "सौ सिपाही क्यों छोड़े पीछे?"
बलवंत राव:"तुम ने वचन दिया है - तुम तो हमला करोगे नहीं । लेकिन औरों का क्या भरोसा? चारों दिशाओं में दुश्मन बैठे हैं ।"
(स्वागत में दोनों गले मिलते हैं, एक दर्शकों को जीत का अंगूठा दिखाता है और दूसरा आँख मारता है ।)
सूत्रधार: दोनों जानते थे कि उनकी टक्कर अपने मुकाबले के खिलाड़ी से हुई है । लेकिन क्या शिवाजी उन घोड़ों को अपने दिमाग से निकाल पाएंगे?
(अब जीजाबाई भी आ जाती हैं और सब साथ में बैठ कर खाना शुरू करते हैं।)
सदाशिव (शिवाजी के पास आकर कहता है):"आपके लिए सन्देश आया है । "
(शिवाजी माफ़ी मांगकर उठते हैं और मंच के कोने में खड़े मंत्रियों के पास जाते हैं । शिवाजी और उनके मंत्री गोलाकार में कन्धों पर हाथ रख खुसर-फुसर करते हैं ।)
शिवाजी: "बहुत खूब" (और एक मन्त्री को): "अपने ५० स्वस्थ घोड़े और सबसे तेज़ घुड़सवार सदाशिव को दीजिये ।“
(खाने वाले मंच से उतर चुके हैं।उनकी जगह बोरियों में खाना डाला जा रहा है और बोरियों को घोड़ों पर लादा जा रहा है..)
मंत्री: "इतना भारी भोजन खाने के बाद इन सब को गहरी नींद तो आनी ही चाहिए |"
दूसरा मंत्री: "आशा है कि जीजा बाई अच्छी मेहमाननवाजी फरमाएंगी और उन्हें रात यहाँ काटकर कल सुबह जल्दी लौटने का मशवरा देंगी।
दृश्य ५
(मंच के एक कोने में फिर वही द्वार और वही सिपाही । दूसरे कोने में सदाशिव, सिपाही और
घोड़े ।)
सदाशिव (इशारा करते हुए):खाने की बोरियों को इन दस घोड़ों पर रखते है । आप यहीं इंतज़ार कीजिये -लेकिन आराम नहीं! जब आपको उस पहाड़ी पर एक जलती हुई मशाल नज़र आये, तो आप भागते हुए द्वार तक आ जाएँ । इन घोड़ों को यहीं छोड़ेंगे और उनके घोड़ों पर सवार घर लौटेंगे ।समझे?"
(सदाशिव कुछ सिपाहियों और घोड़ों के साथ द्वार की और बढ़ते हैं ।)
पहला सिपाही : तुम कौन हो?
दूसरा सिपाही: तुम्हें क्या चाहिए?
तीसरा सिपाही :"तुम कहाँ से आये हो?
चौथा सिपाही:"तुम्हें चाहिए क्या?"
सदाशिव: "हम पूने से आये हैं‌। तुम्हारे लिए खाना लेकर । जब हमें पता चला कि तुम काम छोड़कर हमारे साथ बैठकर खाना नहीं खा सकते, तो हमें बहुत बुरा लगा ।जल्दी से, फाटक खोलो ताकि हम तुम्हें खिला सकें ।"
तीसरा सिपाही: "लेकिन हमें द्वार खोलने की इजाज़त नहीं है।"
सदाशिव: "परवाह नहीं । तुम अपना काम करो, हम अपना करते हैं । पहरा देते-देते तुम एक
रस्सी नीचे फ़ेंक देना, हम उससे तुम्हारा खाना ऊपर पहुंचा देंगे ।"
सिपाही १:"मैं भी तो यही कह रहा था! यह लो रस्सी" (और, फेंकने का इशारा करता है।
सदाशिव और साथी खाने की पोटलियों या टोकरियों को बाँध कर ऊपर पहुंचाते हैं ।वे वापिस लौटने का नाटक करते है, घोड़ों को पेड़ से बाँध कर फिर द्वार को जाते हैं । खाने के बाद, सिपाहियों को भी नींद आती है - उबासियां भरते, आँखे मलते हुए )
सिपाही १: "क्या मजेदार खाना था!"
सिपाही २: "मैंने तो बचपन में अपनी अज्जी के घर ऐसा खाना खाया था, अब नींद भी उतनी ही मीठी आ रही है ।"
सिपाही 3:"खैर, हमपर निगरानी रखने वाला तो कोई है नहीं, आज रात यहाँ । चलो, थोड़ी देर सुस्ताने में कोई हर्ज नहीं ।"
(सदाशिव साथियों को इशारा करता है और वे धक्का देकर द्वार खोल डालते हैं ।सोते हुए सिपाहियों के हाथ पाँव बाँध देते हैं।)
सदाशिव (एक ओर इशारा करते हुए): "अस्तबल उस तरफ है - मैंने घोड़ों को उस आम के पेड़ के नीचे देखा था जब मैं राज पुजारी के साथ पिछली बार आया था ।"
सिपाही (झोपडी में नज़र डाल, दरवाज़ा बंद कर, चिटखनी लगाते हुए कहता है): "खाली घरों को बंद करते जाएँ? वैसे तो सब दावत खाने पूना गए हैं, अगर कोई पीछे रह भी गया हो तो निकल नहीं पायेगा ।"
(सभी घोड़ों को लिए द्वार की ओर चल पड़े । एक सिपाही नींद से उठ रहा है तो उसको तलवार दिखाई जाती है और होठों पर ऊँगली शोर न मचाने के लिए ।)
सिपाही:"वापसी के लिए दूसरा रास्ता लें?"
सदाशिव: "काश मैं यहीं रह सकता - किले पहुँचते ही बलवंत राव का हाल देखने के लिए ।"
सिपाही:वे अब चलने की तैयारी कर रहे होंगे?”

सिपाही : "यही तो है ज़िन्दगी!”